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________________ सूत्र १०२६ तिर्यक्लोक : सूर्यमण्डलों का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य गणितानुयोग ५२५ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। २. से निक्खम्ममाणे सूरिए णवं सवच्छरं अयमाणे पढमंसि (२) (सर्वाभ्यन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य नये अहोरत्तंसि अन्मिंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं संवत्सर के दक्षिणायन को प्रारम्भ करता हुआ, प्रथम अहोरात्र चरइ, में आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए अमितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता जब सूर्य आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति चारं चरइ, तया णं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठि- करता है तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में भागे जोयणस्स बाहल्ले णं, से अड़तालीस भाग जितना है । णवणउई जोयणसहस्साई छच्च पणयाले जोयणसए निन्यानवे हजार छ: सौ पैंतालीस योजन और एक योजन पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभे णं, के इगसठ भागों में से पैंतीस भाग जितना आयाम-विष्कम्भ है। तिणि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं तीन लाख पन्द्रह हजार एक सौ चार योजन से कुछ कम एगं चउत्तरं जोयणसयं किंचि विसेसूर्ण परिक्खेवे गं, की परिधि कही गई है। तया गं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, दोहि एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहूर्त के इगसठ भागों में से दो भाग कम मुहुर्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि एगट्ठि- अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इगसठ भाग भागमुहुर्ताह अहिया, तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । ३. से निक्खम्ममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तसि अभितरं (३) (आभ्यन्तरानन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, दूसरे अहोरात्र में आभ्यन्तर तृतीय मण्डल प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता जब सूर्य आभ्यन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति चारं चरइ, तया णं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठि- करता है तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में भागे जोयणस्स बाहल्ले णं, से अड़तालीस भाग जितना है। णवणउइ जोयणसहस्साई छच्च एकावन्ने जोयणसए निन्यानवे हजार छः सौ इक्कावन योजन और एक योजन णव य एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभे गं, के इगसठ भागों में से नौ भाग जितना आयाम-विष्कम्भ है। तिण्णि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साई तीन लाख पन्द्रह हजार एक सौ पच्चीस योजन की परिधि एगं च पणवीसं जोयणसयं परिक्खेवे णं पण्णत्ते, कही गई है। तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, चहिं एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहूर्त के इसठ भागों में से चार भाग कम मुहुर्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । चहि एगट्ठि- अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इगसठ भाग भागमुहुर्तेहिं अहिया, तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । एवं खल एएणं उवाएणं निक्खम्ममाणे सूरिए तया- इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डल गंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकम- से तदनन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करता करता पाँच-पांच माणे पंच पंच जोयणाइं पणतीसं च एगट्ठिभागे जोय- योजन तथा एक योजन के इगसठ भागों में से पैतीस भाग जितनी (क्रमशः) इन दो प्रकार के बाहल्य प्रमाणों में से कौन सा वास्तविक है यह शोध का विषय है। सूर्यप्रज्ञप्ति में मूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि बाह्याभ्यन्तर मण्डलों की अपेक्षा अनियत लिखा है किन्तु जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति में सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि अनियत नहीं लिखी है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि कही है वह आभ्यन्तर या बाह्यमण्डलों की है। क्योंकि सूर्यप्रज्ञप्ति में कथित बाह्याभ्यन्तर मण्डलों के आयाम-विष्कम्भ प्रमाणों में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कथित आयाम-विष्कम्भ परिधि का प्रमाण मिलता नहीं है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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