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सूत्र ९८४-६८५
तिर्यक् लोक : चन्द्रमण्डलों का अन्तर
गणितानुयोग
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१.५०–जंबुद्दीव दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए (१) प्र०—हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर सव्वबाहिरे चंदमण्डले पण्णते ?
पर्वत से व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व बाह्य चन्द्रमंडल
कहा गया हैं ? उ०-गोयमा! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिण्णि अ उ०-हे गौतम ! मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित पेंतालीस
तीसे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमण्डले हजार तीन सौ तीस योजन की दूरी पर सर्वबाह्य चन्द्रमंडल पण्णत्ते।
कहा गया है। २.५०-जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए (२) प्र०- हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर बाहिराणंतरे चंदमण्डले पण्णत्ते ?
पर्वत से व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व बाह्य चन्द्रमंडल से
अनन्तर चन्द्रमंडल कहा गया है ? उ०-गोयमा ! पणयालोसं जोयणसहस्साइं दोणि य उ०-हे गौतम ! मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित पंतालीस
तेणउए जोयणसए । पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयण- हजार दो सौ तिरानवे योजन एक योजन के इगसठ भागों में से स्स एगट्ठिभागं च सत्तहा छत्ता तिण्णि चुणिया पेंतीस भाग एक भाग के सात भागों में से तीन चूणिका भाग भाए अबाहाए बाहिराणंतरे चंदमण्डले पण्णत्ते। जितनी दूरी पर सर्व बाह्य चन्द्रमंडल से अनन्तर का चन्द्रमंडल
कहा गया है। ३. ५०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए (३) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत से बाहिरतच्चे चंदमण्डले पण्णते ?
व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व बाह्य चन्द्रमंडल से तृतीय
चन्द्रमंडल कहा गया है ? उ०-गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साई दोण्णि अ उ०-हे गौतम ! मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित पेंतालीस
सत्तावष्णे जोयणसए णव य एगसट्ठिभाए जोयण- हजार दो सो सत्तावन योजन एक योजन के इगसठ भागों में से स्स । एगट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता । छ चुण्णिआ- नौ भाग और एक भाग के सात भागों में से छः चूणिका भाग भाए अबाहाए बाहिरतच्चे चंदमण्डले पण्णत्ते । जितनी दूरी पर सर्व बाह्य चन्द्रमंडल से तृतीय चन्द्रमंडल कहा
गया है। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदे तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ चन्द्र एक चन्द्रराओ मण्डलाओ तयाणंतर मण्डलं संकममाण मंडल से अनन्तर चन्द्रमंडल की ओर बढ़ता बढ़ता व्यवधान संकममाणे छत्तीसं छत्तीसं जोयणाई। पणवीसं च रहित छत्तीस छत्तीस योजन एक योजन के इगसठ भागों एगसट्ठिभाए जोयणस्म एगट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता में से पच्चीस भाग और एक भाग के सात भागों में से चार चत्तारि चुण्णिआभाए एगमेगे मण्डले अबाहाए चूणिका भाग जितनी दूरी की प्रत्येक चन्द्रमंडल में हानि करता वुद्धिं निवुड्ढेमाणे निवुड्ढेमाणे सव्वभंतरं मण्डलं करता सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल की ओर बढ़ता हुआ गति उवसंकमित्ता चारं चरइ।
करता है। ___-जंबु. वक्ख. ७, सु. १४६ सव्वन्भंतर-बाहिर चन्दमण्डलाणं आयाम-विक्खभो सर्व आभ्यन्तर और बाह्य चन्द्रमंडलों का आयाम-विष्कम्भ परिक्खेवो य
तथा परिधि१८५. १. १०-(क) सवभंतरे णं भंते ! चंदमण्डले केवइयं ९८५. (१) प्र०—(क) हे भगवन् ! सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल आयाम-विक्खंभेणं?
का कितना आयाम-विष्कम्भ है ? (ख) केवइयं परिक्खेवेणं पणते ?
(ख) और कितनी परिधि कही गई है ?
१ प्रस्तुत सूत्र के सभी प्रश्नों में "जम्बुद्दीवे दीवे" ऐसा मूल पाठ है, इसके स्थान में "जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे' ऐसा पाठ होना
उचित है । क्योंकि सभी उत्तरों में "गोयमा" पाठ का प्रयोग है।