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________________ ५२२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्यों के संचरण क्षेत्र सूत्र १०२६ मुहुत्तेहिं एगमेगं अद्धमण्डलं चरइ, सट्ठीए सट्ठीए मुहहि एक एक अर्धमण्डल पर चलता है. और साठ साठ मुहूर्त में एक एगमेगं मण्डलं संघाययंति, एक पूर्णमण्डल पर चलता है। ५०-ता निक्खममाणा खलु एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स प्र०-(सर्व आभ्यन्तरमण्डल से) निकलते हुए ये दोनों सूर्य चिण्णं पडिचरन्ति, पविसमाणा खलु एते दुवे सूरिया एक-दूसरे के चले हुए क्षेत्र में नहीं चलते हैं (किन्तु सर्व बाह्यअण्णमण्णस्स चिणं पडिचरन्ति तं सयमेगं चोयालं, मण्डल से) प्रवेश करते हुए ये दोनों सूर्य एक दूसरे के चले हुए क्षेत्र में चलते हैं यह चीर्ण (चला हुआ) क्षेत्र मण्डलों के एक सौ चुम्मालीस भागों में विभक्त है । तत्थ णं को हेउ, ति वदेज्जा ? इसमें क्या हेतु है ? वह कहें । उ०–ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दीव-समुद्दाणं सम्वन्भंत- उ०-यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सर्व द्वीप-समुद्रों के मध्य में राए सव्व खुड्डागे वट्ट-जाव जोयणसयसहस्समायाम- है, सबसे छोटा है वृत्ताकार हैं-यावत्-एक लाख योजन का विक्खंभे णं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई, दोन्नि य सत्ता- लम्बा चौड़ा और तीन लाख दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोश वीसे जोयणसए, तिणि कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं, एक सौ अठावीस धनुष तेरह अंगुल तथा आधे अंगुल से कुछ तेरस य अंगुलाई, अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिए परि- अधिक की परिधि वाला कहा गया है । क्खेवे ण पण्णत्ते, तत्थ णं अयं भारहए चेव सूरिए जंबुद्दीवस्स दोवस्स इस जम्बुद्वीप में जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण पाईण-पडीणाययाए उदीण-दाहिणाययाए जीवाए मंडलं की लम्बी जीवा से मण्डल के एक सौ चोबीस भाग करने पर चउवीसएणं सएणं छत्ता-दाहिण-पुरथिमिल्लसि मण्डल के दक्षिण-पूर्वी चतुर्थ भाग में अर्थात् इगतीस भागों में चउन्भागमंडलसि बाणउतिय सूरियमयाइं जाई सूरिए रहा हुआ ये भरतक्षेत्र का सूर्य (भरतक्षेत्रीय सूर्य के ही चले हुए) अध्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ, बानवे मण्डलों में स्वयं पीछा चलता है। उत्तर-पच्चथिमिल्लसि चउभागमंडलंसि एक्काणइयं मण्डल के उत्तर-पश्चिमी चतुर्थ भाग में रहा हुआ यह भरत सूरियमयाइं जाई सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडि- का सूर्य (भरतक्षेत्रीय सूर्य के ही चले हुए) इकानवे मण्डलों में चरइ, स्वयं पुनः चलता है। तत्थ णं अयं भारहे सूरिए एरवयस्स सूरियस्स जंबु- इस जम्बूद्वीप में जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिमी तथा उत्तरदीवस्स दीवस्स पाईण-पडीणाययाए उदीण-दाहिणाय- दक्षिण की लम्बी जीवा से मण्डल के एक सौ चौबीस भाग करने याए जीवाए मण्डलं चउबीसए णं सए णं छत्ता- पर मण्डल के उत्तर-पूर्वी चतुर्थ भाग में रहा हुआ यह भरत क्षेत्र उत्तर-पुरथिमिल्लसि चउन्भागमंडलंसि बाणउइय का सूर्य (ऐरावतक्षेत्रीय सूर्य के चले हुए क्षेत्र में) पर के चले हुए सूरियमयाइं जाइं सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ, बान मण्डलों में चलता है। दाहिण-पञ्चस्थिमिल्लसि चउब्भागमंडलंसि एक्काण- मण्डल के दक्षिण-पश्चिमी चतुर्थ भाग मे रहा हुआ यह उइयं सूरियमयाई जाई मूरिए परस्स चेव चिण्णाई भरत क्षेत्र का सूर्य (ऐरावत क्षेत्रीय सूर्य के चले हुए क्षेत्र में) पडिचरइ, परके चले हुए इकानवें मण्डलों में पीछा चलता है । तत्थ णं अयं एरवए चेव सूरिए जंबुद्दीवस्स दीवस्स इस जम्बूद्वीप में जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण पाइण-पडीणाययाए उदीण-दाहिणाययाए जीवाए मंडलं लम्बी जीवा से मण्डल के एक सौ चौबीस भाग करने पर मण्डल चउवीसएणं सएणं छत्ता-उत्तर-पुरथिमिल्लसि चउ- के उत्तर-पूर्वी चतुर्थ भाग में रहा हुआ यह ऐरावत क्षेत्र का सूर्य भागमंडलंसि बाणउइयं सूरियमयाइं जाई सूरिए (ऐरावतक्षेत्रीय सूर्य के ही चले हुए) बानवे मण्डलों में स्वयं पीछा अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ, चलता हैं । दाहिण-पुरथिमिल्लसि चउब्भागमंडलंसि एक्काणउइय मण्डल के दक्षिण-पूर्वी चतुर्थ भाग में रहा हुआ यह भरत सूरियमयाइं जाई सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडि- क्षेत्र का सूर्य (ऐरावतक्षेत्रीय सूर्य के ही चले हुए) इकानवें मण्डलों चरइ, में स्वयं पीछा चलता है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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