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________________ ४७४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्रमण्डल की गति का प्रमाण सूत्र ६८६ सब्वभंतरं-बाहिर-चंदमण्डलेसु चंदस्स एगमुहत्तगति सर्व आभ्यन्तर और बाह्य चन्द्रमण्डलों में चन्द्र की एक पमाण मुहूर्त की गति का प्रमाण१८६. १. ५०-जया णं भंते चन्दे सव्वभंतरमण्डलं उवसंकमित्ता ६८६. (१) प्र०-हे भगवन् ! चन्द्र सर्व आभ्यन्तर मंडल में चारं चरइ। तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं केवइयं पहुंचकर जब गति करता है, तब प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को खेत्तं गच्छइ? पार करता है ? उ०-गोयमा ! पंचजोयणसहस्साई। तेवरि च जोय- उ०-हे गौतम ! पाँच हजार तेहत्तर योजन और सितत्तर णाई। सत्तरं च चोआले भागसए गच्छइ । सौ चम्मालीस भाग जितने क्षेत्र को (प्रत्येक मुहूर्त में) पार करता है। मण्डलं तेरसहि सहस्सेहि सत्तहि अ पणवीसेहि मंडल की परिधि को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का सएहि छेत्ता इति । भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण) होता है। तया ण इहगयस्स मणूसस्स सीआलीसाए जोयण- (चन्द्र जब सर्व आभ्यन्तर मण्डल में गति करता है) उस सहस्सेहिं दोहि य तेवढे हिं जोयणएहिं एगवीसाए समय सेंतालीस हजार दो सौ वेसठ योजन और एक योजन के इगसद्विभाएहिं जोयणस्स चन्दे चक्खुकासं हव्वमा- इगपठ भागों में से इकवीस भाग जितनी दूरी से यहाँ रहे हुए गच्छद। मनुष्य को अपनी आँख से चन्द्र दिखाई देता है। २. ५०–जया णं भंते ! चन्दे अब्भंतराणंतरं मण्डलं उव- (२) प्र०-हे भगवन् ! चन्द्र जव आभ्यन्तरानन्तर (अर्थात् संकमित्ता चारं चरइ। तया गं एगमेगे णं मुहुत्ते सर्व आभ्यन्तर से दूसरा) मण्डल में पहुँच कर गति करता है तब णं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार करता है ? उ०-गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई सत्तत्तरि च जोय- उ-हे गौतम ! पाँच हजार सत्तर योजन और छत्तीस सौ णाई। छत्तीस च चोअत्तरे भागसए गच्छइ। चोहत्तर भाग जितना क्षेत्र (प्रत्येक मुहूर्त में) पार करता है । मण्डलं तेरसहिं सहस्सेहि सत्तहि अ पणवीसेहिं मंडल की परिधि को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का सएहि छेत्ता इति । भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण) होता है। ३. ५०-जया णं भते ! चन्दे अभंतर तच्च मण्डल उव- (३) प्र०-हे भगवन् ! चन्द्र आभ्यन्तर तृतीय मंडल में संकमित्ता चार चरइ । तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते ण पहुँचकर जब गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को केवइयं खेतं गच्छ? पार करता है? उ०-गोयमा ! पंचजोयणसहस्साई असीइ च जोयणाई। उ०-हे गौतम ! पांच हजार अस्सी योजन और तेरह तेरस य भागसहस्साई तिण्णि अ एगूणवीसे भागसए हजार तीन सौ उगणीस भाग जितने क्षेत्र को (प्रत्येक मुहूर्त में) गच्छ। पार करता है। मण्डलं तेरसहि सहस्सेहिं सत्तहि अ पणवीसेहि मंडल की परिधि को तेरह हजार सात सौ पच्चीस का सएहिं छेत्ता इति । भाग देने पर (चन्द्र की एक मुहूर्त में होने वाली गति का प्रमाण) होता है। एवं खलु एएण उवाएण णिक्खम्ममाणे चन्दे तया- इस प्रकार इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र तदनन्तर गंतराओ मण्डलाओ तयाणतरे मण्डलं सकममाणे मंडल से तदनन्तर मंडल में पहुंचता पहुँचता प्रत्येक मंडल में संकममाणे तिष्णि तिण्णि जोयणाई छण्णउई च तीन तीन योजन तथा छिनवे सौ पचास भाग जितने क्षेत्र की पचावण्णे भागसए एगभेगे मण्डले मुहत्तगई अभि- मुहूर्त गति बढ़ाता बढ़ाता सर्व बाह्यमंडल की ओर बड़ता हुआ वड्ढेमाणे अभिवड्डेमाणे सत्वबाहिरं मण्डलं उब- गति करता है। संकमित्ता चारं तरइ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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