SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 698
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र १०३८ तिर्यक् लोक : सूर्य की एक मण्डल से दूसरे मण्डल में संक्रमण क्षेत्र-गति गणितानुयोग ५३५ ता जया णं सूरिए अमिंतरं तच्चं मण्डलं उवसंकमित्ता जब सूर्य आभ्यन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति चारं चरइ, तया णं पंच जोयणाई पणतीसं च एगट्ठि- करता है तब पाँच योजन और एक योजन के इकसठ भागों में भागे जोयणस्स बोहिं राइविएहि विकंपइत्ता चार चरइ, से पैंतालीस भाग जितने क्षेत्र को दो अहोरात्र में पार करता है, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चहि एगट्ठिभाग तब तक मुहूर्त में। इकसठ भागों में से चार भाग कम अठारह मुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । चहि एगट्ठि- मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इकसठ भाग तथा भागमुहत्तेहिं अहिया, चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डल राओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संकम- से तदनन्तर मण्डल को संक्रमण करता करता प्रत्येक अहोरात्र में माणे दो दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्ठिभागे जोय- दो दो योजन और एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस णस्स एगमेगं मण्डलं एगमेगे णं राइविएहि विकंपमाणे भाग जितने क्षेत्र को पार करता करता सर्व बाह्यमण्डन को विकंपमाणे सव्वबाहिर मण्डलं उवसंकमित्ता चारं प्राप्त करके गति करता है। चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वग्मंतराओ मण्डलाओ सव्व जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से सर्व बाह्यमण्डल पर्यन्त उपबाहिरं मण्डलं उवसंकमिता चार चरइ, तया णं सव्व- संक्रमण करके गति करता है तब सर्वाभ्यन्तर मंडल को छोड़कर मंतरं मण्डलं पणिहाय एगे णं तेसीए णं राइंदिषसए एक सौ तिरासी अहोरात्र में पांच सौ दस योजन जितने क्षेत्र गं पंचवसुत्तरजोयणसए विकंपइत्ता विकंपइत्ता चारं को पार करके गति करता है। चरइ, चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहर्त की रात्रि होती भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । एस गं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स ये प्रथम छः मास (दक्षिणायन के) हैं यह प्रथम छः मास पज्जबसाणे, का अन्त है। १. से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि (१) (सर्व बाह्यमंडल से सर्व आभ्यन्तर मंडल की ओर) अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे छः मास का उत्तरायण प्रारम्भ कर प्रथम अहोरात्र में बाह्यानन्तर मंडल को प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्रा जब सूर्य बाह्यानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है चारं चरइ, तया णं दो दो जोयणाई अडयालीसं च तब एक अहोरात्र में दो योजन एक योजन के इकसठ भागों में से एगट्ठिभागे जोयणस्स एगे गं राइंदिए गं विकंपइत्ता अडतालीस भाग जितने क्षेत्र को पार करता है । चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ । दोहिं एगट्ठिभाग- तब तक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग कम अठारह मुहत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ । दोहिएगट्ठि- मुहूर्त की रात्रि होती हैं और एक मुहूर्त के इकसठ भाग तथा भाग मुहुर्तेहि अहिए, दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। २. से पविसेमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्च (२) (बाह्यानन्तरमंडल से बाह्य तृतीय मंडल की ओर) मण्डलं उवसंकमित्ता चार चरइ, ता जया णं सूरिए प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरात्र में बा तृतीय मंडल बाहिरं तच्चं मण्डलं उवसंकमिता चारं चरइ, तया णं को प्राप्त करके गति करता है, तब दो अहोरात्र में पाँच योजन पंचजोयणाई पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स दोहिं और एक योजन के इगसठ भागों में से पैतीस भाग जितने क्षेत्र राइंदिएहि विकंपइत्ता विकंपइत्ता चार चरइ, को पार करता है। तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, चउहि एगट्ठिभाग- तब तक मुहूर्त के इगसठ भागों में से चार भाग कम अठारह मुहुर्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चहि मुहुर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के इगसठ भाग तथा एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए, चार भाग अधिक बारह महर्त का दिन होता है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy