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गणितानुयोग : प्रस्तावना
६२
२४.
६६
= २४ ( ८१६+४+६३६६७)
युग की समाप्ति पर पुनः उसी नक्षत्र और चन्द्र का उसी मण्डल अभिजित नक्षत्र का अतिक्रमण + + मुहूर्त प्रदेश में योग होता है। में करता है।
सूर्य नक्षत्र योग १५ मुहूर्त योग वाले ६ नक्षत्रों का अतिक्रमण १५४६-६०
सूर्य विवक्षित दिवस में जिस नक्षत्र के साथ जिस मण्डल मूहूर्त में करता है।
प्रदेश में योग प्राप्त करता है, स्वमण्डल में भ्रमण करता वही ४५ मूहूर्त योग वाले ६ नक्षत्रों का अतिक्रमण ४५४६=
सूर्य ३६६ अहोरात्र अतिक्रमण कर पुनः उसी मण्डल प्रदेश में २७० मुहूर्त में करता है।
उसी के समान नक्षत्र के साथ योग करता है। दृष्टव्य है कि ३० मुहूर्त योग वाले १५ नक्षों का अतिक्रमण ३०x१५ =
उसी नक्षत्र से योग नहीं होता अन्य उसी के समान नक्षत्र से ही ४५० मुहूर्त में करता है।
योग होता है। .:. चक्रवाल के समस्त नक्षत्रों का चन्द्र से योग काल =
स्पष्टीकरण इस प्रकार है
जहाँ तक चन्द्र का प्रश्न है, चन्द्र चक्रवाल मण्डल के ८१६+-+- मुहूर्त में करता है।
परिभ्रमण क्रमण में, १ मास में २८ नक्षत्रों का उपभोग करता है। ६२६२x६७
उन नक्षत्रों को सूर्य २८(३६६) अहोरात्र में भोगता है। एक दूसरे चक्र में पुनः इतना समय लगता है, इसलिए ५६ नक्षत्रों
सूर्य संवत्सर ३६६ अहोरात्र का होता है। पूर्वोक्त नियमानुसार का योग काल
अन्य ३६६ अहोरात्र दूसरे २८ नक्षत्रों का उपभोग करता है । तत्पश्चात् फिर से वही पूर्व के २८ नक्षत्रों को उतनी ही अहोरात्र संख्या से धीरे-धीरे गमन करके योग करता है । पश्चात् ३६६
अहोरात्र को व्यतीत करके सूर्य उसी मण्डल प्रदेश में उसी प्रकार = १६३८+ +:२२
के दूसरे नक्षत्र के साथ योग करता है, उसी नक्षत्र के साथ नहीं। विवक्षित दिवस में जिस नक्षत्र के साथ रहा हुआ सूर्य जिस
मण्डल प्रदेश में योग करता है, तत्पश्चात् धीरे-धीरे स्वकक्षा में १९६२ '६२४६७
भ्रमण करता वही सूर्य उसी नक्षत्र के साथ उसी मण्डल प्रदेश
फिर से दूसरे सूर्य संवत्सर के अन्त में योग प्राप्त करता है। ६७' ६२x६७
द्वितीय चक्र में २(३६६)= ७३२ अहोरात्र का प्रमाण होता है । इसी प्रकार ५ वर्ष में ५४ ३६६-१८३० अहोरात्र होते हैं । यहाँ
वक्ष्यमाण शब्द का प्रयोग किया गया है। उपरोक्त को वक्ष्यमाण 'नोट-उपरोक्त भिन्नों की गणना जहाँ ६२वाँ भाग और ६२
कहा गया है। वक्ष्यमाण शब्द का अर्थ व्याख्यान मान होता है। के एक भाग का ६७वाँ भाग लिया जाता है, वहाँ योग उपरोक्त
परीक्षण दृष्टि से भी यह देखने में आया है कि उसी नक्षत्र से
योग न होकर उसी के समान अन्य नक्षत्र से होता है। दूसरे प्रकार से सम्पन्न होगा। इन्हें क्रमशः ८१६ |
और युग के अन्त में वही प्रमाण दुगुना होता है। अर्थात् २४१८३०
=३६६० होता है । इत्यादि । यहाँ कहा गया है कि ३६६० रूप में संस्कृत टीका मु. घासीलाल जी ने अहोरात्र के बाद पुनः वही सूर्य मण्डल के उसी देश में उसी नक्षत्र
से योग करता है। व्यक्त किया है।
सूत्र १०६५, पृ० ५७४____ अब १ युग में २८ नक्षत्रों के चन्द्र योग काल को यहाँ
युग के पाँच संवत्सरों की प्रथमा पूर्णमासी में चन्द्र किस ५४६०० मुहूर्त बतलाया है। स्पष्टीकरण इस प्रकार है-१ युग में १८३० अहोरात्र होते हैं । १ अहोरात्र में ३० मुहूर्त होते हैं। नक्षत्र से योग करता है ? धनिष्ठा नक्षत्र के साथ ३+ + अतएव १ युग में १८३०४ ३०=५४६०० मुहूर्त होते हैं । १ युग पश्चात् जैन गणना में उसी नक्षत्र और चन्द्र पुनः उसी मण्डल
- मुहूर्त प्रमाण काल योग रहने पर चन्द्र प्रथम पूर्णिमा के भाग में इतने मुहूर्त पश्चात् मिलते हैं। यह चक्र पुनः चलता ६२४ ६७ है और २४ (५४६००)= १०९८०० मुहूर्त व्यतीत होने पर २ सम्पूर्ण करता है।
= १६३८+४+६५+६७
=१६३८+६+६२५७ मुहूर्त लगते हैं।