________________
सूत्र १०१६-१०२०
तिर्यक् लोक : पौरुषी छाया का प्रमाण
गणितानुयोग
५१५
जावइयं सूरिए उड्ढं उच्चत्तेणं, एवइयाई दोहि अाहि अनुमान प्रमाण से दो भागों में विभक्त की जाती है वहाँ सूर्य दोहि छायाणुमाण-प्पमाणेहि उमाए, एत्थ णं से सूरिए दो (पुरुषप्रमाण) पौरुषी छाया की निष्पत्ति करता है। दुपोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ त्ति, ३-६५. एवं एएण अभिलावेणं णेयव्वं,-जाव
(३-६५) इस प्रकार इस अभिलाप से जानना चाहिए
यावत्तत्थ जे ते एवमाहंसु
उनमें से जो इस प्रकार कहते हैं६६. "ता अस्थि णं से देसे-जंसि णं देसंसि सूरिए छण्ण- ६६. ऐसा एक देश है-जिस देश में सूर्य छन्नवें पौरुषी छाया उई पोरिसीयं छायं निव्वत्तेइत्ति"
की निष्पत्ति करता है। ते एवमाहंसु,
(वे अपनी मान्यता को इस प्रकार सिद्ध करते हैं) ता सूरियस्स णं सव्वहिटिमाओ सूरप्पडिहीओ बहित्ता इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अधिक सम-रमणीय भुभाग से सूर्य अभिणिसट्राहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहि इमीसे रयण- जितना ऊँचा है उतने ही “छन्नवें" मार्गों में सूर्य के सबसे नीचे प्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ के निवेश से निकली हुई किरणों से स्पशित पदार्थ की छाया जावइयं सूरिए उड्ढ उच्चत्तेणं, एवइयाई छण्णउईए जहाँ अनुमान प्रमाण से छन्न भागों में विभक्त की जाती है वहाँ छायाणुमाण-पमाणेहि उमाए, एत्थ णं से सूरिए छण्ण- सूर्य छन्नवें (पुरुष प्रमाण) पौरुपी छाया की निष्पत्ति करता है। उई पोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ त्ति, वयं पुण एवं वयामो
हम फिर इस प्रकार कहते हैंता साइरेग-अउण द्वि-पोरिसीणं सूरिए पोरिसिच्छायं सूर्य कुछ अधिक उनसठ (५६) पौरुषी छाया की निष्पत्ति
निव्वत्तेइ त्ति, -सूरिय. पा. ६, सु. ३१ करता है । पोरिसिच्छाय-प्पमाणं
पौरुषी छाया का प्रमाण
२०. (क) ५०-ता अवद्ध-पोरिसी गं छाया दिवसस्स कि गए वा, २०. प्र-अपाधं पौरुषी "आधीपौरुषी" अर्थात् पुरुष की आधी सेसे वा?
छाया तथा सभी प्रकाश्य पदार्थों की आधी छाया, दिन का कितना भाग बीतने पर अथवा कितना भाग शेष रहने पर
होती है ? उ०-ता ति-भागे गए वा सेसे वा।
उ०—दिन के तीन भाग बीतने पर अथवा तीन भाग शेष
रहने पर आधी पौरुषी होती है । (ख) ५०–ता पोरिसी गं छाया दिवसस्स किं गए वा, सेसे प्र०-पौरुषी अर्थात् पुरुष की स्वप्रमाण छाया, तथा सभी वा?
प्रकाश्य पदार्थों की स्वप्रमाण छाया, दिन का कितना भाग
बीतने पर अथवा कितना भाग शेष रहने पर होती है? उ०--ता चउभागे गए वा, सेसे वा,
उ.-दिन के चार भाग बीतने पर तथा दिन के चार भाग शेष रहने पर "पौरुषी-छाया" होती है।
१ पौरुषी की परिभाषा
"पुरिसत्ति, संकू, परिस-सरीरं वा, ततो, पुरिसे निप्फन्ना पोरिसी, एवं सबस्स वत्थुणों यदा स्वप्रमाणा छाया, भवति, तदा हवइ, एवं पोरिसि-प्रमाणं उत्तरायणस्स अंते, दक्षिणायणस्स, आईए इक्कं दिणं भवइ अतोपरं अद्ध-एगसटिभागा अंगलस्स दक्षिणायणे बड्डंति, उत्तरायणे हस्संति, एवं मंडले मंडले अन्ना पोरिसी' । "यह पौरुषी की परिभाषा सूर्य-प्रज्ञप्ति की टीका में नन्दिचूर्णी से उधृत है ।” चूर्णी की परिभाषा संस्कृत-मिश्रित प्राकृत होती है-अतः ऊपर अंकित चूर्णी-पाठ अशुद्ध नहीं है।