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________________ ५१८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : जम्बूद्वीप में सूर्यमण्डलों की संख्या सूत्र १०२२-१०२५ जंबुद्दोवे सूरमंडलाणं संखा जम्बूद्वीप में सूर्यमण्डलों की संख्या२२. ५०-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया २२. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में कितने (योजन) सूरमंडला पण्णत्ता ? अवगाहन करने पर कितने सूर्यमण्डल कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे असीअं जोयणसयं ओगाहित्ता उ०-हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में एक सौ अस्सी एत्थ णं पण्णट्ठी सूरमंडला पण्णत्ता' योजन अवगाहन करने पर पेंसठ सूर्यमण्डल कहे गये हैं। -जंबु, वक्ख. ७, सु. ११७ लवणसमुद्दे सूरमंडलाणं संखा लवणसमुद्र में सूर्य-मण्डलों की संख्या२३. ५०-लवणे णं भंते ! समुई केवइ ओगाहित्ता केवइआ २३. प्र०-हे भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने (योजन) अवगाहन सूरमंडला पण्णता? ___ करने पर कितने सूर्यमण्डल कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! लवणे समुद्दे तिणि तीसे जोयणसए ओगा- उ०-हे गौतम ! लवणसमुद्र में तीन सौ तीस योजन हित्ता एत्थ णं एगूणवीसे सूरमंडलसए पण्णत्ते। अवगाहन करने पर एक सौ उन्नीस सूर्यमण्डल कहे गये हैं । एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे असमुद्दे एगे इस प्रकार जम्बूद्वीप नामक द्वीप में और लवणसमुद्र में चउरासीए मंडलसए भवतीति मक्खायंति', पूर्वापर के मिलाकर एक सौ चौरासी सूर्यमण्डल होते हैं-ऐसा - जंबु. वक्ख. ७, सु. १२७ कहा गया है । निसढ-नीलवंतेसु सूरमंडल संखा परूवण निषध और नीलवंत पर्वत पर सूर्यमण्डलों की संख्या का प्ररूपण-- २४. णिसढे णं पन्वए तेवट्टि सूरोदया पण्णत्ता । २४. निषध पर्वत पर वेसठ सूर्य मण्डल कहे गये हैं । एवं नीलवते वि। -सम. ६३, सु. ३-४ इसी प्रकार नीलवंत पर्वत पर भी वेसठ सूर्य मण्डल हैं। सूरियाणं अण्णमण्णस्स अन्तर-चार सूर्यों की एक दूसरे से अन्तर गति-- २५. ५०–ता केवइयं एए दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स अन्तरं कटु २५. प्र०-ये दोनों (भारतीय और ऐरावतीय) सूर्य एक दूसरे चारं चरंति ? आहिए त्ति वएज्जा, से कितना अन्तर करके गति करते हैं ? । उ०-तत्थ खलु इमाओ छ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस सम्बन्ध में ये छ: प्रतिपत्तियाँ (मतान्तर) कही तं जहा गई हैं, यथातत्थ एगे एवमाहंसु इनमें से एक (मत वालों) ने ऐसा कहा है१. ता एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसय अण्ण- (१) भारतीय सूर्य ऐरावतीय सूर्य से एक हजार योजन मण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चार चरंति, आहितेति का अन्तर करके गति करता है और ऐरावतीय सूर्य भारतीय वएज्जा, एगे एवमाहंसु, सूर्य से एक सौ तेतीस योजन का अन्तर करके गति करता है । एगे पुण एवमाहंसु एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है२. ता एगं जोयणसहस्स एगं च चोत्तीस जोयणसयं (२) भारतीय सूर्य ऐरावतीय सूर्य से एक हजार योजन का अण्णमण्णस्स अंतरं कट्ट सूरिया चारं चरंति, अन्तर करके गति करता है और ऐरावतीय सूर्य भारतीय सूर्य से आहितेति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, एक सौ चौतीस योजन का अन्तर करके गति करता है। एगे पुण एवमाहंसु एक (मतवालों) ने फिर ऐसा कहा है-- .३. ता एग जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं (३) भारतीय सूर्य ऐरावतीय सूर्य से एक हजार योजन का १ जम्बुद्दीवे गं दीवे पणसट्टि सूरमंडला पण्णत्ता । –सम. स. ८५, सु. १ जम्बूद्वीप में पैंसठ सूर्यमण्डल और लवणसमुद्र में एक सौ उगणीस सूर्य मण्डल-इन दोनों संख्याओं के संयुक्त करने पर एक सौ चौरासी सूर्यमण्डल होते हैं । ३ भरतक्षेत्रवर्ती ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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