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________________ ३८ गणितानुयोग : प्रस्तावना ३४ १८ ६७ भाग अग्निकोण के क्षेत्र स्पर्श करता है वह स्वक्षेत्र ज्ञातव्य है। नक्षत्र मास की संख्या ६७ है। ३१ भाग सम्भवतः १२४ किन्तु पाठ में पर-क्षेत्र कहा और १३ भाग स्व व पर का कहा भागों को ४ दिशाओं में बाँट देने पर ३१ भाग प्रत्येक दिशा को प्राप्त हुए भाग हैं। इन्हें चूणिये भाग कहते हैं । जिसमे ३२ भाग अपना क्षेत्र स्पर्श करता है और ६ भाग १ युग के ६२ चन्द्र मास हैं । यहाँ मास इकाई है जो चन्द्र मास की है। वायव्य कोण में सूर्य का क्षेत्र स्पर्श यह होना चाहिए । देखिये सू० प्र०, टीका श्री अमोलक ऋषि) । यह शोध का विषय है। पुन: २८+-+ इतने अद्ध मण्डल चन्द्र १ मास ___चंद्र की तीसरी अयन में गया हुआ, पश्चिम भाग में प्रवेश में चलता है, इसलिए १४वें मण्डल पर १ अयन सम्पूर्ण हो जाता करता हुआ बाहर के १५वें मण्डल से १४वें मण्डल पश्चिम के है तथा २८ मण्डल पर दो चन्द्रायण सम्पूर्ण होते हैं। पुनः ३रे अद्ध मण्डल के ३९ भाग और .. १८. चूणि भाग चंद्र अपने अयन में पन्द्रहवें मण्डल से प्रवेश करते १४वें मण्डल पर ३४, १८ ६७१६७४ ३१ ला का चलने पर चन्द्रमास सम्पूर्ण होता है। एक चन्द्र - मण्डल पर व पर के मण्डल पर चलता है। अर्थात् मास में चन्द्रमा १ नक्षत्र व २ अर्द्ध मण्डल और ३रे अर्द्धमण्डल के ईशान कोण के स्वक्षेत्र चल कर १७ और ८०४८३ चूणि ३१ भाग चलता है। प्रश्न है कि यह कौन-से २ भाग अग्निकोण के सूर्य के पर क्षेत्र पर चलता है। इस प्रकार क्षेत्र में सम्पूर्ण करता है। यह नक्षत्र मास सम्पूर्ण होते वा चन्द्र बाहर से १४वां नैऋत्य कोण के अद्ध मण्डल पर १ चन्द्र मास सम्पूर्ण होता है । कारण यह है कि चन्द्र मास १ युग में ६२ हैं निकलते १४वें अर्द्धमण्डल के भाग आकर नक्षत्र सम्पूर्ण करता और चन्द्र अर्द्ध मण्डल १७६८ हैं। है, क्योंकि १ युग में नक्षत्र मास ६७ हैं इसलिए १ युग में १७६८ ::. १ मास में चन्द्र अर्द्ध मण्डल = १७५८=२८३२ अर्द्धमंडल। अर्द्धमण्डल चन्द्र होने से १ नक्षत्रमास में चन्द्र अर्द्धमण्डल की संख्या यदि ६७वें भाग करना हो तो ३२ में ६७ का गुणाकर पुनः है। इस प्रकार एक नक्षत्र मास में २६ ६७ ८७ १७६६ प्राप्त होता है। इसका ६२X६७४३१ ६२ ६२४६७ का भाग देते हैं, इससे या प्राप्त होता अर्द्ध मण्डल हैं उन्हें तथा २७वें अर्द्ध मण्डल में २५ भाग चन्द्र चलहै और शेष ३६ रहते हैं। इनके ३१ये भाग करने हेतु कर नक्षत्र मास पूर्ण करता है। इस प्रकार १ अयन के १४ अर्द्ध मण्डल निकलते ही दूसरी अयन के १२ अर्द्ध मण्डल+ भाग चलता है। किन्तु पहले मान ७५३६ होता है। १४वें अर्द्ध मण्डल पर २ भाग कहा है । कारण कि दूसरी अयन इस प्रकार १ चन्द्र मास में अर्द्ध मण्डल २८+ + का दूसरे अर्द्ध मण्डल से प्रारम्भ होता है, इसलिए १३वें अर्द्ध मण्डल में १ मिलाने पर १४ २६ में एक नक्षत्र मास सम्पूर्ण नोट-स्मरण रहे कि यहाँ इकाइयाँ ६२, ६७ एवं ३१ के क्रमश: भाग के भागों पर आधारित स्थापित की गई हैं । ६२ पर्व होता है। इसके पश्चात : संख्या है या १ युग में चन्द्र मास की संख्या है। १ युग में ४ १८ ६७४३१ होते हैं। , अर्द्ध मण्डल ६७४१ ख
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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