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________________ सूत्र १०२०-१०२१ तिर्यक् लोक : सूर्यमण्डलों की संख्या गणितानयोग ५१७ तत्थ खलु इमा पणवीसविहा छाया पण्णत्ता, तं जहा- उनमें ये पच्चीस प्रकार की छाया कही गई है, यथा१. खंभ-छाया, २. रज्जु-छाया, ३. पागार-छाया, (१) स्तम्भछाया, (२) रज्जुछाया, (३) प्राकारछाया, ४. पासाय-छाया, ५. उग्गम-छाया, ६. उच्चत्त-छाया, (४) प्रासाद छाया, (५) उद्गम छाया, (६) उच्चत्व=(ऊंचाई ७. अणुलोम-छाया, ८. पडिलोम-छाया, .. आरंभिया- की) छाया, (७) अनुलोमछाया, (८) प्रतिलोम छाया, छाया, १०. उवहया-छाया, ११. सभा-छाया, १२. (९) आरंभिका छाया, (१०) उपहता छाया, (११) सभा छाया, पडिहया-छाया, १३. खोल-छाया, १४. पक्ख-छाया, (१२) प्रतिहता छाया, (१३) कील छाया, (१४) पक्ष छाया, १५. पुरओ-उदया-छाया, १६. पुरिम कंठ-भागुवगया- (१५) पूर्वोदय छाया, (१६) पूर्वकण्ठभाग उपगता छाया, छाया, १७. पन्छिम-कंठ-भागुवगया-छाया, १८. छाया- (१७) पश्चिम कण्ठभाग उपगता छाया, (१८) छायानुवादिनी णुवाइणी-छाया. १६. किट्ठाणुवाइणी-छाया, २०. छाय- छाया, (१६) कृत्यानुवादिनी छाया, (२०) छाय-छाया, छाया, २१. विकल्प-छाया, २२. वेहास-छाया, २३. (२१) विकल्प छाया, (२२) विहाय छाया, (२३) कट छाया, कड-छाया, २४. गोल-छाया, २५. पिट्ठओदग्गा-छाया। (२४) गोल छाया, (२५) पृष्ठतोदया छाया । तत्थ णं गोल-छाया अट्टविहा पण्णता, तं जहा इनमें गोल छाया आठ प्रकार की कही गई है, यथा१. गोल-छाया, २. अवड्ढ-गोल-छाया, ३. गाढ-गोल- (१) गोल छाया, (२) अपार्धगोल छाया, (३) गाढगोल छाया, ४. अवड्ढ-गाढ-गोल-छाया, ५. गोलावलि- छाया, (४) अपार्धगाढगोल छाया, (५) गोलावलि छाया, छाया, ६. अवड्ढ-गोलावलि-छाया, ५. गोलपुजछाया, (६) अपार्धगोलावलि छाया, (७) गोलपुंज छाया, (८) अपार्ध८. अवड्ढ-गोल-पुज-छाया। गोलपुंज छाया। -सूरिय. पा. ६, सु. ३१ सूरमंडलाणं संखा सूर्यमण्डलों की संख्या२१. ५०-कइ णं भंते ! सूरमंडला पण्णत्ता? २१. प्र०-हे भगवन् ! सूर्यमण्डल कितने कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! एगे चउरासीए मंडलसए पण्णत्ते । उ.-हे गौतम ! एक सौ चौरासी सूर्यमण्डल कहे गये हैं । -जंबु. वक्ख. ७, सु. १२७ (क्रमशः) (क) यहाँ इन प्रश्नोत्तरों में व्यतिक्रम हो गया प्रतीत होता है। सर्वप्रथम साढे उनसठ पौरुषी छाया का प्रश्नोत्तर है । द्वितीय प्रश्नोत्तर उनसठ पौरुषी छाया का है तृतीय प्रश्नोत्तर कुछ अधिक उनसठ छाया का है। (ख) यहाँ प्रश्नों के अनुरूप उत्तर भी नहीं है। प्रथम प्रश्नोत्तर में-“साढे उनसठ पौरुषी छाया, एक सौ उन्नीस दिवस भाग से निष्पन्न होती है" ऐसा माना है किन्तु संक्षिप्तवाचना पाठ के सूचनानुसार एक सौ बीस दिबस भाग से निष्पन्न होती है। द्वितीय प्रश्नोत्तर में—उनसठ पौरुषी छाया की निष्पत्ति बावीस हजार दिवस भाग से होती है-ऐसा माना है, किन्तु यह मानना सर्वथा असंगत है, क्योंकि संक्षिप्त वाचना के सूचना पाठ की टीका में एक एक दिवस भाग बढ़ाने का ही सूचन है । तृतीय प्रश्नोत्तर में प्रश्न ही असंगत है, क्योंकि संक्षिप्त वाचना के सूचना पाठ में अर्द्ध पौरुषी छाया से सम्बन्धित प्रश्न हो तो यहाँ कहा गया उत्तर सूत्र यथार्थ है । १ (क) प्रस्तुत सूत्र में छाया के पच्चीस प्रकार तथा गोल छाया के आठ प्रकार का कथन है। "तत्थेत्यादि, तत्र=तासां पंचविंशति-छायानां मध्ये खल्वियं गोल-छाया अष्टविधा प्रज्ञप्ता," मूर्यप्रज्ञप्ति की टीका के इस कथन से प्रतीत होता है कि छाया के पच्चीस प्रकारों में "गोल-छाया" का नाम था और उसके आठ प्रकार भिन्न थे, किन्तु सूर्य प्रज्ञप्ति की" १ आ. स. १२ शा. स. १३ अ. सु. १" इन तीन प्रतियों में छाया के केवल सतरह नाम है और गोल-छाया के आठ नाम है । इस प्रकार पच्चीस पूरे मान लिए गये हैं। सतरह नामों में गोल-छाया का नाम नहीं है फिर भी "तत्थेत्यादि" पाठ से संगति करके पच्चीस नाम पूरे मानना आश्चर्यजनक है एक "ह. अ." प्रति में छाया के पच्चीस नाम तथा गोल-छाया के आठ नाम हैं, जो मूल पाठ के अनुसार है। (ख) चंद. पा. ६ सु. ३१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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