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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : सूर्य के तापक्षेत्र की संस्थिति
सूत्र १०१०
सूरियस्स तावक्खेत्तसंठिती
सूर्य के ताप-क्षेत्र की संस्थिति१०.५०-ता कहं ते तावक्खेत्तसंठिती ? आहिए त्ति वएज्जा, १०. प्र०—सूर्य के ताप-क्षेत्र की संस्थिति = व्यवस्था कैसी है ?
कहें। उ०-तत्थ खलु इमाओ सोलसपडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-(सूर्य के तापक्षत्र से सम्बन्धित) ये सोलह प्रतितं जहा
पत्तियाँ मान्यताएँ कही गई हैं, यथातत्थ णं एगे एवमाहंसु
(१) इनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं । १. ता गेहसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता,
"घर के आकार जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति एगे एवमाहंसु,
कही गई है। २. एगे पुण एवमाहंसु
(२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, गेहावणसंठिया तावक्खेत्त संठिती पण्णत्ता,
गुहापण=घर और दुकान एक साथ जैसी (सूर्य के) तापक्षेत्र एगे एवमाहंसु,
की संस्थिति कही गई है। ३. एगे पुण एवमाहंसु
(३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, पासायसंठिया तावक्खेत्तसंठिती पणत्ता,
प्रासाद=राजमहल जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति एगे एवमाहंसु,
कही गई है। ४. एगे पुण एवमासु
(४) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, गोपुरसंठिया तावक्खेत्तसंठितो पण्णत्ता,
गोपुर नगरद्वार जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति एगे एवमाहंसु,
कही गई है। ५. एगे पुण एवमाहंसु
(५) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, पिच्छाघरसंठिया तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता,
प्रेक्षा-गृह = मंत्रणागृह जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति एगे एवमाहंसु,
कही गई है। ६. एगे पुण एवमाहंसु
(६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, वलभीसंडिया तावक्खेत्तसंठिती पप्णता,
वलभी = घर पर ढाँके जाने वाले छप्पर जैसी (सूर्य के) एगे एवमाहंसु,
तापक्षेत्र की संस्थिति कही गई है। ७. एगे पुण एबमाहंसु
(७) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, हम्मियतलसंठिया तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता,
हऱ्यातल-तलघर जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति एगे एवमाहसु,
कही गई है। ८. एगे पुण एवमाहंसु
(८) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, वालग्गपोतिया संटिया तावक्खेत्तसंठिती पण्णता, वालाग्रपोतिका = आकाशतटाक के मध्य में स्थित क्रीडागृह एगे एवमाहंसु,
के लिए लघुप्रासाद जैसी (सूर्य के) ताप-क्षेत्र की संस्थिति कही
गई है। ६. एगे पुण एवमाहंसु
(६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, जस्संठिए जंबुद्दीवे तस्संठिए तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता, जम्बुद्वीप का जो आकार है उसी आकार की (सूर्य के) एगे एवमाहंसु,
ताप-क्षेत्र की संस्थिति कही गई है। १०. एगे पुण एवमाहंसु
(१०) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, जस्संठिए भारहे वासे तस्संठिए तावक्खेत्तसंठिती भरतक्षेत्र का जो आकार है उसी आकार की (सूर्य के) पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु,
ताप-क्षेत्र की संस्थिति कही गई है।