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________________ ४८८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्य की उदय-व्यवस्था सूत्र १००२ (छ) ता जया णं जंबुद्दीवे दीदें दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ते (छ) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेऽवि बारसमुहत्ते होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है । दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया जब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध णं दाहिणड्ढेऽवि बारसमुहत्ते दिवसे भवइ, में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है। (ज) तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्बयस्स पुरत्थिम- (ज) जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दरपर्वत से पूर्व-पश्चिम में सदा पच्चत्यिमे णं पण्णरसमुहत्ते दिवसे भवइ, सया पन्द्रह मुहूर्त का दिन होता है और पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ, अवट्ठिया णं तत्थ है । वहाँ रात-दिन अवस्थित कहे गये हैं। राइंदिया पण्णत्ता, समणाउसो ! एगे एवमाहंसु, हे आयुष्मन् श्रमण ! एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं । २. एगे पुण एवमाहंसु (२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं(क) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहत्ता- (क) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में अठारह मुहूर्त से जंतरे दिवसे भवइ. तया णं उत्तरढेऽबि अट्ठारस- कुछ कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध भी अठारह मुहूर्त से मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, कुछ कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में अठारह मुहूर्त से कुछ कम का दिन तया णं दाहिणड्ढेऽवि अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे होता है । तब दक्षिणार्द्ध में भी अठारह मुहूर्त से कुछ कम का भवइ, दिन होता है। (ख) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ता-. (ख) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में सत्रह मुहूर्त से कुछ गंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेऽवि सत्तरस- कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी सत्रह मुहूर्त से कुछ मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, कम का दिन होता है । जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में सत्रह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढेऽवि सत्तरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, तब दक्षिणार्द्ध में भी सत्रह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है । (ग) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सोलसमुहुत्ता- (ग) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में सोलह मुहूर्त से कुछ जंतरे दिवसे भवइ, तया जं उत्तरड्ढेऽवि सोलस- कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी सोलह मुहूर्त से कुछ मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में सोलह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढेऽवि सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तब दक्षिणार्द्ध में भी सोलह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है । (घ) ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे पण्णरसमुहत्ता- (घ) जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्द्ध में पन्द्रह मुहूर्त से कुछ जंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेऽवि पण्णरस- कम का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी पन्द्रह मुहूर्त से कुछ मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में पन्द्रह मुहुर्त से कुछ कम का दिन होता है तया णं दाहिणड्ढेऽवि पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तब दक्षिणाद्ध में भी पन्द्रह मुहुर्त से कुछ कम का दिन होता है । (ङ) ता जया णं जंबुद्दीवे दोवे दाहिणड्ढे चोटुसमुहुत्ता- (ड) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में चौदह मुहुर्त से कुछ गंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेऽवि चोद्दस- कम का दिन होता है। तब उत्तरार्द्ध में भी चौदह मुहूर्त से कुछ मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, कम का दिन होता है। जया णं उत्तरड्ढे चोद्दसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जब उत्तरार्द्ध में चौदह मुहुर्त से कुछ कम का दिन तया णं दाहिणड्ढेऽवि चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी चौदह मुहूर्त से कुछ कम का दिन होता है। भवइ,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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