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________________ ४६८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्रमा की वृद्धि-हानि सूत्र ६७८ २. ५०-ता कहं ते दोसिणापक्खे णं दोसिणा बहू (२) प्र०-शुक्लपक्ष में चन्द्रिका अधिक क्यों कहीं गई है आहितेति बदेज्जा ?" -:.--- . . .. । उ०—ता अंधकारपक्खाओणं दोसिणत बहू आहि- ज-अन्धकार पक्ष से (शुक्लपक्ष की) चन्द्रिका अधिक तेति वदेज्जा, कही गई है। ३. ५०–ता कहं ते अंधकारपक्खाओ णं दोसिणापक्खे (३) प्र०- अन्धकार पक्ष से शुक्ल पक्ष में चन्द्रिका अधिक दोसिणा बह आहितेति बवेज्जा? ... क्यों कही गई है।.... .. उ०-ता अंधकारपक्खाओ णं दोसिणापक्खं अयमाणे उ अन्धकार पक्ष से शुक्ल पक्ष में आता हुआ चन्द्र चन्दे चत्तारि बायाले मुहत्तसते छत्तालीसं च. चार सौ बियालीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों में से बावट्ठिभागे मुहत्तस्स जाई चन्दे विरज्जति, छियालीस भाग जितने समय तक नित्यराहु से अनावृत रहता तं जहा–पढमाए पढम भागं बितियाए बितियं है यथा-प्रतिपदा को एक भाग, द्वितीया को दो भाग-यावत् भागं-जाब-पण्णरसीए पण्णरसं भाग, पन्द्रहवीं (पूर्णिमा) को पन्द्रह भाग । एवं खलु अंधकारपक्खाओ णं दोसिणापक्खे इस प्रकार अन्धकार पक्ष से शुक्लपक्ष में चन्द्रिका अधिक दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा, रहती है। ४. ५०-ता केवतिया णं दोसिणापक्खे दोसिणा बहू (४) प्र०-शुक्लपक्ष में चन्द्रिका कितनी अधिक कही आहिताति वदेज्जा? गई: 11: ज०- ता परित्ता असंखेज्जा भागा, 38-परिमित' असंख्य भाग । (ख) १. ५०–ता कता ते अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? (१) प्र०—(ख) अन्धकार कब अधिक कहा गया है ? उ०-ता अंधकारपक्खे णं अंधकारे बह आंहितेति उ अन्धकार कृष्णपक्ष में अधिक कहा गया है। वदेज्जा, २.५०-ता कहं ते अंधकारपक्खे गं अंधकारे बहू (२) प्र०–अन्धकार पक्ष में अन्धकार अधिक क्यों कहा आहितेति वदेज्जा? गया है ? उ०—ता दोसिणापक्खाओ अंधकारपक्खे गं अंधकारे उ०-शुक्लपक्ष से कृष्णपक्ष में अन्धकार अधिक कहा बह आहितेति वदेज्जा, ३. ५०-ता कहं ते दोसिणापक्खाओ अंधकारपक्खेणं (३) प्र०-शुक्ल से अन्धकार पक्ष में अन्धकार अधिक अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा? क्यों कहा गया है ? उ०–ता दोसिणापक्खाओ णं अंधकारपक्खं अयमाणे उ०-शुक्ल पक्ष से अन्धकार पक्ष में आता हुआ चन्द्र चंदे चत्तारि बायाले मुहुत्तसते छत्तालीसं च चार सौ बियालीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों में से - बावद्विभागे मुहत्तस्स जाइं चन्दे रज्जति, छियालीस भाग जितने समय तक नित्य राहु से आवृत होता तं जहा-पढमाए पढम भागं बितियाए रहता है, यथा-प्रतिपदा को एक भाग, द्वितीया को दो भाग-- बितियं भाग-जाव-पण्णरसं भाग, यावत्-पन्द्रहवीं (अमावस्या) को पन्द्रह भाग । ...... एवं खलु दोसिणापक्खाओ ण अंधकारपक्खे इस प्रकार शुक्लपक्ष से अन्धकार पक्ष में अन्धकार अधिक - - अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा, कहा गया है। ४. ५०.-ता केवतिए णं अंधकारपक्खे अंधकारे बहू (४) प्र०–अन्धकार पक्ष में अन्धकार कितना अधिक कहा आहितेति बदेज्जा? .. गया है? ..उ०-परित्ते असंखेज्ज भागे,'..... 7. -4 : ... ..उ-परिमित असंख्य भाग । ............. -सूरिय. पा.१४, स. ८२ mputer १ (क) चन्द. पा. १४, सु. ८२ । (ख) "सूर्य प्रज्ञप्ति प्राभूत १३, सूत्र ७६ और सूर्यप्रज्ञप्ति प्राभृत १४ सूत्र ८२" इन दोनों सूत्रों का फलितार्थ समान है। अन्तर इतना ही है कि सूत्र ७६ में "चन्द्र की हानि-वृद्धि" का कथन है। सूत्र ८२ में "चन्द्रिका तथा अन्धकार की अधिकता" का कथन है । किन्तु चन्द्र की हानि-वृद्धि से ही चन्द्रिका एवं अन्धकार की अधिकता होती है । __गया है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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