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________________ ४७० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्रमंडलों का अन्तर सूत्र ६८३-६८४ सव्वब्भंतर-बाहिर-चदमण्डलाणं अन्तरं सर्वआभ्यंतर और सर्वबाह्य चन्द्रमंडलों का अन्तर९८३. ५०-सव्वन्भंतराओ णं भंते ! चंदमंडलाओ णं केवइआए ६८३. प्र० --हे भगवन् ! सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल से सर्वबाह्य अबाहाए सव्वबाहिरे चंदमंडले पण्णत्ते ? चन्द्रमंडल व्यवधान रहित कितनी दूरी पर कहा गया है ? उ०—गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए उ०—हे गौतम ! सर्व आभ्यन्तर से सर्वबाह्य चन्द्रमंडल चंदमंडले पण्णत्ते।' -जंबु. वक्ख. ७, सु. १४३ व्यवधान रहित पाँच सौ दस योजन की दूरी पर कहा गया है। मंदरपव्वयाओ सबभतर-बाहिर-चन्दमण्डलाणं मन्दर पर्वत से सर्व आभ्यन्तर और सर्व बाह्य चन्द्रमंडलों अबाहा अन्तरे का व्यवधान रहित अन्तर१८४. १.५०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए ६८४. (१) प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर सव्वन्भंतरे चंदमंडले पण्णते ? पर्वत से व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व आभ्यन्तर चन्द्र मंडल कहा गया है ? उ०-गोयमा ! चोआलीसं जोयणसहस्साई अट्ठ य वीसे उ०-हे गोतम ! मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित चम्मालीस जोयणसए अबाहाए सब्वभंतरे चंदमंडले पण्णतें हजार आठ सौ बीस योजन की दूरी पर सर्वआभ्यन्तर चन्द्रमंडल - कहा गया है। २.५०–जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स केवइयाए अबाहाए अभंत- (२) प्र०--हे भगवन् ! जम्बुद्वीप नाम द्वीप में मन्दर पर्वत राणंतरे चंदमंडले पण्णते ? से व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल से "अनन्तर चन्द्रमंडल" कहा गया है ? उ०-गोयमा ! चोआलीसं जोयणसहस्साई अट्ट य छप्पण्णे उ०-हे गोतम ! (मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित) चम्मालीस जोयणसए । पणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स। हजार आठ सौ छप्पन योजन तथा एक योजन के इकसठ भागो एगट्रिभागं च सत्तहा छत्ता चत्तारि चुण्णिआभाए में से पच्चीस भाग और एक भाग के सात भागो में से चार अबाहाए अब्भंतराणतरे चंदमंडले पण्णते ? चणिका भाग जितनी दूरी पर सर्व आभ्यन्तर चन्द्रमंडल से "अनन्तर चन्द्रमंडल' कहा गया है । ३. ५०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए (३) प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर अब्भंतर तच्चे चंदमण्डले पणते ? पर्वत में व्यवधान रहित कितनी दूरी पर सर्व आभ्यन्तर चन्द्र मंडल से तृतीय चन्द्रमंडल कहा गया है ? उ०-गोयमा ! चोआलीसं जोयणसहस्साई अट्ठ य बाण- उ०-हे गौतम ! मन्दर पर्वत से व्यवधान रहित चुम्मालीस उए जोयणसए एगावण्णं च एगसट्ठिभाए जोय- हजार आठ सौ वाणवे योजन एक योजन के इगसठ भागों में से णस्स । एगट्रिभागं च सत्तहा छेत्ता । एगं चुण्णिआ इक्काबन भाग और एक भाग के सात भागों में एक चणिका भागं अबाहाए अभंतर तच्चे चंदमंडले पण्णते। भाग कितनी दूरी पर आभ्यन्तर चन्द्रमंडल से तृतीय चन्द्रमंडल कहा गया है। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे चंदे तया- इस प्रकार इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र एक गंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलसंकममाणे चन्द्रमंडल से अनन्तर चन्द्रमंडल की ओर बढ़ता बढ़ता व्यवधान संकममाणे छत्तीसं छत्तीसं जोयणाई पणवीसं च रहित छत्तीस छत्तीस योजन एक योजन के इकसठ भागों में से एगसट्रिभाए जोयणस्स । एगट्ठिभागं च सत्तहा पच्चीस भाग एक भाग के सात भागों में से चार चूणिका भाग छत्ता । चत्तारि चण्णिआभाए एगमेगे मंडले अबा- जितनी दूरी की प्रत्येक चन्द्रमंडल में वृद्धि करता करता सर्व हाए वडिढ अभिवड्ढेमाणे अभिवड्ढेमाणे सव्वबा- बाह्य चन्द्रमंडल की ओर बढता हआ गति करता है। हिरं चंदमण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। जम्बू वक्ष. ७, सु. १४२ के अनुसार जम्बूद्वीप में एक सौ अस्सी योजन अवगाहन करने पर पाँच चन्द्रमंडल हैं और लवणसमुद्र में तीन सौ तीस योजन अवगाहन करने पर दस चन्द्रमंडल हैं, अतः एक सौ अस्सी और तीन सौ तीस-इन दोनों संख्याओं को संयुक्त करने पर पांच सौ दस योजन होते हैं । २ आभ्यंतरानन्तर - अर्थात् आभ्यंतर के बाद का दूसरा ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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