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लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक लोक सूर्यमण्डलों का बाल्य अन्तर
प० - ता अब्मिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिरं मण्डलवयं बाहिराओ वा मंडलवयाओ अब्भिंतरं मण्डलवयं, एस अदा केलयं आहिए ति बा ?
उ०ता पंचसुतरे जो आहिए सि एग्जा प० - अभिंतराए मण्डलवयाए बाहिरा मंडलवयाओ अब्भिंतर मण्डलवा एस णं अद्धा केवइयं आहिए त्ति वएज्जा ?
उ०-ता पंचदसुत्तरे जोयणसए अडयालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स अहिया,
प० - ता अब्भिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिर मण्डलवया बाहिराओ मण्डलवयाओ अभिंतर- मण्डलवया - एस णं अद्धा केवइयं आहिए ति वदेज्जा ?
उ०-ता पंचनवुत्तरे जोयणसए तेरस एगट्टिभागे जोयणस्स आहिए सि बया
प० - अभिंतराओ मण्डलवयाओ बाहिरा मण्डलवया, बाहिराए मण्डलवाए अभिंतर-मण्डलवया - एस णं अद्धा केवइया आहिए सि वदेज्जा ?
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उ०ता पंचरत्तरे जोयणसए आहिए सि वदेजा, " - सूरिय० पा० १ ००२० सूरमण्डलस्स आयाम - विक्खंभो परिक्खेवो बाहल्लं च - ३१. १० (क) सूरमण्डले गं मंते! केवइयं आगम-विश्खमे
?
(ख) केवइयं परिक्खेवे णं ?
(ग) केवइयं बाले पण ?
उ०- (क) गोयमा ! सूरमण्डले - अडयालीसं एगसट्टिभाए जोपणस्स आयाम - विक्ष
(ख) तंतिपूर्ण सविसेस परिसेवेनं (ग) चडवी एक्सट्टिभाए जो बाहल्ले में प - जंबु. वक्ख. ७, सु. १३० सूरमण्डलाणं आयाम - विक्खंभ- परिक्खेवं मण्डलाणं विश्वंभ बुडि हाणि च
३२. १. ५० – जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते ! सूरमण्डले hasi आयाम - विक्खंभे णं, केवइयंप रिक्खेवे णं पण्णत्ते ?
प्र० - आभ्यन्तर मण्डल से बाह्यमण्डल और बाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल ( पर्यन्त) कितना ( लम्बा ) मार्ग है ?
सूत्र १०३०-१०३२
उ०- पाँच सौ दस योजन ( जितना लम्बा मार्ग) है ।
प्र० – आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्यमण्डल पद और बाह्यमण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद का मार्ग कितना लम्बा है ?
उ०- पाँच सौ दस योजन और एक योजन के इकसठ भाग तथा अड़तालीस भाग अधिक ( लम्बा मार्ग ) है ।
प्र०—- आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्यमण्डल पद और बाह्यमण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद- इनका मार्ग कितना (चम्बा) है?
उ०- पाँच सौ नौ योजन और एक योजन के इकसठ भागों
में
से तेरह भाग जितना ( लम्बा ) मार्ग है ।
प्र ० - आभ्यन्तर मण्डल पद से बाह्य मण्डल पद और बाह्य मण्डल पद से आभ्यन्तर मण्डल पद - इनका मार्ग कितना (स) है ?
उ०- पाँच सौ दस योजन जितना ( लम्बा मार्ग ) है ।
सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भः परिधि और बाहल्य३१. प्र० (क) हे भगवन् ! सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ कितना है ?
-
(ख) कितनी परिधि है ?
(ग) और कितना बाहल्य कहा गया है ?
उ०- ( क ) हे गौतम! एक योजन के इगसठ भागों में से अड़तालीस भाग जितना सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ है ।
(ख) इससे कुछ अधिक तीन गुणी परिधि है ।
(ग) एक योजन के इगसठ भागों में से चौबीस भाग जितना बाहल्य= मोटाई है ।
सूर्यमण्डलों का आयाम विष्कम्भ परिधि और मण्डलों के विष्कम्भ की हानि-वृद्धि
३२. (१) प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में सर्वाभ्यन्तर सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि कितनी कही गई है ?
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चन्द. पा. १ सु. २० ।
२ (क) सूरमण्डले णं अडयालीस एगसट्टिभागे जोयणस्स विक्खंभे णं पण्णत्ता,
(ख) सूरमण्डलं जोयणे णं तेरसहि एगट्टिभागेहि जोयणस्स ऊणं पण्णत्तं,
- सम. ४८, सु. ३ -सम. १३. सु. ८