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________________ ३६ गणितानुयोग : प्रस्तावना १२० १२० १८ मण्डल चलता है और अर्ध चन्द्रमास गति का १ चन्द्र अर्द्ध मास में न • मण्डल आते हैं, अर्थात् सूर्य १६वें मण्डल में २० होता है अथवा भाग पर रहता है। साथ ही यदि १७६८ में १२० का भाग (१४ ८X६७-१३४३१ दिया जाये तो १४ - मण्डल प्राप्त होते हैं जो यहाँ प्रयुक्त । ३१४६७ हुए प्रतीत नहीं होते हैं अतः १२० के स्थान में क्या लिया जाये लिया जाये = १+१३३७ = १+ १२४+३१६७ यह शोध का विषय बनता है। इसी प्रकार नक्षत्र के अर्धमास में चन्द्र १३.३ मण्डल चलता = १+४+ १++ । इतना अन्तर १ है। कारण कि १ युग में चन्द्र १७६८ मण्डल चलता है और अर्ध चन्द्रमास गति का प्रमाण और १ नक्षत्र अर्द्धमास गति से अधिक नक्षत्र के अर्द्धमास १ युग में १३४ होते हैं .:. १ अर्धमास में रूप में होता है । इस प्रकार चन्द्र, १ चन्द्र अर्द्ध मास में नक्षत्र चन्द्र १३२ मण्डल चलेगा। चन्द्र प्रथम अयन में जाते अर्द्धमास से संपूर्ण १ अर्द्ध मण्डल, तथा दूसरे अर्द्ध मण्डल से दक्षिण से ७ अर्घमण्डल जाकर दक्षिण से प्रविष्ट कर नैऋत्य कोण - भाग; तथा 14३१x६७ वां भाग अधिक संचरण करता है। में से निकलकर ईशान कोण में जाकर दूसरा, चौथा, छठवाँ, आठवाँ, दसवाँ, बारहवाँ और चौदहवाँ अर्द्धमण्डल स्पर्श करते नोट-यहाँ शोध का विषय इस प्रकार हो सकता है कि अलगचाल चलता है । इसी प्रकार वह उत्तराद्धं भाग से अर्थात् ईशान अलग तीन प्रकार से अन्तर निकालने हेतु अलग अलग चन्द्र कोण से प्रथम अयन में प्रवेश करता हुआ नैऋत्य कोण में जाता गमन संचरण चीर्ण रूप से प्रस्थापित किया जा सकता है । यहाँ, हुआ तीसरा, पाँचवाँ, सातवाँ, नवमा, ग्यारहवाँ और तेरहवाँ प्रतीत होता है कि अधिचक्र (epicycle) सिद्धान्त का प्रचलन मण्डल तथा पन्द्रहवें मण्डल का वा भाग स्पर्श करता हुआ यूनान एवं भारत में ये ही अन्तर रूपों-शुद्धतर एवं शुद्धतम रूपों को निकालने के प्रयास किये गये होंगे। इसी प्रकार सूर्य गमत चलता है। का अधिचक्र सिद्धान्त भी बाद में आविष्कृत हुआ होगा, ऐसा दूसरे चन्द्रायण में चन्द्र सर्वाभ्यंतर मण्डल के पश्चिम भाग प्रतीत होता है। से निष्क्रमण करता हुआ अर्द्धमण्डल के - भागों में जिनमें अन्य इस प्रकार प्रथम चन्द्रायण में जो दक्षिण भाग से अभ्यालरा भिमुख प्रवेश करता चन्द्र ७ अर्द्ध मण्डलों को और उत्तर भाग से संचरित मण्डल के भागों में चन्द्र गति करता है और अर्द्धमण्डल अभ्यन्तराभिमुख प्रवेश करता ६२ अर्द्ध मण्डल में संचरण करता: के १२ भागों में जिनमें स्वयं संचरित मण्डल के भागों में चन्द्र ६७ ६७ ६७ २७ गति करता है । वे दूसरे दो प्रकार के भाग हैं, जिनमें क्रमशः है। दूसरे चन्द्रायण का मण्डल क्षेत्र परिमाण भी १४ अर्द्ध ६७ चन्द्र सर्व अभ्यंतर मण्डल के और सर्व बाह्य मण्डल के उक्त भागों में स्वयं प्रवेश कर गति करता है। मण्डल होता है । यहाँ १८ वा भाग पन्द्रहवें मण्डल का शेष रह यहाँ दृष्टव्य है कि १२४ पर्यों में चन्द्रमा के १७६८ मण्डल जाता है। होते हैं इसलिए एक पर्व में १७६ होते पुनः यहाँ स्मरण रहे कि मण्डल उक्त अलग-अलग दिशाओं में बनते हैं जहाँ से चन्द्र प्रवेश करता है अथवा निकलता है । इस हैं किन्तु नक्षत्र के १३- मण्डल होते हैं। अर्थात् यहाँ अन्तर प्रकार प्रथम अयन में ईशान कोण से निकल कर मंडल जाता ६७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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