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________________ ५०२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : जम्बूद्वीप में सूर्यों को क्षेत्रगति का प्ररूपण सूत्र १००७-१००८ जंबुद्दीवे सूरिया पडुप्पन्न खेत्तं उज्जोवेति- जम्बूद्वीप में सूर्य वर्तमान क्षेत्र को उद्योतित करते हैं७. ५०—(क) जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे सूरिया–कि तीयं खेत्तं (७) प्र०-(क) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य क्या उज्जोति ? अतीत क्षेत्र को उद्योंतित करते हैं ? (ख) पडुप्पन्न खेत्तं उज्जोबॅति ? (ख) वर्तमान क्षेत्र को उद्योतित करते हैं ? (ग) अणागय खेत्तं उज्जोवेति ? (ग) अनागत क्षेत्र को उद्योतित करते हैं ? उ.-(क) गोयमा ! नो तीयं खेत्तं उज्जोति, उ०—(क) हे गौतम ! वे अतीत क्षेत्र को उद्योतित नहीं करते हैं। (ख) पडुप्पन्न खेत्तं उज्जोर्वेति, (ख) वर्तमान क्षेत्र को उद्योतित करते हैं । (ग) नो अणागयं खेत्तं उज्जोति, (ग) अनागत क्षेत्र को उद्योतित नहीं करते हैं । एवं तवेंति, एवं भासंति-जाव-नियमा छद्दिसि इसी प्रकार तपाते हैं, इसी प्रकार प्रकाशित करते हैं यावत् भासंति,' -भग. स. ८, उ. ८, सु. ४१-४२ नियमित रूप से छहों दिशाओं को प्रकाशित करते हैंजबुद्दीवे सूरिया पडप्पन्न खेत्तं ओभासंति जम्बूद्वीप में सूर्य वर्तमान क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं८. ५०-(क) जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे सूरिया, कि तीयं खेत्तं ८. प्र०—(क) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य क्या ओभासंति? अतीत क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? (ख) पडुप्पन्न खेत्तं ओभासंति ? (ख) बर्तमान क्षेत्र की प्रकाशित करते हैं ? (ग) अणागयं खेत्तं ओभासंति ? (ग) या अनागत क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? उ०—(क) गोयमा ! नो तीयं खेत्तं ओभासंति, उ०-(क) हे गौतम ! अतीत क्षेत्र को प्रकाशित नहीं करते हैं। (ख) पडुप्पन्न खेत्तं ओभासंति, (ख) वर्तमान क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं । (ग) नो अणागयं खेत्तं ओभासंति, (ग) अनागत क्षेत्र को प्रकाशित नहीं करते हैं। प०-तं भंते ! कि पुट्ठ ओभासंति, अपुट्ठ ओभासंति ? प्र०-हे भगवन् ! क्या वे स्पर्शित क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? या अस्पृष्ट क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? उ०-गोयमा? पुट्ठ ओभासंति, नो अपुट्ठ ओभासंति-जाव-२ उ०-हे गौतम ! वे स्पशित क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं । अस्पशित क्षेत्र को प्रकाशित नहीं करते हैं । १ जम्बु० वक्ख. ७, सु० १३७ । २ -यावत्-पद से संग्रहितसूत्रः ५०-तं भंते ! कि ओगाढं ओभासंति, अणोगाढं ओभासंति ? उ०-गोयमा ! ओगाढं ओभासंति, नो अणोगाढं ओभासंति, प०-तं भंते ! किं अणंतरोगाढं ओभासंति. परंपरोगाढं ओभासंति ? उ०-गोयमा ! अणंतरोगाढं ओभासंति, नो परंपरोगाढं ओभासंति, प०-तं भंते ! कि अणु ओभासंति, बायर ओभासेंति ? उ०-गोयमा ! अणुपि ओभासेंति, बायरं पि ओभासेंति. प०-तं भंते ! कि उड्ढं ओभासेंति, तिरिय ओभासेंति अहे ओभासेंति ? उ०-गोयमा ! उड्ढं पि, तिरियं पि, अहे वि ओभासेंति, प०-तं भंते ! कि आई ओभासें ति, मज्झे ओभासेंति, अंते ओभासेंति ? उ०-गोयमा ! आई पि, मझे वि, अंते वि ओभासेंति, (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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