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________________ ५३४ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : सूर्य की एक मंडल से दूसरे मंडल में संक्रमण क्षेत्र - गति एगे पुण एवमाहंसु २. ता अट्ठाईजोबनाई एगमेगे में राईदिए पं किंपत्ता विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंमु ६. तापमाना पत्तारि जोषणाई एगमेगे पं राइदिए णं विकंपइत्ता विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ, एगे एवमाहंसु, एगेन एवमाहं ७. ता चत्तारि जोयणाइं अद्ध बावण्णं च तेसीइसयभागे जोयणस्स एगमेगे णं राइदिए णं विरूपत्ता विकंपइत्ता सूरिए चारं चर एगे एवमाहंसु वयं पुण एवं वयामो ता दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्टिमागे जोयणस्स एगमेवं मण्डलं एयमेगे नं राईदिए णं विकंपता विकंपइत्ता चारं चरइ, प० तत्थ णं को हेऊ ? इति वदेज्जा, उ०- ता अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दीव-समुद्दाणं सव्वत राए सम्बडा वट्ट - जाव जोपणस्यसह समायाम विसंमेणं, तिष्णि जोपणस्यसहरसाई, दोणिय सत्तावीसे जोयणसए, तिष्णि कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई, अलंगुलं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते, १. ता जया णं सूरिए सब्वब्भंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारस मुटु दिवसे भवद, जहणिया बुवालसमुहता राई भवइ, ता जया णं सूरिए अभिंतरानंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरs, तया णं दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्टि भागे जोयणस्स एगे णं राईदिए णं विकंपइत्ता विकंप इत्ता चारं चरइ, तथा णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, दोह गट्टभाग ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, दो एगट्टिभागमुह अहिया, सूत्र १०३८ ३. से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भिंतरं तच्चं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरड़, एक (मत बालों) ने फिर ऐसा कहा है (५) प्रत्येक अहोरात्र में सूर्य एक मण्डल से दूसरे मण्डल पर्यन्त पहुँचने में साडे तीन योजन जितने क्षेत्र को पार करता है । एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा हैं (६) प्रत्येक अहोरात्र में सूर्य एक मण्डल से दूसरे मण्डल पर्यन्त पहुँचने में (एक योजन के एक सौ तिरासी भागों में से ) चार भाग कम चार योजन जितने क्षेत्र को पार करता है । एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है (७) प्रत्येक अहोरात्र में सूर्य एक मण्डल से दूसरे मण्डल पर्यन्त पहुंचने में चार योजन और एक योजन के एक सौ तिरासी भागों में से साडे इक्कावन भाग जितने क्षेत्र को पार करता है । हम फिर इस प्रकार कहते हैं सूर्य एक अहोरात्र में दो योजन और एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस भाग जितने क्षेत्र को पार करके एक मण्डल को पहुंचता है। प्र० - इस कथन के सम्बन्ध में हेतु क्या है ? उ०- यह जम्बूद्वीप सब द्वीप समुद्रों के मध्य में है, सबसे छोटा है, वृत्ताकार है- यावत् एक लाख योजन का लम्बाचौडा है, और तीन लाख दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोश एक सौ अठावीस धनुष तेरह अंगुल तथा आधे अंगुल से कुछ अधिक की परिधि वाला कहा गया है । २. से मारिए गर्व संवर अपमा (२) (सर्व आभ्यन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य अहोरत्तंसि अभिंतरानंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं नए संवत्सर के दक्षिणायन को प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है । चरई, (१) जब सूर्य आभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है तब परम उत्कर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जयन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। जब सूर्य आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है तब एक अहोरात्र में दो योजन और एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस भाग जितने क्षेत्र को पार करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग क अठारह मुहूर्त का दिन होता है तथा एक मुहूर्त के इकसठ भाग और दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (३) (आभ्यन्तरानन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरात्र में आभ्यन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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