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सूत्र १००५-१००६
तिर्यक् लोक : जम्बूद्वीप में सूर्यों की क्षेत्रगति का प्ररूपण
गणितानुयोग
५०१
हणंति,
(क) ता जे णं पुग्गला सूरियस्स लेस्स फुसति ते णं पुग्गला जितने पुद्गल सूर्य के तेज का स्पर्श करते हैं वे ही पुद्गल सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति,
सूर्य के तेज को अवरुद्ध करते हैं । (ख) अदिट्ठा वि णं पुग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, अदृष्ट (सूक्ष्म) पुद्गल भी सूर्य के तेज को अवरुद्ध करते हैं। (ग) चरिमलेस्संतरगया वि पुग्गला सूरियस्स लेस्सं पडि- चरिम (मेरु पर्वत के चारों ओर के ऊपरी भाग के) पुद्गल
-सूरिय. पा. ५, सु. २६ भी सूर्य तेज को अवरुद्ध करते हैं । जंबुद्दीवे सूरियाणं खेत्तगइ-परूवणं-
जम्बूद्वीप में सूर्यों को क्षेत्र गति का प्ररूपण६. ५०—(क) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया-कि तीयं खेत्तं ६. प्र.-(क) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य क्या गच्छंति ?
अतीत क्षेत्र में चलते हैं ? (ख) पडुप्पन्न खेत्तं गच्छंति ?
(ख) वर्तमान क्षेत्र में चलते हैं ? (ग) अणागयं खेत्तं गच्छंति ?
(ग) या अनागत क्षेत्र में चलते हैं ? उ०—(क) गोयमा ! णो तीयं खेत्तं गच्छति ।
उ०—(क) हे गौतम ! अतीत क्षेत्र में नहीं चलते हैं । (ख) पडुप्पन्न खेत्तं गच्छंति,
(ख) वर्तमान क्षेत्र में चलते हैं । (ग) नो अणागयं खेत्तं गच्छंति ।
(ग) अनागत क्षेत्र में नहीं चलते हैं। ५०.-तं भंते ! कि पुट्ट गच्छंति, अपुटु गच्छंति ?
प्र० --हे भगवन् ! वे सूर्य वर्तमान क्षेत्र का स्पर्श करके
चलते हैं या स्पर्श किये बिना ही चलते हैं ? उ०-गोयमा ! पुट्ठ गच्छंति, नो अपुटु गच्छंति-जाव- उ०—हे गौतम ! वे सूर्य वर्तमान क्षेत्र का स्पर्श करके ही
चलते हैं, स्पर्श किये बिना नहीं चलते हैं यावत्५०-तं भंते ! कि एगदिसि गच्छंति, छदिसि गच्छंति ? प्र०—हे भगवन् ! क्या वे (सूर्य) एक दिशा में चलते हैं या
छहों दिशा में चलते हैं ? उ०—गोयमा ! णो एगदिसि गच्छंति, नियमा छद्दिसि उ०-हे गौतम ! वे एक दिशा में नहीं चलते हैं, वे निश्चित गच्छति।
-जंबु. वक्ख. ७, सु. १३७ रूप से छहों दिशा में चलते हैं ।
१ चन्द. पा. ५ सु. २६ ।
२ भग. स. ८, उ.८, सु. ३८ । ३ यावत्-पद से संग्रहित सूत्र
प०-तं भंते ! कि ओगाढं गच्छंति, अणोगाढं गच्छंति ? उ०-गोयमा ! ओगाढं गच्छंति णो अणोगाढं गच्छति । प०-तं भंते ! कि अणंतरोगाढं गच्छंति, परंपरोगाढं गच्छंति ? उ०-गोयमा ! अणंतरोगाढं गच्छंति, णो परंपरोगाढं गच्छति । १०-तं भंते ! कि अणु गच्छंति, बायरं गच्छंति ? उ०-गोयमा ! अणुपि गच्छंति, बायरं पि गच्छंति । प०-तं भंते ! कि उद्धं गच्छंति. अहे गच्छंति. तिरियं गच्छति ? उ०-गोयमा ! उद्धं पि गच्छंति, अहे वि गच्छंति, तिरियं वि गच्छंति ।
तं भंते ! कि आइं गच्छंति, मज्झे गच्छंति, पज्जवसाणे गच्छंति ? गोयमा ! आई पि गच्छंति, मझे वि गच्छंति, पज्जवसाणे बि गच्छति । तं भंते ! कि सविसयं गच्छति, अविसयं गच्छंति ? गोयमा ! सविसयं गच्छंति, णो अविसयं गच्छति । तं भंते ! किं आणुपुब्बि गच्छंति, अणाणुपुट्विं गच्छंति ? गोयमा ! आणुपुबि गच्छति, णो अणाणुपुनि गच्छंति । तं भंते ! कि एगदिसि गच्छंति-जाव-छद्दिसि गच्छंति ? गोयमा ! नो एगदिसि गच्छंति, नियमा छद्दिसि गच्छंति ।
-जम्बु. वक्ख. ७, सु. १३७, टीका से उद्धृत