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________________ सूत्र ६२६-६३१ तिर्यक् लोक : चन्द्रद्वीपों के नाम का हेतु गणितानुयोग ४७६ उ०—ता जंसि गं देसंसि चन्दे चरिमं बाट्ठि पुण्णिमा- उ-चंद्र अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा को मंडल के जिस सिणि जोएंति, ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मंडलं देश = विभाग में योग करता है उसी पूर्णिमा स्थान से आगे चउव्वीसेणं सए णं छेत्ता सोलसभागे ओसक्क- वाले मंडल के एक सौ चौबीस विभाग करके उनमें से सोलह वइत्ता, एत्थ णं से चन्दे चरिमं बाढि अमावासं भाग कम करके चन्द्र अन्तिम बासठवीं अमावास्या को योग जोएइ,' -सूरिय. पा. १०, पाहु. २२, सु. ६५ करता है । जम्बुद्दीवग चंदाणं चंददोवा ___ जम्बूद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप--- १. ५०–कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णाम ६२६. प्र० -- हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ दीवा पण्णता? कहे गये हैं? उ०—गोयमा ! जंबुद्दीवस्स मदरस्स पब्वयस्स पुरथिमे णं उ०-हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से पूर्व में लवण लवणसमुद्दबारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता-एत्थ समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रों के णं जबुद्दीवगाणं चदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता। 'चन्द्रद्वीप' नाम के द्वीप कहे गये हैं। जंबुद्दीवतेणं अद्धकोणणउइ जोयणाई चत्तालीस वे चन्द्रद्वीप जम्बूद्वीप के अन्तिम भाग से साढ़े नवासी योजन पंचाणउइंभागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवण- तथा एक योजन के पचानवें भागों में से चालीस भाग जितने समुदंतेणं दो कोसे ऊसिया जलंताओ, जल से ऊँचे हैं और लवणसमुद्र के अन्तिम भाग से दो कोस जल से ऊँचे हैं। बारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेण, वे बारह हजार योजन के लम्बे कहे गये हैं । सेसं तं चेव जहा गोतमदीवस्स । शेष सब पूर्ववत् गौतम द्वीप जैसा है। पत्तेयं पत्तेयं एगाए पउमवरवेइयाए, एगेण य वण- प्रत्येक चन्द्रद्वीप एक-एक पद्मवरवेदिका और एक एक वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्तेण चिट्ठति, दोण्हं खण्ड से घिरे हुए हैं । यहाँ दोनों के वर्णक हैं। वि वण्णओ। चंददीवाणं अंतो-जाव-बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा चन्द्रद्वीपों के अन्दर-यावत्-सर्वथा सम रमणीय भूमिभाग पण्णता,-जाव-जोइसिया देवा विहरति ।। कहे गये हैं - यावत् - ज्योतिषी देव वहाँ विहरण करते हैं । तेसि णं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पासायवडेंसगा उन चन्द्रद्वीपों के सर्वथा समरमणीय भूभागों पर बासठ बाढेि जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं, ___ योजन ऊंचे प्रासादावतंसक हैं। पासायवण्णो भाणियब्वो। यहाँ प्रासादों के वर्णक कहने चाहिए। तेसि गं बहुसमरमणिज्जभूमिभागाणं बहुमज्झदेस- उन सर्वथा सम रमणीय भूभागों के मध्य भाग में मणिभाए मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ, ताओ मणिपेढियाओ पीठिकायें दो योजन लम्बी-चौड़ी हैं-यावत -सपरिवार दो जोयणाई आयाम-विक्खभेणं-जाव-सीहासण। सपरि सिंहासन कहने चाहिए। वारा भाणियब्वा । --जीवा० पडि०३, उ० २. मू०१२ चंददीवाणं णामहेऊ चन्द्रद्वीपों के नाम का हेतु९६२.५०-से केण?णं भंते ! एव बुच्चइ-"चंदद्दीवा, चंद- ६३०. प्र०-हे भगवन् ! किस कारण से चन्द्रद्वीप चन्द्रद्वीप कहे दीवा?" जाते हैं ? उ०-गोयमा ! चंदद्दीवेसु णं तत्थ तत्थ तहि तहिं बहसु उ०-हे गौतम ! चन्द्रद्वीपों में जगह जगह छोटी छोटी खड्डासु खुड्डियासु बहुई उप्पलाई चंदवण्णाभाई चंदा बावड़ियाँ हैं उनमें अनेकानेक चन्द्र वर्ण वाले कमल हैं। वहाँ पर १ चन्द पा. १० सु. ६५ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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