SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र १००८-१००६ तिर्यक् लोक : जम्बूद्वीप में सूर्यों का तापक्षेत्र गणितानुयोग ५०३ ५०-तं भंते ! कि एगदिसि ओभासेंति, छद्दिसि ओभासेंति ? प्र०- हे भगवन् ! क्या वे एक दिशा को प्रकाशित करते हैं ? या छः दिशा को प्रकाशित करते हैं ? उ०-गोयमा ! नो एक दिसि ओभासेंति, नियमा छसि उ०-हे गौतम ! वे एक दिशा को प्रकाशित नहीं करते हैं ओभाति ।' -भग. स. ८, उ. ८, सु. ३६-४० वे नियमित छहों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं। जंबुद्दीवे सूरियाणं ताव खेत्तपमाणं-- जम्बूद्वीप में सूर्यों का तापक्षेत्र प्रमाण६. ५०-(क) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया-केवतियं खेत्तं १. प्र०-(क) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य ऊपर उड्ढं तवंति ? की ओर कितना क्षेत्र तपते हैं ? (ख) केवतियं खेत्तं अहे तवंति ? (ख) नीचे की ओर कितना क्षेत्र तपते हैं ? (ग) केवतियं खेत्तं तिरियं तवंति ? (ग) तिरछे कितना क्षेत्र तपते हैं ? उ०—(क) गोयमा ! एगं जोयणसयं उड्ढं तवंति,२ उ०—(क) हे गौतम ! ऊपर की ओर एक सौ योजन तपते हैं। (ख) अट्ठारसजोयणसयाई अहे तवंति,' (ख) नीचे की ओर अठारह सौ योजन तपते हैं। (ग) सीयालीसं जोयणसहस्साई दोणि तेवढें जोयण- (ग) तिरछे सैतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन और एक सए एक्कवीसं च सद्विभाए जोयणस्स तिरियं योजन के साठ भागों में से इकवीस भाग जितना क्षेत्र तपते हैं। तवंति, - भग. स. ८, उ. ८, मू. ४५ - (क्रमशः) ५०-तं भंते ! कि सविसए ओभासेंति, अविसए ओभासेति ? उ०-गोयमा ! सविसए ओभासें ति नो अविसए ओभासेंति, प०-तं भंते ! कि आणुपुट्विं ओभासेंति अणाणुपुब्वि ओभासेंति ? उ०-गोयमा ! आणुपुब्वि ओभासेंति नो अणाणुपुब्धि ओभासें ति, प०-तं भंते ! कइ दिसि ओभासेंति ? | उ०-गोयमा ! नियमा छद्दिसि ओभासेंति, प०-तं भंते ! किं एगदिसि ओभासेंति छद्दिसि ओभासेंति ? उ०-गोयमा ! नो एगदिसि ओभासें ति, नियमा छद्दिसि ओभाति, -भग. स. ८, उ. ८, सु. ३६ टीका १ जम्बु. बक्ख. ७, सु. १३७ । २ सूर्य के विमान से सौ योजन ऊपर शनैश्चर ग्रह का विमान है और वहीं तक ज्योतिष चक्र की सीमा है, अतः इससे ऊपर सूर्य का तापक्षत्र नहीं है। ३ (क) जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह से जयंतद्वार की ओर लवण समुद्र के समीप क्रमशः एक हजार योजन पर्यन्त भूमि नीचे है, इस अपेक्षा से एक हजार योजन तथा मेरु के समीप की समभूमि से ८०० योजन ऊँचा सूर्य का विमान है, ये आठ सौ योजन संयुक्त करने पर अठारह सौ योजन सूर्य विमान से नीचे की ओर का तापक्षेत्र है, अन्य द्वीपों में भूमि सम रहती है । इसलिए वहाँ सूर्य का नीचे का तापक्षेत्र केबल आठ सौ योजन का है । अठारह सौ योजन नीचे की ओर के तापक्षत्र के और सौ योजन ऊपर की ओर के तापक्षेत्र के इन दोनों संख्याओं के संयुक्त करने पर १६०० योजन का सूर्य का तापक्षत्र है। ४ (क) यहाँ तिरछे तापक्षेत्र का कथन पूर्व-पश्चिम दिशा की अपेक्षा से कहा गया है, अर्थात् उत्कृष्ट इतनी दूरी पर स्थित सूर्य मानव-चक्ष से देखा जा सकता है। उत्तर में १८० योजन न्यून पैंतालीस हजार योजन तथा दक्षिण दिशा में द्वीप में १८० योजन और लवण समुद्र में तेतीस हजार तीन सौ तेतीस योजन तथा एक योजन के तृतीय भाग युक्त दूरी से सूर्य देखा जा सकता है । (ख) जम्बूद्दीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एगुणवीसजोयणसयाई अड्डमहो तवयति । -सम. १६ सु. २ (ग) जम्बु. वक्ख. ७ सु. १३६ । (घ) सूरिय. पा. ४, सु. २५ । (च) चन्द. पा. ४ सु. २५ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy