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सूत्र ६८६
तिर्यक् लोक : चन्द्रमण्डल की गति का प्रमाण
गणितानुयोग
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१.५०-जया णं भंते ! चन्दे सब्वबाहिरं मण्डलं उवसंक- (१) प्र०-हे भगवन् ! चन्द्र सर्व बाह्यमंडल में पहुँच कर
मित्ता चारं चरई। तया णं एगमेगे णं केवइयं जब गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार खेत्तं गच्छइ ?
करता है? उ०-गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई एगं च पणवीसं उ० -हे गौतम ! पाँच हजार एक सौ पच्चीस योजन और जोयणसय अउणत्तरं च णउए भागसए गच्छइ। उनहत्तर सौ निब्बे भाग जितने क्षेत्र को (प्रत्येक मुहूर्त में) पार
करता है।
मण्डल तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहि अ पणवीसेहिं मंडल (की परिधि) को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का सएहिं छेत्ता इति ।
भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण)
होता है। तया णं इहगयस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयण- (चन्द्र जब सर्व बाह्य मंडल में गति करता है) उस समय सहस्सेहिं अट्ठहि य एगत्तीसेहिं जोयणसएहिं चन्दे इगतीस हजार आठ सौ इगतीस योजन की दूरी से यहाँ रहे हुए चक्खुफासं हवमागच्छइ।
मनुष्य को अपनी आँख से चन्द्र दिखाई दे जाता है । २. ५०–जया णं भंते ! चंदे बाहिराणंतरं मण्डलं उवसंक- (२) प्र० --हे भगवन् ! बाह्यान्त र मंडल में पहुंचकर चन्द्र
मित्ता चार चरइ। तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं जब गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार केवइयं खेत्त गच्छइ?
करता है? उ०-गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई एक्कं च एक्कवीसं उ०-हे गौतम ! पाँच हजार एक सौ इक्कीस योजन और जोयणसयं एक्कारस य सट्ठ भागसए गच्छइ। इग्यारह सौ साठ भाग जितने क्षेत्र को (प्रत्येक नुहूर्त में) पार
करता है। मण्डलं तेरसहिं सहस्सेहि सत्तहि अ पणवीसेहिं मंडल की परिधि को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का सएहिं छेत्ता इति ।
भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण)
होता है। ३. ५०-जया णं भंते ! चंदे बाहिर तच्चं मण्डलं उवसंक- (३) प्र०-हे भगवन् ! चन्द्र बाह्य तृतीय मण्डल में जब
मित्ता चारं चरइ। तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार केवइयं खेत्तं गच्छइ?
करता है? उ०-गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई एगं च अट्ठारसुत्तरं उ-हे गौतम ! पाँच हजार एक सौ अठारह योजन और जोयणसयं चोद्दस य पंचुत्तरे भागसए गच्छइ। चौदह सौ पाँच भाग जितने क्षेत्र को (प्रत्येक मुहूर्त में) पार
करता है। मण्डलं तेरसहिं सहस्सेहि सत्तहिं वणवीसेहिं सएहिं मडल (की परिधि) को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का छेत्ता इति ।
भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण)
होता है। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदे तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ चन्द्र तदनन्तर राओ मण्डलाओ तयाणंतर मण्डलं संकममाणे मंडल से तदनन्तर में पहुँचता पहुँचता प्रत्येक मुहत मंडल में तीन संकममाणे तिग्णि तिण्णि जोयणाई छण्णउतिं च तीन योजन तथा छिनवे सौ पचास जितनी मुहूर्त गति को पचावण्णे भागसए एगमेगे मण्डले मुहत्त गई णिवुड्ढे- घटाता घटाता सर्व आभ्यन्तर मंडल की ओर बढ़ता हुआ गति माणे णिबुड्ढेमाणे सव्वन्भंतरं मण्डलं उबसंकमित्ता करता है । चारं चरइ।
- जंबु. वक्ख. ७, सु. १४८