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________________ १ सूत्र १०३६ ति लोक सूर्य की द्वीप-समुद्र में गति एगे पुण एवमाहं तानो कवि दी वा समुदं वा ओगाहिता सूरिए चार चर एगे एवमाहं एमा १. ता एवं जोणसहस्सं एवं च तेतीस जोयणासयं दीवं वा समुदं वा ओगाहिता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु (क) ता जया णं सूरिए सब्वन्मंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं जंबुद्दीवं दीवं एगं जोयणसहस्सं, एगं च तेत्तीस जोयणसयं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमरूपले उनकोस अहारसमुहले दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, (ख) ता जया णं सूरिए सव्व बाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं लवणसमुद्द एवं जोयणसहस्सं, एगं च तेत्तीस जोयणसयं ओगाहित्ता चार चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राई भवद, जहणए बालसमुह दिवसे भव २. एवं उसी वि जोवणस ३. पणतीसे वि एवं चेव भाणियव्वं, तत्थ णं जे ते एवमाहंसु - ४. ता अवढं दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अवड्ढ जंबुद्दीवं दीबं ओगाहित्ता सूरिए चार वर तया में उत्तम भव, जहथिया दुवास एवं सव्य बाहिरे मंडले बि - वरं "अब लवणसमुद्र" तथा गं "राईदिय" तहेब ।" उक्कोसए अट्टारसमुह दिवसे राई भ ऊपर अंकित सूत्र के समान है । गणितानुयोग ५३७ एक मतवालों ने फिर ऐसा कहा है (५) किसी द्वीप या समुद्र का अवगाहन करके सूर्य गति नहीं करता है । इनमें से जिन्होंने इस प्रकार कहा है (१) एक हजार एक सौ तेतीस योजन (विस्तृत) द्वीप या समुद्र का अवगाहन करके सूर्य गति करता है । उन्होंने इस प्रकार कहा है (क) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तरमंडल को प्राप्त करके गति करता है तब एक हजार एक सौ तेतीस योजन जम्बूद्वीप का अवगाहन करके गति करता है । तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (ख) जब सूर्य सर्व बाह्यमंडल को प्राप्त करके गति करता है तब एक हजार एक सौ तेतीस योजन लवण समुद्र का अवगाहन करके गति करता है । तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है, और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । ( २ ) इसी प्रकार एक हजार एक सौ चौतीस योजन अवगाहित द्वीप समुद्र के बाद सूर्य की गति तथा दिन-रात्रि का प्रमाण कहें । ( ३ ) इसी प्रकार एक हजार एक सौ पैंतीस योजन अवगाहित द्वीप समुद्र के बाद सूर्य की गति तथा दिन-रात्रि का प्रमाण कहें, इनमें से जिन्होंने इस प्रकार कहा है (४) आधे द्वीप या समुद्र का अवगाहन करके सूर्य गति करता है । उन्होंने इस प्रकार कहा है जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करके गति करता है। तब आधे जम्बूद्वीप का अवगाहन करके गति करता है । तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी प्रकार सर्वबाह्यमण्डल में भी कहें विशेष- आधे लवणसमुद्र के बाद सूर्य की गति तथा दिनरात्रि का प्रमाण उसी प्रकार कहें
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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