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________________ ५२८ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यक लोक सूर्यमण्डलों का बाल्य अन्तर प० - ता अब्मिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिरं मण्डलवयं बाहिराओ वा मंडलवयाओ अब्भिंतरं मण्डलवयं, एस अदा केलयं आहिए ति बा ? उ०ता पंचसुतरे जो आहिए सि एग्जा प० - अभिंतराए मण्डलवयाए बाहिरा मंडलवयाओ अब्भिंतर मण्डलवा एस णं अद्धा केवइयं आहिए त्ति वएज्जा ? उ०-ता पंचदसुत्तरे जोयणसए अडयालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स अहिया, प० - ता अब्भिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिर मण्डलवया बाहिराओ मण्डलवयाओ अभिंतर- मण्डलवया - एस णं अद्धा केवइयं आहिए ति वदेज्जा ? उ०-ता पंचनवुत्तरे जोयणसए तेरस एगट्टिभागे जोयणस्स आहिए सि बया प० - अभिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिरा मण्डलवया, बाहिराए मण्डलवाए अभिंतर-मण्डलवया - एस णं अद्धा केवइया आहिए सि वदेज्जा ? T उ०ता पंचरत्तरे जोयणसए आहिए सि वदेजा, " - सूरिय० पा० १ ००२० सूरमण्डलस्स आयाम - विक्खंभो परिक्खेवो बाहल्लं च - ३१. १० (क) सूरमण्डले गं मंते! केवइयं आगम-विश्खमे ? (ख) केवइयं परिक्खेवे णं ? (ग) केवइयं बाले पण ? उ०- (क) गोयमा ! सूरमण्डले - अडयालीसं एगसट्टिभाए जोपणस्स आयाम - विक्ष (ख) तंतिपूर्ण सविसेस परिसेवेनं (ग) चडवी एक्सट्टिभाए जो बाहल्ले में प - जंबु. वक्ख. ७, सु. १३० सूरमण्डलाणं आयाम - विक्खंभ- परिक्खेवं मण्डलाणं विश्वंभ बुडि हाणि च ३२. १. ५० – जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते ! सूरमण्डले hasi आयाम - विक्खंभे णं, केवइयंप रिक्खेवे णं पण्णत्ते ? प्र० - आभ्यन्तर मण्डल से बाह्यमण्डल और बाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल ( पर्यन्त) कितना ( लम्बा ) मार्ग है ? सूत्र १०३०-१०३२ उ०- पाँच सौ दस योजन ( जितना लम्बा मार्ग) है । प्र० – आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्यमण्डल पद और बाह्यमण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद का मार्ग कितना लम्बा है ? उ०- पाँच सौ दस योजन और एक योजन के इकसठ भाग तथा अड़तालीस भाग अधिक ( लम्बा मार्ग ) है । प्र०—- आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्यमण्डल पद और बाह्यमण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद- इनका मार्ग कितना (चम्बा) है? उ०- पाँच सौ नौ योजन और एक योजन के इकसठ भागों में से तेरह भाग जितना ( लम्बा ) मार्ग है । प्र ० - आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्य मण्डल पद और बाह्य मण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद - इनका मार्ग कितना (स) है ? उ०- पाँच सौ दस योजन जितना ( लम्बा मार्ग ) है । सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भः परिधि और बाहल्य३१. प्र० (क) हे भगवन् ! सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? - (ख) कितनी परिधि है ? (ग) और कितना बाहल्य कहा गया है ? उ०- ( क ) हे गौतम! एक योजन के इगसठ भागों में से अड़तालीस भाग जितना सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ है । (ख) इससे कुछ अधिक तीन गुणी परिधि है । (ग) एक योजन के इगसठ भागों में से चौबीस भाग जितना बाहल्य= मोटाई है । सूर्यमण्डलों का आयाम विष्कम्भ परिधि और मण्डलों के विष्कम्भ की हानि-वृद्धि ३२. (१) प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में सर्वाभ्यन्तर सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ? १ चन्द. पा. १ सु. २० । २ (क) सूरमण्डले णं अडयालीस एगसट्टिभागे जोयणस्स विक्खंभे णं पण्णत्ता, (ख) सूरमण्डलं जोयणे णं तेरसहि एगट्टिभागेहि जोयणस्स ऊणं पण्णत्तं, - सम. ४८, सु. ३ -सम. १३. सु. ८
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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