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________________ सूत्र ६६७ तिर्यक् लोक : सूर्य वर्णन गणितानुयोग ४८३ २. ५०-जावइयं णं भंते ! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं (२) प्र०-भगवन् ! उदय के समय में सूर्य चारों ओर से सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ, तवेइ, पभासेइ। जितने क्षेत्र को आतप से अवभासित करता है उद्योतित करता है, तपाता है प्रभासित करता है। अस्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेतं आयवेणं क्या अस्त समय में भी सूर्य चारों ओर से उतने ही क्षेत्र सव्वओ समंता ओभासेइ, उज्जोएइ, तवेइ पभासेइ? को आतप से अवभासित करता हैं ? उद्योतित करता है ? तपाता है ? प्रभासित करता है ? उ०-गोयमा ! जावइयं ण खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं उ०–हाँ गौतम ! उदय के समय में सूर्य चारों ओर से सव्वओ समंता ओभासेइ, उज्जोएइ, तवेइ. पभासेइ। जितने क्षेत्र को आतप से अवभासित करता है, उद्योतित करता है तपाता है, प्रभासित करता है। अस्थमंते वि सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं अस्त समय में भी सूर्य चारों ओर से उतने ही क्षेत्र को सव्वओ' समंता ओभासेइ, उज्जोएइ, तबेइ, पभासेइ। आतप से अवभासित करता है, उद्योतित करता है । तपाता है प्रभासित करता है। ३. प०–त भंते ! कि पुटु ओभासेइ ? अपुट्ठ ओभासेइ? (३) प्र०-भगवन् ! क्या वह सूर्य स्पृष्टक्षेत्र को अवभासित करता है। ___ उ०—गोयमा ! पुट्ठ ओभासेइ, नो अपुट्ठ । उ०-हे गौतम ! स्पृष्टक्षेत्र को अवभासित करता है अस्पृष्टक्षेत्र को अवभासित नहीं करता है। ४. ५०-तं भंते ! कि ओगाढं ओभासेइ ? अणोगाढं ओभा- (४) प्र०-भगवन् ! क्या वह अवगाढक्षेत्र को अवभासित करता है? उ०—गोयमा ! ओगाढं ओभासेइ, नो अणोगा । उ०-हे गौतम ! अवगाढक्षेत्र को अवभासित करता है । अनवगाढक्षेत्र को अवभासित नहीं करता है । ५. ५०–त भंते ! कि अणंतरोगाढं ओभासेइ ? परम्परोगाद (५) प्र०-भगवन् ! क्या वह अनन्तरावगाढक्षेत्र को अवओभासेइ? भासित करता है ? या परम्परावगाढ क्षेत्र को अवभासित करता है ? उ०-गोयमा ! अणंतरोगाढ ओभासेइ, नो परंपरोगाढं। उ०—हे गौतम ! अवगाढक्षेत्र को अवभासित करता है परम्परावगाहक्षेत्र को अवभासित नहीं करता है ? ६.५०–त भंते ! कि अणुं ओभासेइ ? बायरं ओभासेइ? (६) प्र०-भगवन् ! क्या वह अणु (सूक्ष्म) को अवभासित करता है ? या बादर (स्थूल) को अबभासित करता है ? उ०-गोयमा ! अणु पि ओभासेइ, बायरं पि ओभासेइ। उ०—हे गौतम ! अणु को भी अवभासित करता है; बादर को भी अवभासित करता है। ७. ५०-तं भंते ! कि उड्ढं ओभासेइ ? तिरियं ओभासेइ ? (७) भगवन् ! क्या वह ऊँचे क्षेत्र को अवभासित करता अहे ओभासेइ ? है ? तिरछे क्षेत्र को अवभासित करता है? नीचे के क्षेत्र को अवभासित करता है ? उ०-गोयमा ! उड्ढे पि ओभासेइ तिरिय पि ओभासेइ उ०-हे गौतम ! ऊँचे, तिरछे और नीचे के क्षेत्र को भी अहे पि ओभासेइ। अवभासित करता है। ८.५०-तं भंते ! कि आइं ओभासेइ ? मज्झे ओभासेइ ? (८) प्र०-भगवन् ! क्या वह सूर्य क्षेत्र के आदि भाग को अंते ओभासेइ ? अवभासित करता है ? क्षेत्र के मध्यभाग को अवभासित करता है। क्षेत्र के अन्तिमभाग को अवभासित करता है ? उ०--गोयमा ! आइपि ओभासेइ मज्झे वि ओभासेइ उ-हे गौतम ! वहाँ सूर्य क्षेत्र के आदि भाग को, मध्यअते वि ओभासेइ। भाग को और अन्तिम भाग को अवभासित करता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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