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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : सूर्य के ओज को संस्थिति
सूत्र १००३
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(१) ता जया णं सूरिए सम्वन्भंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता (१) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति
चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारस- करता है तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन मुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई होता है, जघन्य बारह मुहुर्त की रात्रि होती है ।
भवइ, (२) से निक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि (२) (सर्वाभ्यन्तर मण्डल से) निकलता हुआ सूर्य नये संवत्सर
अहोरत्तंसि अभिंतराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं के दक्षिणायन को प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में आभ्यन्तचरइ,
रान्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए अमितराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता जब सूर्य आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति चारं चरइ, तया णं एगे णं राइदिए णं एगं भागं करता है तब मण्डल को अठारह सौ तीस भागों में विभाजित ओयाए दिवसखित्तस्स निवुढित्ता रयणि-खित्तस्स करके एक अहोरात्र में एक भाग दिवस क्षेत्र के एक प्रकाश को अभिवुड्ढित्ता चार चरइ, मंडलं अट्ठारसेहि तीसेहिं घटाकर और रजनि-क्षेत्र को बढ़ाकर गति करता है । सहि छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, दोहिं एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहूर्त के इगसठ भागों में से दो भाग कम मुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहत्ता राई भवइ; दोहिं एगट्ठि- अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इगसठ भाग भागमुहुर्तेहि अहिया,
तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (३) से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभिंतरा- (३) (आभ्यन्तरानन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य अंतरं तच्चं मण्डलं उबसंकमित्ता चार चरइ, दूसरे अहोरात्र में आभ्यन्तरानन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके
गति करता है । ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं तच्चं मण्डलं उवसंक- जब सूर्य आभ्यन्तरान्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके मित्ता चारं चरइ, तया गं दोहिं राइदिएहिं दो भागे गति करता है तब मण्डल को अठारह सौ तीस भागों में ओयाए दिवस-खेत्तस्स निवुढिता, रयणि-खेत्तस्स- विभाजित करके दो अहोरात्र में दो भाग दिवस-क्षेत्र के प्रकाश अभिवुड्ढेत्ता चारं चरइ, मंडलं अट्ठारसेहिं तीसेहिं को घटाकर और रजनि-क्षेत्र को बढ़ाकर गति करता है। सरहिं छत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चहिं एगट्ठिभाग उस समय एक मुहुर्त के इगसठ भागों में से चार भाग कम मुहुर्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, चहिं एगट्ठि- अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इगसठ भाग भागमुहुत्तेहि अहिया,
तथा चार भाग अधिक बारह मुहुर्त की रात्रि होती है । (४) एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणत- (४) इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर
राओ मण्डलाओ तयाणंतर मण्डलं संकममाणे संकम- मण्डल से तदनन्तर मण्डल को संक्रमण करता करता प्रत्येक माणे एगमेगे मंडले, एगमेगे णं राइदिए णं एगमेगं मण्डल में एवं प्रत्येक अहोरात्र में एक एक भाग दिवस क्षेत्र के एगमेगं भाग ओयाए दिवस-खेत्तस्स निव्वुड्ढेमाणे प्रकाश को घटाता घटाता और रजनि-क्षेत्र को बढ़ाता बढ़ाता निव्वुड्ढेमाणे रयणि-खेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे अभिवुड्ढे- सर्व बाह्य मण्डल की ओर बढ़ता हुआ गति करता है ।
माणे सव्व बाहिरं मंडलं उवसंकमिता चारं चरइ, (५) ता जया ण सूरिए सव्वमंतराओ मंडलाओ सव्व बाहिरं (५) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से सर्व बाह्यमण्डल की
मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तथा णं सम्वन्भंतरं ओर गति करता है तब मण्डल को अठारह सौ तीस भागों में मंडलं पणिहाय एगे णं तेसिए राइंदियसए णं एग विभाजित करके सर्वाभ्यन्तर मण्डल को छोड़कर एक सौ तेसोयं भागसयं ओयाए दिवस-खेत्तस्स निव्वुड्ढेत्ता तिरासी भाग दिवस क्षेत्र के प्रकाश को घटाकर और रजनि-क्षेत्र रयणि-खेत्तस्त अभिवुड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठार- को बढ़ाकर गति करता है। सेहिं तोसेहिं सएहि छेत्ता,