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________________ सूत्र १००२ तिर्यक् लोक : सूर्य को उदय-व्यवस्था गणितानुयोग ४८६ (च) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे तेरसमुहुत्तागंतरे (च) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में तेरह मुहुर्त से कुछ दिवसे भवइ, तया णं उत्तरढेऽवि तेरसमुहत्ताणतरे कम का दिन होता है तब उत्तराद्धं में भी तेरह मुहर्त से कुछ दिवसे भवइ, कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जब उत्तराद्ध में तेरह मुहुर्त से कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढेऽवि तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, तब दक्षिणाद्ध में भी तेरह मुहुर्त से कुछ कम का दिन होता है । (छ) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे (छ) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में बारह मुहुर्त से दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेऽवि बारसमुहत्ताणतरे कुछ कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी बारह महर्त से दिवसे भवइ, कुछ कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त में कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढेऽवि बारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, तब दक्षिणार्द्ध में भी बारह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है। (ज) तथा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पवधस्स पुरत्थिम- (ज) जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व-पश्चिम में पन्द्रह पन्चत्थिमे णं णो सया पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, मुहूर्त का दिन सदा नहीं होता है और न पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि णो सया पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ, ही सदा होती है। अणवट्ठिया णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता, वहाँ रात-दिन अनवस्थित कहे गये हैं। समणाउसो ! एगे एवमाहंसु, हे आयुष्मन् श्रमण ! एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं। ३. एगे पुण एवमाहंसु (३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं(क) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहूत्ते (क) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध भरत में अठारह दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राई मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि भवइ, होती है। जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया जब उत्तरार्द्ध में अठारह मुहूर्त का दिन होता है तब णं दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ता राई भवइ, . दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। (ख) ता जया णं जबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ता- (ख) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में अठारह मुहूर्त से णंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे सारसमुहुत्ता कुछ कम का दिन होता है, तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की राई भवइ. रात्रि होती है। जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जय उत्तरार्द्ध में अठारह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता तया णं दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ता राई भवइ. है तब दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (क) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते (क) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में सत्रह मुहूर्त का दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राई दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में वारह मुहूर्त की रात्रि होती है । भवइ, जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जब उत्तरार्द्ध में सत्रह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ता राई भवइ, में भी बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । (ख) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुता- (ख) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में सत्रह मुहूर्त से कुछ गंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ता कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि राई भवइ, होती है। जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में सत्रह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ता राई भवइ, तब दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। (क) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सोलसमुहुत्ते (क) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में सोलह मुहूर्त का दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहत्ता राई दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । भवइ,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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