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________________ ४७२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : चन्द्रमंडलों का आयाम-विष्कम्भ-परिधि सूत्र ६८५ उ०—(क) गोयमा ! सव्वभंतरे णं चंदमण्डले णवणउई उ०—(क) हे गौतम ! सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल का जोयणसहस्साई छच्चचत्ताले जोयणसए आयाम आयाम-विष्कम्भ निन्यानवे हजार छः सौ चालीस योजन का है । विक्खंभेणं। (ख) तिण्णि अ जोयणसयसहस्साई पष्णरस जोयण- (ख) और तीन लाख पन्द्रह हजार निव्यासी योजन से कुछ सहस्साई अउणाणत्ति च जोयणाई किंचि अधिक की परिधि कही गई है। विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । २. ५०-(क) अभंतराणंतरे णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं (२) प्र०—(क) हे भगवन् ! आभ्यन्तरानन्तर चन्द्र मंडल आयाम-विक्खंभेणं? का कितना आयाम-विष्कम्भ है ? (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? (ख) और कितनी परिधि कही गई है ?, उ०-(क) गोयमा ! अब्भंतराणंतरे णं चंदमण्डले णवण- उ०—(क) हे गौतम ! आभ्यन्तरानन्तर का चन्द्रमंडल का उई जोयणसहस्साई-सत्त य बारसुत्तरे आयाम-विष्कम्भ निन्यानवे हजार सात सौ बारह योजन और जोयणसए एगावणं च एगसट्ठिभागे एक योजन के इगसठ भागों से इक्कावन भाग तथा एक भाग के जोयणस्स एगट्ठिभागं च सत्तहा छत्ता एगं सात भागों में से एक चूणिका भाग जितना है । चुण्णिाभागं आयाम-विक्खंभेणं । (ख) तिष्णि अ जोयणसयसहस्साइं तिष्णि अ (ख) तीन लाख तीन सौ उन्नीस योजन से कुछ अधिक की एगूणवीसे जोयणसए किचिविसेसाहिए परि- परिधि कही गई है । क्खेवेणं पण्णत्ते। ३.५०-(त) अब्भंतरतच्चे णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं (३) प्र०—(क) हे भगवन् ! आभ्यन्तर तृतीय चन्द्रमंडल आयाम-विक्खंभेणं? का कितना आयाम-विष्कम्भ है ? (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते ? (ख) और कितनी परिधि कही गई है ? उ०-(क) गोयमा ! अब्भंतरच्चे णं चंदमण्डले णवणउई उ०- (क) हे गौतम ! आभ्यन्तर-तृतीय चन्द्रमंडल का जोयणसहस्साई सत्त य पंचासीए जोयणसए आयाम-विष्कम्भ निन्यानवे हजार सात सौ पच्चीस योजन तथा इगतालीसं च एगसट्ठीभाए जोयणस्स । एक योजन के इकसठ भागों से इगतालीस भाग और एक भाग एगट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता दोण्णि अ में से दो चूणिका भाग जितना है । चुण्णियाभाए आयाम-विक्खंभेणं । (ख) तिष्णि अ जोयणसयसहस्साई पप्णरस जोयण- (ख) तीन लाख पन्द्रह हजार पाँच सौ उनपचास योजन से सहस्साइं पंच य इगुणापण्णे जोयणसए किंचि कुछ अधिक की परिधि कही गई है। विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । एवं खल एएणं उवाएणं णिक्खममाणे चन्दे इस प्रकार इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र एक चन्द्र तयाणंतराओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं मंडल से दूसरे चन्द्रमंडल की ओर बढ़ता बढ़ता बहत्तर-बहत्तर संकममाणे संकममाणे बावरि बावरि योजन एक योजन के इगसठ भागों में से इक्कावन भाग और जोयणाई एगावण्णं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स । एक भाग के सात भागों से एक चूणिका भाग जितनी विष्कम्भ एगट्ठिभागं च सत्तहा छत्ता एगं च चुण्णिआ- वृद्धि को प्रत्येक मडल में बढ़ाता बढ़ाता दो सौ तीस योजन, भागं एगमेगे मण्डले विक्खंभवुड्ढि अभिवड्ढे- दो सौ तीस योजन परिधि की वृद्धि करता करता सर्व बाह्यमाणे अभिवड्ढेमाणे । दो दो तीसाइं जोयण- मंडल की ओर गति करता है। सयाइ परिरयवुडिढं अभिवड्ढेमाणे अभिवड्ढे माणे सव्वबाहिरं मण्डल उवसंकमित्ता चारं चरइं। १.५०-(क) सम्बबाहिरए णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं (१) प्र०—(क) हे भगवन् ! सर्व बाह्य चन्द्रमंडल का आयाम-विक्खंभेणं? कितना आयाम-विष्कम्भ हैं ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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