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सूत्र ९७७-६७८
तिर्यक्लोक : चन्द्रमा की वृद्धि-हानि
गणितानुयोग
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चंदमसो वड्ढोऽवड्ढी
चन्द्र की वृद्धि-हानि९७७. ५०-ता कहं ते चंदमसो वड्ढोऽवड्ढी ? आहिए त्ति वएज्जा, ६७७. प्र०-चन्द्र की वृद्धि-हानि किस प्रकार होती है ? कहें । उ०–ता अट्ट पंचासीते मुहत्तसते तीसं च बावट्ठिभागे उ०-आठ सौ पिच्यासी मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ मुहुत्तस्स।
भागों में से तीस भाग तक चन्द्र की वृद्धि-हानि होती रहती है । ता दोसिणापक्खाओ गं अंधगारपक्खं अयमाणे चंदे शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष की ओर आता हुआ चन्द्र चार सौ चत्तारि बायालमुहत्तसए। छत्तालीसं च बावट्ठिभागे बियालीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों में से छियालीस मुहत्तस्स जाई चन्दे रज्जइ,' तं जहा-पढमाए पढमं भाग तक राहु से रक्त (आच्छादित) रहता है, यथा-प्रतिपदा भागं बितियाए वितियं भागं-जाव-पण्णरसीए पण्णर- को एक भाग, द्वितीया को दो भाग-यावत्-पन्द्रहवीं को समं भागं।
पन्द्रह भाग। चरिमसमए चंदे रत्ते भवइ । अवसेसे समए चंदे रत्ते पन्द्रहवीं के अन्तिम समय में चन्द्र राहु से पूर्ण रक्त रहता य विरत्ते य भवइ । इयण्णं अमावासा, एत्थ णं पढमे है, शेष समयों में चन्द्र राहु से रक या विरक्त भी रहता है । पव्वे अमावासे ता अंधगार पक्खो ।
यह अमावस्या है । यह प्रथम पर्व अमावस्या का है। यह कृष्ण
पक्ष है। ता णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारे बायाले कृष्ण पक्ष से शुक्ल पक्ष में जाता हुआ चन्द्र चार सौ मुहत्तसए छत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स जाई चंदे बियालीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों में से छियालीस विरज्ज,
भाग तक राहु से विरक्त (अनाच्छादित) रहता है। तं जहा-पढमाए पढम भागं बितियाए बितियं भागं यथा-प्रतिपदा को एक भाग, द्वितीया को दो भाग-जाव-पण्णरसीए पण्णरसमं भागं,
यावत्-पन्द्रहवीं को पन्द्रह भाग । चरिमसमए चंदे विरत्ते भवइ,
पन्द्रहवीं के अन्तिम समय में चन्द्र राहु से सर्वथा विरक्त
रहता है। अवसेसे समए रत्ते य विरत्ते य भवइ ।
अवशेष समयों में रक्त और विरक्त भी रहता है। इयण्णं पुण्णमासिणी एत्थ णं दोच्चे पन्वे पुण्णमासिणी, यह पूर्णमासी है, यह दूसरा पर्व पूर्णमासी का है, यह शुक्ल ता दोसिणा पक्खो।'
पक्ष है। -सूरिय. पा. १३, सु०७६ विवेचन
एक चन्द्रमन्डल के ६३१ भाग कल्पित है। उनमें से एक भाग अमावस्या की रात्रि में भी नित्य राहु से अनावृत रहता है । अतः उस एक भाग को छोड़कर शेष ६३० भागों में से शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन बासठ बासठ भाग चन्द्रमा बढ़ता रहता है । अर्थात् चन्द्रमा नित्य राहु से अनावृत होता रहता है । इसी प्रकार कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन बासठ बासठ भाग घटता
रहता है । अर्थात् चन्द्रमा नित्य राहु से आवृत होता रहता है । दोसिणा अंधयारस्स य बहुत्त कारणं
चन्द्रिका और अन्धकार आधिक्य के कारण६७८. (क) १. ५०-ता कता ते दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा? ६७८. (१) प्र०—(क) चन्द्रिका कब अधिक कही गई है ?
उ०–ता दोसिणापक्खे णं दोसिणा बहू आहितेति उ०-शुक्लपक्ष में चन्द्रिका अधिक कही गई है ।
वदेज्जा ,
१ सम. ६२ सु. ३ । २ (क) चन्द, पा. १३, सु. ७६ ।
(ख) जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १७७ ।