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________________ सूत्र ६८५ तिर्यक् लोक : चन्द्रमण्डलों का आयाम-विष्कम्भ-परिधि गणितानुयोग ४७३ (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? (ख) और कितनी परिधि कही गई है ? उ०—(क) गोयमा ! सम्बबाहिरए णं चंदमण्डले एगं उ-हे गौतम ! सर्व बाह्य चन्द्रमंडल का आयाम-विष्कम्भ जोयणसयसहस्सं छच्चसट्टे जोयणसए । एक लाख छ: सौ साठ योजन का है। आयाम-विक्खंभेणं । (ख) तिष्णि अ जोयणसयसहस्साइं अट्ठारससह- (ख) और तीन लाख अठारह हजार तीन सौ पन्द्रह योजन स्साइं तिष्णि अ पण्णरसुत्तरे जोयणसए परि- की परिधि कही गई है। क्खेवेणं पण्णत्ते। २. ५०-(क) बाहिराणंतरे णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं (२) प्र० -- (क) हे भगवन् ! बाह्यान्तर चन्द्रमंडल का आयाम-विक्खंभेणं? कितना आयाम-विष्कम्भ है ? (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? (ख) और परिधि कितनी कही गई है ? उ०—(क) गोयमा ! बाहिराणंतरे णं चंदमण्डले एगं उ०--(क) हे गौतम ! बाह्याभ्यन्तर वन्द्रमडल का आयाम जोयणसयसहस्सं पंच सत्तासीए जोयणसए। विष्कम्भ एक लाख पाँच सौ सित्यासी योजन; एक योजन के णव य एगसट्ठिभाए जोयणस्स । एगट्ठिभागं इगसठ भागों में से नौ भाग और एक भाग के सात भागों में से च सत्तहा छत्ता छ चुण्णिआभाए आयाम- छः चूणिका भाग जितना है । विक्खंभेणं। (ख) तिणि अ जोयणसयसहस्साई अट्ठारससहस्साई, (ख) और तीन लाख अठारह हजार पच्यासी योजन की पंचासीइं च जोयणाई परिक्खेवेणं पण्णत्ते। परिधि कही गई है। ३.५०-(क) बाहिरतच्चे णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं (३) प्र०—(क) हे भगवन् ! बाह्य तृतीय मंडल का कितना आयाम-विक्खंभे गं? आयाम-विष्कम्भ है ? (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पणते ? (ख) और कितनी परिधि कही गई है ? उ०—(क) गोयमा ! बाहिरतच्चे णं चंदमण्डले एगं उ० ---(क) हे गौतम ! बाह्य तृतीय मंडल का आयाम जोयणसयसहस्सं पंच य दसुत्तरे जोयणसए विष्कम्भ एक लाख पाँच सौ दस योजन एक योजन के इगसठ एगूणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स । एगट्ठि- भागों में से उन्नीस भाग और एक भाग के सात भागों में से भागं च सत्तहा छत्ता पंच चुण्णिाभाए पाँच चूणिका भाग जितना है । आयाम-विक्खंभेणं । (ख) तिणि अ जोयणसय सहस्साइं। सत्तरस सह- (ख) और तीन लाख सतरा हजार आठ सौ पचपन योजन स्साइं अट्ट य पणपण्णे जोयणसए परिक्खेवेणं की परिधि कही गई है। पण्णत्ते। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चन्दे इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ चन्द्र एक चन्द्रतयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मण्डलं मंडल से दूसरे चन्द्रमंडल की ओर बढ़ता बढ़ता बहत्तर बहत्तर संकममाणे संकममाणे बावरि बावरि योजन एक योजन के इगसठ भागों में से इक्कावन भाग और जोयणाई एगावण्णं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स। एक भाग के सात भागों में से एक चूणिका भाग जितनी विष्कम्भ एगट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुपिणआ भागं वृद्धि को प्रत्येक चन्द्रमंडल में घटाता तथा दो सो तीस योजन एगमेगे मण्डले विखंभवुड्ढिं णिवुड्ढेमाणे दो सौ तीस योजन (प्रत्येक चन्द्रमंडल में) परिधि की वृद्धि को णिवुड्ढेमाणे दो दो तीसाइं जोयणसयाई घटाता घटाता सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल की ओर बढता बढ़ता परिरयवडिढं णिवुड्ढेमाणे णिवुड्ढेमाणे गति करता हैसव्वभंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। -जबु. वक्ख. ७, सु. १४७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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