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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : सूय-तेज को अवरुद्ध करने वाले पर्वत
सूत्र १००५
एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१२. ता सूरियावत्तंसि गं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा (१२) सूर्य का तेज "सूर्यावर्त' पर्वत से अवरुद्ध होता है। पडिहया आहिए त्ति वएज्जा एगे एवमाहसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१३. ता सूरियावरणंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा (१३) सूर्य का तेज "सूर्यावरण" पर्वत से अवरुद्ध होता है। पडिहया आहिए ति वएज्जा एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है-- १४. ता उत्तमंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया (१४) सूर्य का तेज "उत्तम" पर्वत से अवरुद्ध होता है । आहिए त्ति वएज्जा एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१५. ता दिसादिसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडि- (१५) सूर्य का तेज "दिशाओं के आदिरूप" पर्वत से अवरुद्ध हया आहिए त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु
होता है। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१६. ता अवयंसंसि गं पन्वयं सि सूरियस्स लेस्सा पडि- (१६) सूर्य का तेज "अवतंस" पर्वत से अवरुद्ध होता है। हया आहिए त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु -
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१७. ता धरणि खीलंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा (१७) सूर्य का तेज 'धरणी-कील" पर्वत से अवरुद्ध पडिहया, आहिए ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु. होता है। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है१८. ता धरणि सिगंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा (१८) सूर्य का तेज "धरणी-शृंग" पर्वत से अवरुद्ध पडिहया आहिए ति वएज्जा, एंगे एवमाहंसु, होता है। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है- . १६. ता पच्वइंदसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडि- (१६) सूर्य का तेज “पर्वतेन्द्र" पर्वत से अवरुद्ध होता है। हया आहिए त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है२०. ता पन्वयरायसि नं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा (२०) सूर्य का तेज "पर्वतराज' पर्वत से अवरुद्ध होता है। पडिहया आहिए त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, वयं पुण एवं वयामो
हम फिर ऐसा कहते हैंजंसि जं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया, से ता जिस पर्वत से सूर्य का तेज अवरुद्ध होता है वह “मन्दर मंदरे वि पवुच्चइ-जाव-पव्वयराया वि पवुच्चइ,' पर्वत" भी कहा जाता है-यावत्- "पर्वतराज' भी कहा
जाता है।
१ मन्दरस्स णं पब्वयस्स सोलस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा, गाहाओ
(१) मन्दर (२) मेरु (३) मणोरम (४) सुदंसण (५) सयंपभे य (६) गिरिराया ।। (७) रयणुच्चय (८) पियदसण (6-१०) मज्झे लोगस्स, नाभी य ॥१॥ (११) अच्छे य (१२) सूरियावत्ते (१३) सूरियावरणे ति य ॥ (१४) उत्तमे य (१५) दिसादि य (१६) वडेसेइ य सोलसे ।।२।।
-(क) सम. स. १६, सु. ३
-(ख) जम्बु. वक्ख. ४, सु. १०६ इन दो गाथाओं में “मन्दर पर्वत" के सोलह नाम गिनाये हैं, यहाँ उनके अतिरिक्त चार औपमिक नाम और भी हैं। मन्दर पर्वत के इन बीस पर्यायवाची नामों को अन्यान्य मान्यता वाले भिन्न भिन्न पर्वत मानते हैं। किन्त सर्यप्रज्ञप्ति के संकलन कर्ता ने समवायांग और जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति के अनुसार मन्दर पर्वत के ये बीस पर्यायवाची नाम मानकर सभी अन्य मान्यताओं का "समन्वय" किया है।