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________________ सूत्र १०२६-१०२६ तिर्यक् लोक : सूर्यमण्डलों का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य गणितानुयोग ५२३ तत्य णं अयं एरवए सूरिए भारहस्स सूरियस्स जंबुद्दीवस्स इस जम्बूद्वीप में जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण दीवस्स पाईण-पडीणाययाए उदीण-दाहिणाययाए लम्बी जीवा से मण्डल के एक सौ चौबीस भाग करने पर मण्डल जीवाए मण्डलं चउवीसएणं सएणं छेत्ता-दाहिण- के दक्षिण पश्चिमी चतुर्थ भाग में रहा हुआ ऐरावत क्षेत्र का सूर्य पच्चथिमिल्लसि च उब्भागमंडलंसि बाणउइय सूरिय- (भरतक्षेत्रीय सूर्य के चले हुए) परके चले हुए बानवे मण्डलों में मयाइं जाई सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ, पीछा चलता है । उत्तर-पुरथिमिल्लसि चउभागमंडलं सि एक्काणउइय मण्डल के उत्तर-पूर्वी चतुर्थ भाग में रहा हुआ ऐरावत क्षेत्र सूरियमयाइं जाई सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ, का सूर्य (भरतक्षेत्रीय सूर्य के चले हुए) परके चले हुए इकानवे मण्डलों में पीछा करता है। ता निक्खममाणा खलु एए दुवे सरिया णो अण्णमण्णस्स (सर्व आभ्यन्तर मण्डल से) निकलते हुए ये दोनों सूर्य एक चिणं पडिचरन्ति, दूसरे के चले हुए मण्डलों में पीछे नहीं चलते हैं। पविसमाणा खलु एए दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं (सर्व बाह्यमण्डल से) प्रवेश करते हए ये दोनों सूर्य एक पडिचरन्ति सयमेग चोयालं, दूसरे के चले हुए मण्डलों में पीछे चलते हैं यह चीर्ण क्षेत्र मण्डलों -सूरिय. पा. १, पाहु. ३,सु. १४ के एक सौ चुम्मालीस भागों में विभाजित है । सम्वन्भतर-बाहिर-सूरमण्डलाणं अबाहा अन्तरं- सर्व आभ्यन्तर और बाह्य सूर्यमण्डलों का व्यवधान रहित अन्तर२७. ५०-सव्वन्भंतराओ णं भते ! सूरमंडलाओ केवइआए अबा- २७. प्र.-हे भगवन् ! सर्व आभ्यन्तर सूर्यमण्डल से सर्ववाह्य हाए सव्वबाहिरए सूरमण्डले पण्णत्ते ? सूर्यमण्डल व्यवधान रहित कितने अन्तर पर कहा गया है ? उ०-गोयमा ! सम्वन्भंतराओ सूरमंडलाओ पंचदसुत्तरे उ०—हे गौतम ! सर्व आभ्यन्तर सूर्यमण्डल से सर्व बाह्य जोयणसए अबाहाए सव्व बाहिरए सूरमण्डले पण्णत्ते । सूर्यमण्डल व्यवधान रहित पाँच सौ दस यौजन के अन्तर पर -जंबु. वक्ख. ७, सु. १२८ कहा गया है । सूरमंडलस्स आयाम-विक्खंभ-बाहल्लं- सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य२८.५०-सूरमंडले णं भंते ! केवइयं आयाम-विक्खंभेणं? २८. प०-भंते ! सूर्यमण्डल का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? केवइयं परिक्खेदेणं ? केवइयं बाहल्लेणं? परिधि कितनी है ? बाहल्य (मोटाई) कितना है? उ०-गोयमा ! अडयालीस एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम- उ०-हे गौतम ! अडतालीस योजन के इगसठ भाग जितना विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं लम्बा-चौड़ा है, इससे कुछ अधिक तिगुनि परिधि है और चौबीस एगसट्ठिभाए जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते । योजन के इगसठ भाग जितना बाहल्य है। -जंबु. वक्ख. ७, सु. १३० सरस्स सन्धमंडलाणं बाहल्लं आयाम-विक्खभ-परि- सूर्य के सर्वमण्डलों का बाहल्य आयाम-विष्कम्भ और क्खेवं च परिधि२६. ५०–ता सव्वा वि ण मंडलवया-केवइयं बाहल्ले णं? २६. प्र०—(सूर्य के) सर्वमण्डलों का बाहल्य कितना है ? केवइयं आयाम-विक्खंभे णं? आयाम-विष्कम्भ कितना है ? केवइयं परिक्खेवे णं? आहितेति वदेज्जा, परिधि कितनी है ? कहैं। उ०-तत्थ खलु इमा तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस सम्बन्ध में ये तीन प्रतिपत्तियां (मतान्तर) कही तं जहा- ' गई हैं, यथा। तत्थेगे एवमाहंसु-- इनमें से एक (मत वालों) ने ऐसा कहा है १ चन्द. पा.१ सु. १४ । २ सम. ४८, सु. ३ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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