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________________ सूत्र १००२ तिर्यक् लोक : सूर्य की उदय-व्यवस्था wwwwwwwwww (क) ता जया जं दिवसे इतया भवइ, जया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं दाहिणड्ढे वारसमुहुत्ता राई भवइ, जपा गं उत्तर तया णं याहि दी राहिण सारसमुहुसे दाहिगडे वारसमुहसा राई (ख) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तथा णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ वारसा दिवसे भव वारसमुहसा राई अव (ग) तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम पच्चत्थि मे गं वत्थि पण्णरसमुहने दिवसे भवइ वस्थिपण्णरसमुहत्ता राई भवइ, , वोच्छिष्णा ण तत्थ राइंदिया पण्णत्ता, समणाउसो ! एवमाहं, ' - सूरिय. पा. ८ सु. २६ १ वयं पुण एवं वयामो ता जंबुद्दीवे दी सूरिया, उदो-पाई मुमाच्छति पाईप दाहिति पाईं दाणिच्छति दाह-पढीमागच्छंत, ग्राहिण-पोषणच्छंति, पोग-उदीमागच्छति पडी - उदीणमुग्गच्छंति, उदीण पाइणमागच्छंति, * २. (क) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पथ्वयस्स दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेवि दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ, तथा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे पच्चत्थिमे गं राई भबइ, गणितामयोग wwwwwwwwww ૪૯૧ (क) जय जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणा में बारह मुहूर्त का दिन होता है तर उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। जब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणाद्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। (ख) जत्र जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणा में मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है । तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रानि होती है। जब उत्तराद्ध में बारह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है तब दक्षिणा में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (ग) उस समय जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व-पश्चिम में न पन्द्रह मुहूर्त का दिन होता है और न पह मुहूर्त की रात्रि होती है। वहाँ रात-दिन व्युच्छिन्न कहे गये हैं, हे आयुष्मन् श्रमण ! एक मान्यता वाले इसे इस प्रकार कहते हैं । हम फिर इस प्रकार कहते हैंजम्बूद्वीप द्वीप में सूर्य १ - उसर-पूर्व (ईशानकोण) में उदय होते हैं और पूर्व दक्षिण (आग्नेयकोण) में आते हुए दिखाई देते हैं। पूर्व-दक्षिण (आग्नेयकोण) में उदय होते हैं और दक्षिण पश्चिम (नैऋत्यकोण) में आते ( हुए दिखाई देते ) हैं । दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में उदय होते हैं और पश्चिमउत्तर (वायव्यकोण) में आते ( हुए दिखाई देते ) हैं । पश्चिम-उत्तर वायव्यकोण में उदय होते हैं और उत्तरपूर्व (ईशानकोण) में आते ( हुए दिखाई देते ) है । १ चन्द. पा. ८, सु. २६ । २ (क) प० जीवे पं घंते! दीवे सूरिआ, उदीप यागमुगच्छ पाईप दाहिणमागच्छति ? - २ - ( क ) जब जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिणाद्ध में दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है । जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है तब जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व और पश्चिम में रात्रि होती है । पाइन दाहिमुच्छ दाहिणीणमागच्छति ? दाहिण -पडीणमुग्गच्छ पडीण - उदीण मागच्छंति ? पडी-उदीमा उदीयमान ? उ०- हंता गोपमा ! जहा पंचमसए पहले उसे जावर उस्सप्पिणी अपट्टिए सत्य काले पं. समगाउसो ! - भग. स. ५, उ. १, सु. ५ (ख) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १५० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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