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________________ सूत्र १००३ एगे पुग एवमाहं २१. ता अणुसागरोवयमेव रिवस भोया अन्या उपज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु - २२. ता अणुसागरोवम-यमेव सूरियस्स ओवा अण्णा उपज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु २२. ता अनुसागरोचम- सहस्वमेवरिया भोया अभ्या उपज अण्णा अवेइ, एगें एवमाहंसु, एगे पुग एवमाहं -- तिर्यक लोक सूर्य के ओज की संस्थिति २४. ता अगुसागरोवम-सयस हस्तमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहसु २५. ता अणु उस्सप्पिणि, ओसप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु,' वयं पुण एवं वयामो (क) ता ती ती मुहले सूरियस मोया अट्टिया भ ते परं सूरियस ओया अगट्टिया भव (च) धम्मासे रिए ओपंडि छम्मासे सूरिए ओयं अभिवुड्ढइ, (ग) नियममाणे सुरिए बेि पविसमा सुरिए दे अभि प० - तत्थ को हेउ ? आहिए ति वएज्जा, उ०- ता अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दीव-समुद्दाणं सव्वभंतराए सम्म खुट्टा वट्टे जाव जोयणसहस्वमायाम विक्खंभे णं तिष्णि जोयणसयसहस्साइं दोण्णि य सत्ता से जोणस, तिणि कोसे, अट्ठावीसं च घणुसयं, तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किचि विसेसाहिए परिक्खेवे णं पण्णत्ते, गणितानुयोग ૪૨ एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है (२१) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक सागरोपम में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है । एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है (२२) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक सौ सागरोपम में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है । एक मान्यता वालों ने फिर ऐसा कहा है ( २३ ) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक हजार सागरोपम में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है। एक (मान्यता वालों ने) फिर ऐसा कहा - (२४) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक लाख सागरोपम में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता हैं । एक (मान्यता बालों) ने फिर ऐसा कहा है (२५) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है । हम फिर इस प्रकार कहते हैं (क) सूर्य का प्रकाश तीस तीस मुहूर्त पर्यन्त अवस्थित रहता है तदनन्तर सूर्य का प्रकाश अनवस्थित हो जाता है । (ख) सूर्य का प्रकाश छः मास में घटता रहता है। सूर्य का प्रकाश छः मास में बढ़ता रहता है । (ग) (सर्वाभ्यन्तर मण्डल से भागों में से एक एक भाग को ) घटाता रहता है । निकलता हुआ सूर्य (१०३० देश को ( प्रत्येक अहोरात्र में ) (सर्व बाह्यमण्डल से सर्वाभ्यन्तर मण्डल की ओर प्रवेश करता हुआ सूर्य (१८३० भागों में से एक एक भाग को ) देश को (प्रत्येक अहोरात्र में बढ़ता रहता है। प्र०—- इस प्रकार कथन करने का हेतु क्या है ? कहें । उ०---- यह जम्बूद्वीप द्वीप सब द्वीप समुद्रों के अन्दर हैं सबसे छोटा है वृत्ताकार संस्थान से स्थित है— बाबद एक सा योजन लम्बा चौड़ा है, तीन लाख दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठावीस धनुष तेरह अंगुल और कुछ अधिक की परिधि कही गई है। अं १ इन प्रतिपत्तियों से ऐसा प्रतीत होता है कि जैनागमों के अतिरिक्त अन्य दार्शनिक पुराणादि ग्रन्थों में भी औपमिककालवाचक "पल्योपम-सागरोपम, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी" आदि शब्दों का प्रयोग था । वर्तमान में भी यदि पुराणादि ग्रन्थों में इन औपमिककाल वाचक शब्दों का कहीं प्रयोग हो तो अन्वेषणशील आत्मायें प्रत् करके प्रकाशित करें ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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