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________________ १०८ चलकर चन्द्र मास पूर्ण होता है । पुनः । गणितानुयोग : प्रस्तावना ३६ पर जाते हुए पर क्षेत्र-पर चलकर चन्द्र मास पूर्ण करता है। ईशान कोण से निकलता चन्द्र ३४ ईशान कोण के चन्द्र का पर या १-अर्द्धमंडल पर-क्षेत्र से व स्वक्षेत्र में चन्द्र चलता है क्योंकि ईशान कोण में २४३ से निकलता हुआ चन्द्र १४वें अर्द्ध मण्डल पर ... भाग अग्नि क्षेत्र चलकर - अग्नि कोण में सूर्य का पर. ६७ १६३ क्षेत्र चलकर चन्द्र मास पूर्ण करता है । नैऋत्य कोण से निकलता कोण में सूर्य का क्षेत्र चलता है और - भाग स्वक्षत्र चन्द्र ३४ नैऋत्य कोण में चन्द्र का पर क्षेत्र वा १४+ चलकर १४वां अर्द्ध मण्डल पूर्ण करता है। इसके पश्चात् पन्द्रहवें । अर्द्ध मण्डल पर चलते १६३ स्वक्षेत्र और ३३४ वायव्य कोण वायव्य कोण से सूर्य का पर-क्षेत्र चलकर चन्द्र मास पूर्ण करता है। दूसरे समय २६ जाता हुआ चन्द्र १४वें मण्डल में स्वयमेव प्रवेश में सूर्य के क्षेत्र में चले, ईशान कोण में चन्द्र के क्षेत्र प्रति कर चाल चलकर नक्षत्र मास पूर्ण करता है। चलता है। पन्द्रहवें अर्द्ध मण्डल को इस प्रकार ईशान कोण में यह गमन की चन्द्र मास में वृद्धि अनवस्थित रूप से कही संपूर्ण करता है। गयी है। इसी प्रकार नैऋत्य कोण से निकलता हुआ चन्द्र १४वें अर्ध ___ यहाँ श्री अमोलक ऋषिजी ने एक दो स्थानों में गलत मण्डल पर २४. वायव्य कोण सूर्यक्षेत्र चलकर व १४ ईशान रूप से लिया है । इसे कोण में अपना क्षेत्र चलकर ईशान कोण में १४वां अर्द्ध मण्डल रूप में लेना चाहिए था। २०६७४३१ कोण का निरूपण ऐतिहासिक दृष्टि से शोध का विषय है पूर्ण करता है । इसके पश्चात् १५वें अर्द्धमण्डल पर चलते । तथा महत्वपूर्ण है । यहाँ ओ० न्युगेवाएर का ग्रन्थ, "The Exact Sciences in Antiquity". Providence 1957. दृष्टव्य है । ईशान कोण में स्वक्षेत्र चलकर और - भाग अग्निकोण में साथ ही बेबीलोनिया के उनके एस्ट्रानामिकल क्यूनिफार्म टेक्स्ट्स (Astronomical Qunieform Texts) भी दृष्टव्य हैं, जिन पर पर-क्षेत्र पर चलता है तथा- - भाग पर-क्षेत्र पर चलकर उनका अनेक वर्षों तक कार्य चला है। सूत्र १०६४, पृ० ५७३पन्द्रहवां अर्धमण्डल सम्पूर्ण करता है। चन्द्र स्व १४वें अर्द्ध मण्डल सर्वप्रथम चन्द्र से नक्षत्रों के योग काल को लेते हैं। यहाँ देश, काल दोनों की स्थिति माप लेकर चन्द्र से उसी नक्षत्र का में-भाग प्रवेश कर पर-क्षेत्र में चलता है। इस प्रकार योग अगले काल में अन्य देश में लेते हैं। जो चन्द्र मण्डल के जिस देश में जिस नक्षत्र से आज योग करता है तो २८ नक्षत्रों नैऋत्य कोण से निकल कर चन्द्र नैऋत्य कोण में भाग पर है योगकाल के ८१६++ २. मुहूर्त काल व्यतीत होने क्षेत्र में चलता है और ईशान कोण में निकलकर ईशान कोण में २४६७ पर वह चन्द्र मण्डल के अन्य देश (भाग) में अन्य सदृश नक्षत्र - भाग पर-क्षेत्र पर चलता है। इसके पश्च का से योग करता है। समस्त नक्षत्रों के साथ योग करने हेतु चन्द्र अलग-अलग विस्तार वाले नक्षत्रों से भिन्न-भिन्न कालों में आधा एवं ... चलते हए चन्द्र अपने १४वे अर्धमण्डल योग करता हुआ चक्रवाल को पूर्ण करता है। उपरोक्त कूल मुहूर्त काल की उत्पत्ति का कारण गणित द्वारा बतलाते हैं २४ ति
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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