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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : सूर्यमण्डलों का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य
सूत्र १०२६
१. ता सव्वा वि जं मण्डलवया जोयणं बाहल्ले णं, (१) (सूर्य के) सभी मण्डलों का बाहल्य एक योजन का है। एगं जोयणसहस्सं एगं तेत्तीसं जोयणसयं आयाम- एक हजार एक सौ तेतीस योजन का आयाम-विष्कम्भ हैं । विक्खंभे णं, तिण्णि जोयणसहस्साई तिण्णि य णवण- तीन हजार तीन सौ निन्यानवें योजन की परिधि कही गई है। उई जोयणसए परिक्खेवे णं पण्णत्ता एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है२. ता सव्वा वि जं मण्डलवया जोयण बाहल्ले णं, (२) (सूर्य के) सभी मण्डलों का बाहल्य एक योजन का हैएगं जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं आयाम- एक हजार एक सौ चौबीस योजन का आयाम-विष्कम्भ है । विक्खभे णं, तिणि जोयणसहस्साइं चत्तारि विउत्तराई तीन हजार चार सौ दो योजन की परिधि कहीं गई है। जोयणसयाई परिक्खेवे गं पण्णत्ता, एगं एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है३. ता सव्वा वि णं मण्डलवया जोयणं बाहल्ले गं, (३) (सूर्य के) सभी मण्डलों का बाहल्य एक योजन का है। एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं आयाम- एक हजार एक सौ पैंतीस योजन का आयाम-विष्कम्भ है। विक्खंभेणं, तिण्णि णोयणसहस्साई चत्तारि पंचुत्तराई तीन हजार चार सौ पाँच योजन की परिधि कही गई है। जोयणसयाई परिक्खेवेणं पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु, वयं पुण एवं वयामो
हम फिर इस प्रकार कहते हैंता सव्वा वि णं मण्डलवया अडयालीसं एगट्ठिभागे (सूर्य के) सभी मण्डलों का बाहल्य एक योजन के इगसठ जोयणस्स बाहल्ले णं,
भागों में से अड़तालीस भाग जितना है। अणियया आयाम-विक्खंभ-परिक्खेवे णं, आहितेति आयाम-विष्कम्भ और परिधि अनियत कही है।
वदेज्जा, प०-तत्थ णं कोहेऊ ? ति वदेज्जा,
प्र०-इस प्रकार कहने का कारण क्या है ? उ०-ता अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दोव-समुद्दाणं सन्वन्भंत. उ०-यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सब द्वीप-समुद्रों के मध्य में
राए सव्व खुड्डागे वट्ट-जाव-जोयणसहस्समायाम- है, सबसे छोटा है. वृत्ताकार है-यावत्-एक लाख योजन का विक्खंभे णं, तिणि जोयणसयसहस्साई, दोण्णि य लम्बा-चौड़ा है और तीन लाख दो सौ सत्तावीस योजन तीन सत्तावीसे जोयणसए, तिग्णि कोसे, अट्ठावीसं च धणु- कोश एक सौ अठावीस धनुष तेरह अंगुल तथा आधे अंगुल से सयं, तेरस य अंगुलाई, अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिए कुछ अधिक की परिधि कही गई है।
परिक्खेवे णं पण्णत्ते, १. ता जा णं सूरिए सम्वन्भंतरं मण्डल उवसंकमित्ता (१) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति
चारं चरइ, तया णं सा मण्डलवया अडयालीस एगट्ठि- करता है, तब मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में भागे जोयणस्स बाहल्ले णं, णवणउइ जोयणसहस्साइं से अडतालीस भाग जितना है । निन्यानवे हजार छः सौ चालीस छच्च चत्ताले जोयणसयाई आयाम-विक्खंभे गं, योजन का आयाम-विष्कम्भ है। तिण्णि जोयणसय सहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं तीन लाख पन्द्रह हजार निव्यासी योजन से कुछ अधिक की एगणणउई जोयणाई किंचि विसेसाहिए परिक्खेवे णं,' परिधि कही गई है।
भागा म
१ सूर्यप्रज्ञप्ति तथा जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति के सूत्रों में सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ कहा गया है किन्तु समवायांग के सूत्र में केवल
विष्कम्भ ही कहा गया है। इसका समाधान यह है कि वृत्ताकार का आयाम विष्कम्भ सदा समान होता है, सूर्यमण्डल वृत्ताकार है अतः केवल विष्कम्भ कहने से आयाम विष्कम्भ समझ लेना चाहिए। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्यमण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में से अडतालीस भाग जितना कहा गया है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में सूर्य मण्डल का बाहल्य एक योजन के इगसठ भागों में से चौबीस भाग जितना कहा गया है। (क्रमशः)