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________________ ४७८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्र का अमावस्या में योग सूत्र ९८९-९६० अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहि भागेहिं दोहि य मंडल के चार भागों को प्राप्त किए बिना तीन भागों में दो दो कलाहिं पच्चथिमिल्लं चउभागमडलं असंपत्ते कलाओं से चंद्र अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा को योग करता है। एत्थ णं चंदे चरिमं बाढि पुण्णिमासिणि जोएइ .१ -सुरिय० पा० १०, पाहु० २२, सु०६३ चन्दस्स अमावासासु जोगो चन्द्र का अमावस्याओं में योग६६०. १. ५०–ता एएसि गं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं अमावासं ६६०. प्र०-इन पाँच संवत्सरों की प्रथम अमावस्या को चंद्र चंदे कसि देसंसि जोएइ? मंडल के किस देश विभाग में योग करता है ? उ०—ता जंसि णं देसंसि चन्दे चरिमं बाढि अमावासं उ०-चंद्र अन्तिम बासठवीं अमावस्या को जिस देश में जोएइ ताए अमावासटाणाए मंडलं चउव्वीसे णं योग करता है उसी अमावस्या स्थान से आगे वाले मंडल के एक सएणं छत्ता बत्तीस भागे उवाइणावेत्ता एत्थ णं से सौ चौबीस विभाग करके उनमें से बत्तीस भाग लेकर उनमें चंद्र चन्दे पढमं अमावासं जोएइ, प्रथम अमावस्या को योग करता है। एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुण्णिमासिणीओ इस प्रकार जिस अभिलाप से चंद्र का पूर्णिमाओं में योग भणिआओ तेणेव अभिलावेणं अमावासाओ भाणि- कहा है उसी अभिलाप से चंद्र का अमावस्याओं में योग कहना यवाओ तं जहा-बिइया, तइया, दुवालसमी। चाहिए, यथा-द्वितीया, तृतीया, बारहवीं । एवं खलु एएणं उवाएणं ताए ताए अमावासाठाणाए इस प्रकार इस क्रम से उन उन अमावस्याओं में मंडल के मंडलं चउव्वीसे णं सएणं छत्ता बत्तीसं बत्तीसं भागे एक सौ चौबीस विभाग करके उनमें से बत्तीस बत्तीस विभागों उवाइणावेत्ता तंसि तंसि देसंसि तं तं अमावासं को लेकर उन उन विभागों में एवं उन उन अमावस्याओं में चंदेण जोएइ, चन्द्र योग करता है। २.१०–ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरमं बाट्टि प्र०-इन पाँच संवत्सरों की अन्तिम बासठवीं अमावस्या अमावासं चन्दे कंसि देसंसि जोएइ? को चंद्र मंडल के किस देश में योग करता है। १ (क) चन्द. पा. १० सु. ६३ "जम्बुद्दीवस्स णमित्यादि" । जम्बूद्वीपस्य णमिति वाक्यालंकारे द्वीपस्योपरि प्राचीना प्राचीनतया, इह प्राचीन ग्रहणेनोत्तरपूर्वा (ईशान) गृह्यते, अपाचीन ग्रहणेन दक्षिणापरा, (नैऋत्य) । ततोऽयमर्थः पूर्वोत्तर-दक्षिणापरायतया, एवमुदीचि-दक्षिणायतया, पूर्व-दक्षिणोत्तरापरायतया जीवया प्रत्यंच्चया दवरिकया इत्यर्थः, मण्डलं चतुर्विशेन-चतुर्विशष्यधिकेन शतेन छित्वा, विभज्य भूयश्चतुर्भिविभज्यते, ततो दाक्षिणात्ये चतुर्भाग मण्डले एकत्रिशभागप्रमाणे सप्तविंशतिभागानुपादायाष्टाविंशतितमं च भागं विंशतिधा छित्वा तद्गतानष्टादशभागानपादायशेषस्त्रिभिर्भागश्चतुर्थस्य भागस्य द्वाभ्यां कलाभ्यां, पाश्चात्यं चतुर्भागमडलमसंप्राप्तः अस्मिन् प्रदेशे चन्द्रो द्वाषष्टितमां चरमा पौणिमासि परिसमापयति । _ -टीका २ "एवमित्यादि" एवमुक्तप्रकारेण येनैवाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्यो भणितास्ते नैवाभिलापेनामावास्या अपि भणितव्या तद्यथा-द्वितीया, तृतीया, द्वादशी च ताश्चैवम् । प०–ता एएसि णं पंचह संवच्छराणं दोच्च अमावासं चंदे कसि देसंमि जोएइ? उ०-ता जंसि णं देससि चन्दे पढम अमावास जोएइ, ताओ णं अमावासट्ठाणाओ मंडलं चउवीसेणं सएणं छेत्ता बत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे दोच्चं अमावासं जोएड, प०–ता एएसि णं पंचह संवच्छराणं तच्च अमावासं चन्दे कंसि देसंसि जोएइ ? उ०-ता जंसि णं देसंसि चंदे दोच्चं अमावासं जोएइ, ताओ अमावासट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता, बत्तीस भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चन्दे तच्च अमावासं जोएइ, प०-ता एएसि णं पंचण्हं संबच्छराणं दुवालसमं अमावासं चन्दे कंसि देसंसि जोएइ? उ०—ता जंसि णं देसंसि चन्दे तच्च अमावासं जोएइ, ताओ णं अमावासटाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता, दोण्णि अट्ठासीए भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं चन्दे दुवालसमं अमावासं जोएइ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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