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________________ सूत्र १०३१ तियक लोक : सूर्यमण्डलों का आयाम-विष्कम्भ गणितानुयोग ५२९ उ०-गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साई छच्च चत्ताले उ-हे गौतम ! निन्यानवे हजार छः सौ चालीस योजन जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसय- का आयाम-विष्कम्भ और तीन लाख पन्द्रह हजार निवासी सहस्साइं, पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगणणउइं योजन से कुछ अधिक की परिधि कही गई है। च जोयणाइं किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । २. ५०-अभंतराणंतरे णं भंते ! सूरमण्डले केवइयं आयाम- (२) प्र०-भगवन् ! आभ्यन्तरानन्तर (दूसरे) सूर्यमण्डल विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते? का आयाम-विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साई छच्च पणयाले उ-हे गौतम ! निन्यानवे हजार छः सौ पैतालीस योजन जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स और पैंतीस योजन के इगसठ भाग जितना आयाम विष्कम्भ तथा आयाम-विक्खंभेणं । तिणि य जोयणसयसहस्साई तीन लाख पन्द्रह हजार एक सौ सात योजन की परिधि कही एगं सत्त्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते। गई है। ३.५०-अब्भंतर तच्चे णं भंते ! सूरमण्डले केवइयं आयाम- (३) प्र०-भगवन् ! आभ्यन्तर तृतीय सूर्यमण्डल का विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते ? आयाम-विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ? -गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साई छच्चं एकावण्णे उ०-हे गौतम ! निन्यानवे हजार छः सौ इक्कावन योजन जोयणसए णव य एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम- तथा नौ योजन के इकसठ भाग जितना आयाम-विष्कम्भ और विक्खंभेणं । तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस तीन लाख पन्द्रह हजार एक सौ पच्चीस योजन की परिधि कही जोयणसहस्साई एगं च पणवीसं जोयणसयं परिक्खे- गई है। वेणं पण्णत्ते। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तया- इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य एक के बाद दूसरे गंतराओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं उवसंकममाणे मण्डल पर उपसंक्रमण करता करता प्रत्येक मण्डल में पाँच पाँच उवसंकममाणे पंच पंच जोयणाई पणतीसं च एगसट्ठि- योजन तथा तैतीस योजन के इकसठ भाग जितनी विष्कम्भ भाए जोयणस्स एगमेगे मण्डले विक्खंभवुड्ढिं अभि- वृद्धि करता करता और परिधि में अठारह अठारह योजन की वड्ढेमाणे अभिवड्ढेमाणे अट्ठारस अट्ठारस जोयणाई वृद्धि करता करता सर्वबाह्य मण्डल पर उपसक्रान्त होकर गति परिरयवुड्ढेि अभिवुड्ढेमाणे अभिवुड्ढेमाणे सव्व- करता है। बाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चार चरइ । ४. ५०-सव्व बाहिरएणं भंते ! सूरमण्डले केवइयं आयाम- (४) प्र०-भगवन् ! सर्वबाह्य सूर्यमण्डल का आयाम विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं छच्च सटु जोयण- उ०-हे गौतम ! एक लाख छ: सौ साठ योजन का सए आयाम-विक्खंभेणं । तिण्णि य जोयणसयसह- आयाम विष्कम्भ और तीन लाख अठारह हजार तीन सौ पन्द्रह स्साइं अट्ठारस य सहस्साई तिण्णि य पण्णरसुत्तरे योजन की परिधि कही गई है। जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । "५. ५०-बाहिराणंतरे णं भंते ! सूरमण्डले केवइयं आयाम- (५) प्र०-भगवन् ! बाह्यानन्तर (बाहर से दूसरा) सूर्य विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते? मण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! एग जोयणसयसहस्सं छत्र चउप्पण्णे उ०—हे गौतम ! एक लाख छः सौ चौवन योजन तथा जोयणसए छन्वीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स छब्बीस योजन के इगसठ भाग जितना आयाम-विष्कम्भ और आयाम-विक्खंभेणं। तिण्णि य जोयणसयसहस्साई तीन लाख अठारह हजार दो सौ सत्तानवे योजन की परिधि अट्ठारस य सहस्साई दोण्णि य सत्ताणउए जोयणसए कही गई है। परिक्खेवेणं पण्णत्ते। ६.५०-बाहिर तच्चे णं भंते ! सूरमण्डले केवइयं आयाम- (६) प्र०-भगवन् ! बाह्य तृतीय सूर्यमण्डल का आयाम विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेडेणं पण्णत्ते ? विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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