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________________ ५२६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूयमंडलों का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य सूत्र १०२६ णस्स एगमेगे मंडले विक्खंभ बुढि अभिवड्ढेमाणे विष्कम्भ वृद्धि प्रत्येक मण्डल में बढ़ाता बढ़ाता अठारह अठारह अट्ठारस अट्ठारस जोयणाई परिरयड्ढि अभिवड्ढेमाणे योजन परिधि की वृद्धि बढ़ाता सर्व बाह्यमण्डल की ओर बढ़ता अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं हुआ गति करता है। चरइ, ४. ता जया णं सूरिए सव्व बाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता (४) जब सूर्य सर्व बाह्यमण्डल को प्राप्त करके गति करता चारं चरइ, तया णं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठि- है तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में से भागे जोयणस्स बाहल्ले णं, अड़तालीस भाग जितना है । एगं च जोयणसयसहस्सं छच्चसट्टे जोयणसए आयाम- एक लाख छः सौ साठ योजन जितना आयाम-विष्कम्म है। विक्खंभे णं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई अटारससहस्साई तिणि य तीन लाख अठारह हजार तीन सौ पन्द्रह योजन की परिधि पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेण, कही गई है। तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राई उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की भवइ, जहण्णिए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है। एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमस्स छम्मासस्स ये प्रथम छ: मास (दक्षिणायन के) हैं यह प्रथम छः मास पज्जवसाणे, का अन्त है। १. से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि (१) (सर्व बाह्यमण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं छः मास से उत्तरायण प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में चरइ, बाह्यानन्तर मण्डल को प्राप्त करता हुआ गति करता है । ता जया गं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता जब सूर्य बाह्यानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है चारं चरइ, तया णं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठि- तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में से अड़ताभागे जोयणस्स बाहल्ले णं, लीस भाग जितना है। एग जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पणे जोयणसए एक लाख छः सौ चौवन योजन और एक योजन के इगसठ छन्वीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभे णं भागों में से छब्बीस भाग जितना मण्डल का आयाम-विष्कम्भ है। तिण्णि जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साइं दोण्णि य तीन लाख अठारह हजार दो सौ सत्तानवे योजन की परिधि सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवे णं पण्णत्ते, कही गई है। तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ दोहिं एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग कम मुहहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठि- अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के इ कसठ भाग भागमुहुर्तेहि अहिए, तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। २. से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं (२) (बाह्यानन्तर मण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, दूसरे अहोरात्र में बाह्य तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता जब सूर्य बाह्य तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता चारं चरइ, तया णं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठिभागे है तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इकसठ भागों में से जोयणस्स बाहल्ले गं, अड़तालीस भाग जितना है। एगं जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावणं एक लाख छः सौ अड़तालीस योजन और एक योजन के च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभे णं, इगसठ भागों में से बावन भाग जितना आयाम-विष्कम्भ है । तिष्णि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारससहस्साई दोण्णि य तीन लाख अठारह हजार दो सौ गण्यासी योजन की परिधि एगूणासोए जोयणसए परिक्खेवे णं पण्णत्ते, कही गई है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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