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________________ ४१४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : पौरुषी छाया का निवर्तन सूत्र १०१६ पोरिसिच्छाय-निव्वत्तणं-- पौरुषी छाया का निवर्तन१९. ५०-ता कइकट्ठ ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेइ ? आहिए १६. प्र०—सूर्य किस स्थान में कितनी पौरुषी छाया की निष्पत्ति त्ति बएज्जा, करता है ? कहें। उ०-तत्थ इमाओ छण्णउइ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस सम्बन्ध में ये छन्नवे (९६) प्रतिपत्तियाँ (मान्यतायें) तं जहा कही गई हैं यथातत्लेगे एवमाहंसु इनमें से एक (मान्यता वाले) इस प्रकार कहते हैं१. ता अत्थि णं से देसे-जंसि णं देसंसि सूरिए एग- (१) एक ऐसा देश (स्थान) है-जिस देश में सूर्य एक पोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ, एगे एवमाहंसु, पौरुषी-छाया की निष्पत्ति करता है, एगे पुण एवमाहंसु एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं२. ता अस्थि णं से देसे-जसि णं देसंसि सूरिए दु- (२) एक ऐसा देश है-जिस देश में सूर्य दो पौरुषी छाया पोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ, एने एवमाहंसु, की निष्पत्ति करता है। एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं,-जाव-(३-६५) (३-६५) इस प्रकार इस अभिलाप से जानना चाहिए यावत्एगे पुण एवमाहंसु एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं --- ६६. ता अस्थि णं से देसे-जंसि णं देसंसि सूरिए छण्ण- (६६) एक ऐसा देश है-जिस देश में सूर्य छिन्नवे पौरुषी उइ पोरिसीयं छाय निव्वत्तेइ, एगे एवमाहंसु, छाया की निष्पत्ति करता है । तत्थ जे ते एवमाहंसु उनमें से जो इस प्रकार कहते हैं -- १. ता अस्थि णं से देसे-जंसि णं देसंसि सूरिए एग- (१) एक ऐसा देश है -- जिस देश में सूर्य एक पौरुषी-छाया पोरिसीयं छायं नित्वत्तेइ त्ति, की निष्पत्ति करता है। ते एवमाहंसु, (वे अपनी मान्यता को इस प्रकार सिद्ध करते हैं) ता सूरियस्स णं सव्वहेट्ठिमाओ सूर-प्पडिहीओ बहित्ता इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अधिक सम-रमणीय भूभाग से सूर्य अभिणिसट्टाहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहि इमीसे रयण- जितना ऊँचा है उतने ही एक मार्ग में, सूर्य के सबसे नीचे के प्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ निवेश से निकली हुई किरणों से स्पशित पदार्थ की छाया जहाँ जावइयं सूरिए उड्ढ उच्चत्तेणं, एवइयाए एगाए अद्धाए, अनुमान प्रमाण से विभक्त की जाती है, वहाँ सूर्य (एक पुरुष एगेणं छायाणुमाणप्पमाणेणं उमाए, तत्थ से सूरिए प्रमाण) पौरुषी छाया की निष्पत्ति करता है। एगपोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ त्ति, तत्थ जे ते एवमाहंसु उनमें से जो इस प्रकार कहते हैं२. ता अत्थि णं से देसे, जंसि णं देसंसि सूरिए (२) ऐसा एक देश है- जिस देश में सूर्य दो पौरुषी छाया दु-पोरिसीयं छायं निव्वत्तेइ 'त्ति' की निष्पत्ति करता है। ते एवमाहंसु, (वे अपनी मान्यता को इस प्रकार सिद्ध करते हैं) ता सूरियस्स णं सव्वहेटिमाओ सूर-प्पडिहीओ बहिता इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अधिक सम-रमणीय भूभाग से सूर्य अभिणिसदाहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहि, इमीसे रयण- जितना ऊँचा है उतने ही दो मार्गों में सूर्य के सबसे नीचे के प्पभाए पुढबीए बहसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ निवेश से निकलती हुई किरणों से स्पशित पदार्थ की छाया जहाँ १ तत्र-तेषां षष्ण बत: परतीथिकानां मध्ये, एके एवमाहुः "ता' इति पूर्ववत् अस्ति स देशो, यस्मिन् देशे सूर्यः आगतःसन् एकपौरूषी-एकपुरुष-प्रमाणां (पुरुषग्रहणमुपलक्षणं सर्वस्यापि प्रकाश्यवस्तुनः स्व-प्रमाणां) छायां निवर्तयति, --सूर्य. टीका.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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