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सूत्र EE८-ECT
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उ०- हंता गोपमा ! लवणसमुद्दे यूरिया
तिर्यक् लोक : धातकीखण्ड में सूर्योदयादि की प्ररूपणा
उदगाव-उरीगाईमागच्छति
"जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया, सच्चेव सब्वा अपरिसेसिया लवणसमुदस्स विभाषियन्या"
नवरं - इमेण आलावेण सव्वे आलावगा भाणियव्वा, प० - " जया णं भंते ! लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तथा गं उत्तर वि दिवसे भवट्ट, जयागं उत्तर दिवसे भवइ, तया णं लवणे समुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमेण राई भवइ । "
उ०- हंता गोयमा ! जया णं लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ-जाव तयाणं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं राई भवइ,
एएणं अभिलावेणं णेयव्वं, "
-भग. स. ५, उ. १, सु. २२
चायइडे सूरिय उदया पहवणा६६. १० - धायइसंडे णं भंते ! दीवे सूरिया
उदीच पाया जाय-उदीण पाईणमागच्छति ?
उ०- हंता गोपमा ! धायसंडेदीये सूरियाउचाई शाद-उदीण पाईपमानांत
"जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया, सच्चेव धायइडस्स वि भाणियव्वा,
नवरं — इमेण आलावेण सव्वे आलावगा भाणियव्वा ।
प०
० जया गं ! धामसंडे नीचे बहिण
दिवसे भव तयानं उत्तर वि दिवसे भवद्द, जया में उत्तर दिवसे भवइ, तया णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरत्थम-पश्चत्विमे राई भवइ ?
उ०- हंता दोषमा! जय गं धायसंडे दौवे दाहि
दिवसे भवइ - जाव-तया णं धायइसंडे दोवे मंदराणं पवयाणं पुरत्थम-स्वस्थिमेणं राई भवइ ।
प० -जया णं भंते! धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्बयाणं पुरात्थिमेणं दिवसे भव तथा नं पच्चरियमेव दिवसे भवइ ?
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१ (क) सूरिय. पा. ८, सु, २६ ।
(ग) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १५० ।
उ०- हां गौतम ! लवणसमुद्र में सूर्यईशानकोण में उदय होकर — यावत्-ईशानकोण में अस्त होते हैं।
गणितानुयोग
जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में पहले जितने प्रश्नोत्तर कहे गये हैं वे सारे प्रश्नोत्तर लवणसमुद्र के सम्बन्ध में कहने चाहिए ।
विशेष - प्रश्नोत्तर इस प्रकार जानने चाहिए।
प्र० - हे भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्ध में दिन होता है तब उत्तरार्ध में भी दिन होता है, जब उत्तरार्ध में दिन होता है तब लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में रात्रि होती है ?
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उ०- हाँ गौतम ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्ध में दिन होता है— यावत्— तब लवणसमुद्र के पूर्व-पश्विम में रात्रि होती है ।
एसे प्रश्नोत्तर जानने चाहिए।
धातकीखण्ड में सूर्योदयादि की प्ररूपणा६६६. प्र० - हे भगवन ! धातकीखण्ड द्वीप में सूर्य
ईशानकोण में उदय होकर - यावत् — ईशानकोण में अस्त होते हैं ?
उ०- हे गौतम ! धातकीखण्ड द्वीप में सूर्यईशानकोण में उदय होकर यावत्-ईशानकोण में अस्त होते हैं।
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"जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में पहले जितने प्रश्नोत्तर कहे गये हैं। वे सारे प्रश्नोत्तर धातकीखण्ड के सम्बन्ध में कहने चाहिए। विशेष—इस आलापक के अनुसार सारे आलापक कहने चाहिए ।
उ०- हा
प्र० - हे भगवन् ! जब धातकीखण्ड द्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है, जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है तब धातकीखण्डद्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्वपश्चिम में रात्रि होती है ?
गौतम ! जब धातकीखण्ड द्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है - यावत् तब धातकीखण्ड के मन्दर पर्वत से पूर्व - पश्चिम में रात्रि होती है।
(ख) चन्द्र. पा. ८, स. २६ ॥
प्र० - हे भगवन् ! जब धातकीखण्ड द्वीप में मन्दर पर्वतों से पूर्व में दिन होता है तब पश्चिम में भी दिन होता है ?