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________________ ४८० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्रमण्डलों की संख्या सूत्र ६६२-६६४ एत्थ जोतिसिदा जोतिसि रायाणो महिड्ढीया-जाव- महधिक-यावत – पल्योपम की स्थिति वाले ज्योतिषकेन्द्र पलिओवमद्वितीया परिवसंति,' ज्योतिषराज रहते हैं। तेणं तत्थ पत्तेय पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं अतः प्रत्येक चन्द्र के चार हजार सामानिक देव-यावत - -जाव-चंददीवाणं चंदाण य रायहाणीणं, अणेसि च चन्द्रद्वीपों के चन्द्रों की राजधानियाँ है और वे अन्य अनेक बहणं जोतिसियाणं देवाणं देवीण य आहेबच्च-जाव- ज्योतिषी देव-देवियों पर आधिपत्य करते हुए-यावत्-विहरण विहरति । करते हैं। से तेणटुण गोयमा ! एवं वुच्चइ- 'चंदद्दीवा हे गौतम ! इस कारण से 'चन्द्रद्वीप' चन्द्रद्वीप कहे जाते हैं। चंदद्दीवा।" अदुत्तरं च णं गोयमा ! चंदद्दीवा सासया-जाव- अथवा हे गौतम ! चन्द्रद्वीप शाश्वत है-यावत्-नित्य है । णिच्चा। -जीवा० पडि० ३, ७० २, सु० १६२ चंदाणं रायहाणीण परूवणं चन्द्रा राजधानियों का प्ररूपण६६३.५०-कहि णं भते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंदाओ णाम ६३१. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के चन्द्रों की चन्द्र राजधानियाँ रायहाणीओ पण्णत्ताओ? ___ कहाँ कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! चंदहीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीव- उ०-हे गौतम ! चन्द्रद्वीपों के पूर्व में तिरछे असंख्य द्वीप समुद्दे वोतिवतित्ता अण्णमि जबुद्दोवे दोवे बारस में बारह योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नाम की जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं राजधानियाँ कही गई हैं। उनका प्रमाण पूर्ववत्-यावत्-- ऐसे चंदाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं चेव पमाण महधिक चन्द्रदेव है। -जाव-महिड्ढीया-जाव- चंदा देवा, चंदा देवा । -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १६२ रवि-ससि-णक्खत्तेहि अविरहियाणं, विरहियाणं, साम- सूर्य-चन्द्र और नक्षत्रों से अविरहित-विरहित तथा सामान्य ण्णाणं य चन्दमण्डलाणं सखा-- चन्द्रमंडलों की संख्या६६४. (क) ता एएसि णं पण्णरसण्हं चंदमण्डलाणं अत्थि चन्दमण्डला ६६४. (क) इन पन्द्रह चन्द्रमण्डलों में से कुछ चन्द्रमण्डल ऐसे हैं जे गं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया, जो सदा नक्षत्रों से अविरहित रहते हैं । (ख) अत्थि चन्दमण्डला जे णं सया णक्खतहिं विरहिया, (ख) कुछ चन्द्रमण्डल ऐसे हैं जो सदा नक्षत्रों से विरहित रहते हैं। (ग) अस्थि चन्दमण्डला जे णं रवि-ससि-णक्खत्ताणं सामण्णा (ग) कुछ चन्द्रमण्डल ऐसे हैं जो सूर्य-चन्द्र और नक्षत्रों के भवंति, साथ सामान्य रहते हैं। (घ) अस्थि चन्दमण्डला जे णं सया आदिच्चेहि विरहिया, (घ) कुछ चन्द्रमण्डल ऐसे जो सदा सूर्यों से विरहित रहते हैं। ५०—(क) ता एएसि णं पण्णरसण्हं चन्दमण्डलाणं कयरे प्र०-(क) इन पन्द्रह चन्द्रमण्डलों में से कितने चन्द्रमण्डल चन्दमण्डला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया? ऐसे हैं जो सदा नक्षत्रों से अविरहित रहते हैं ? (ख) कयरे चन्दमण्डला जे णं सया णक्खत्तेहिं विर- (ख) कितने चन्द्रमण्डल ऐसे हैं जो सदा नक्षत्रों से विरहित रहते हैं ? हिया ? १ प्र०-चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? उ०-गोयमा ! जहण्णणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं । -पण्णं. प. ४, सु. ३६७ (१) प्रज्ञापना के इस पाठ से ऊपर अंकित जीवाभिगम के पाठ का साम्य नहीं है, चन्द्र-ज्योतिष्क देवों का इन्द्र है अत: उसकी स्थिति सदा उत्कृष्ट ही होती हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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