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________________ ३६६ × ५ वर्ष = १८३० अहोरात्र होते हैं । इसलिए ६७ का २१ भाग १८३० में देने पर नक्षत्रमास में २७ अहोरात्र होते हैं ६७ और १८३० अहोरात्र होते है, इसलिए १ सूर्यमास में सूत्र १०६३, पृ० ५६६- चन्द्र अर्द्धमास अर्थात् १ पक्ष में चन्द्र १४ म मण्डल में भ्रमण करता है । वह इस प्रकार है कि १ मण्डल के १२४ भाग होते "अथवा ८१६ मुहूर्त होते हैं । १ युग में सूर्यमास ६० होते हैं हैं । पाँच वर्ष वाले युग में १२४ पर्व होते हैं तथा ६२ मास होते हैं । १ युग में १७६८ मण्डल होते हैं । इस प्रकार १ पर्व में १७६८ १२४ ३० अहोरात्र होते हैं। अहोरात्र ३० मुहूर्त का है इसलिये १ सूर्यमास = १५ मुहूर्त । १ युग में पाँच संवत्सर और इसमें अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ ५ बार और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र भी ५ बार सूर्य के साथ योग करता है । इसी प्रकार १ युग में चन्द्रमास ६२ होते हैं जो एक मास १६३०=२६३२ अहोरात्र होता है क्योंकि १ युग में १८३० अहोरान होते हैं। १ महरा २० मुहूर्त का होता है ३२ ३० X ३० = ८८५- मुहूर्त का इसलिए १ चन्द्रमास २६. होता है। का मान १ युग में ६१ कर्ममास हैं । १ कर्ममास १५३० ६१ नक्षत्र अहोरात्र का होता है । १ अहोरात्र में ३० मुहूर्त होते हैं इसलिए १ कर्ममास में ३० X ३० ६०० मुहूर्त होते हैं । व्यवहार योग्य मास चार प्रकार के होते हैं :१ मास मैं १ वर्ष में एक युग में मास मुहूर्त दिन २७ ८१६ ६७ चन्द्र सूर्य कर्म ६७ ६२ ६० ६१ ३० ८८५६२ ६१५ ६०० ५१ ३२७६७ ३५४१२ ६२ अभि. ३८३'६२ १८३० ६० ३६६ ३६० =३० १ मास में अहोरात्र २७११ ६७ ३२ ३० ३० गणितानुयोग प्रस्तावना मण्डल अथवा १४ ३२ १२४ ३५ - या १४- मण्डल प्राप्त होते .१६ ६२ युग हैं । इस प्रकार जो १४ मण्डल है । सूर्य अर्धमास में १६ मण्डलों में गतिशील होता है तथा वह १६ वें मण्डल में गति कर रहा होता है उस समय अन्य दो अष्टक भागों में चन्द्र किसी असामान्य गति से स्वयं प्रवेश कर गति करता है । ये दो अष्टक भाग निम्न प्रकार हैं : (१) सर्वाभ्यंतर मण्डल से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र अमा こ वस्या के प्रथम अष्टक अर्थात्- - वें भाग में किसी असामान्य १२४ गति से स्वयं प्रवेश करके गति करता है । (२) सर्वबाह्य मण्डल से प्रवेश करता हुआ चन्द्र पूर्णिमा की मण्डल कहा है वह यथार्थतः १४ - , १६ ६२ ८ द्वितीय अष्टक अर्थात् १२४ वें भाग में किसी असामान्य गति से स्वयं प्रवेश करके गति करता है । एक अमावस्या से पूर्णिमा तक ४४२२ मुहूर्त होते हैं और ३० अमावस्या से अमावस्या तक८८५ मुहूर्त होते हैं । १ युग में ६२ ६२ अमावस्या और ६२ पूर्णिमा होने से १२४ विभाजन करते हैं । चन्द्रमास इस प्रकार ८८५ मुहूर्त का होता है और १ मुहूर्त का होता है और ६२ में १२४ पर्व इसी प्रकार होते हैं । जहाँ तक १६ मण्डल सूर्य के गमन का पाठ है वह अशुद्ध प्रतीत होता है क्योंकि १ युग में चन्द्र १७६८ मण्डल चलता है। और १ युग में सूर्य अमास १२० होते हैं तथा १ युग में सूर्य १८३० मण्डल १८३० हैं, इस प्रकार १ अर्द्धमास में अथवा १२०
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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