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________________ ४६० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेवों की गति प्ररूपणा सूत्र ६६०-६६२ ommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww...m दुहओऽवि गहा जुत्ता जोगेहि, ग्रह पूर्व-पश्चिम से या दक्षिण-उत्तर से (चन्द्र-सूर्य से) योग युक्त होते हैं, दुहओऽवि णक्खत्ता जुत्ता जोगेहि, नक्षत्र पूर्व-पश्चिम से या दक्षिण-उत्तर से (चन्द्र-सूर्य से) योग युक्त होते हैं, मंडल सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए सरहिं छत्ता इच्चेसं गक्खत्ते मण्डल के एक लाख अठाणवें सौ विभाग, नक्षत्रों का क्षेत्र खेत्तपरिभागे। परिभाग है। जक्खत्तविजए पाहुडे, तिबेमि । यह नक्षत्र विजय (स्वरूप) प्राभूत है। --- सूरिय. पा. १०, पाहु. २२, सु.७० (ज्ञानियों के कहे अनुसार) मैं ऐसा कहता हूँ। चन्द-सूर-गह-णक्खत्ताणं विसेसगइ परूवणं- चन्द्र-सूर्य और नक्षत्रों की विशेष गति का काल प्ररूपण६६१. ५०-ता जया णं चंद गइसमावण्णं सूरे गइसमावण्णे भवइ, ६६१. (१) प्र०-जब चन्द्र गति युक्त होता है तब सूर्य के गति से णं गइमायाए केवइयं विसेसेइ ? युक्त होने पर उसकी गति का परिमाण कितना विशेष होता है ? उ०—बासट्ठिभागे विसेसेइ। उ०-बासठ भाग विशेष होता है। प०-ता जया गं चंद गइसमावण्णं, णक्खत्ते गइसमावण्णे (२) प्र०-जब चन्द्र गति युक्त होता है तब नक्षत्रों के गति भवइ, से णं गइमायाए केवइयं विसेसेइ ! युक्त होने पर उनकी गति का परिमाण कितना विशेष होता है ? उ०—ता सट्टि भागे बिसेसेइ । उ०-सडसठ भाग विशेष होता है। प०–ता जया णं सूरं गइसमावण्णं णक्खत्ते गइसमावण्णे (३) प्र०-जब सूर्य गति युक्त होता है तब नक्षत्रों के गति भवइ, से णं गइमायाए केवइयं विसेसेइ ? युक्त होने पर उनकी गति का परिमाण कितना विशेष होता है ? उ०—ता पंच भागे विसेसेइ । —सूरिय. पा. १५, सु. ८४ उ०-- पाँच भाग विशेष होता है। चन्दस्स-णक्खत्ताणंय जोगगइ परूवणं चन्द्र का नक्षत्रों से योग युक्त होने पर उनकी गति का काल प्ररूपण६६२. १. ता जया णं चन्दे गइसमावण्णं अभिई णक्खत्ते णं गइ- ६६२. (१) जब चन्द्र गति युक्त होता है तत्र पूर्वी भाग से गति समावण्णे पुरथिमाए भागाए समासाएइ पुरथिमाए युक्त अभिजित् नक्षत्र नौ मुहूर्त और एक मुहूर्त से सडसठ भागों भागाए समासाइत्ता णवमुहुत्ते सत्तवीसं च सत्त-सट्ठिभागे में से सत्तावीस भाग पर्यन्त चन्द्र से योग करता है; योग करके मुहत्तस्स चंदेणं सद्धि जोग जाएत्ता जोगं अणुपरियट्टइ, परिभ्रमण करता है परिभ्रमण करके योग का परित्याग करता जोगं अणुपरियट्टित्ता जोगं विप्पजहइ विगयजोगी या है और योग रहित होकर योग मुक्त हो जाता है। वि भवइ। २. ता जया ण चंदं गइसमावण्ण सवणे णक्खत्ते गइसमावणे (२) जब चन्द्र गति युक्त होता तब पूर्वी भाग से गति युक्त पुरथिमाए भागाए समासाएइ, पुरथिमाए भागाए समा- श्रवण नक्षत्र तीस मुहूर्त पर्यन्त चन्द्र के साथ परिभ्रमण करता है साइत्ता तीस मुहत्ते चंदेण सद्धि जोग जोएइ, जोगं परिभ्रमण करके योग का परित्याग करता है और योग मुक्त जोएता जोग अणुपरियट्टइ जोग अणुपरियट्टित्ता जोग होकर योग रहित हो जाता है । विप्पजहइ विगयजोगी या वि भवइ । ३-२८. एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं, पण्णरसमुहुत्ताई, तीस- (३-२८) इस प्रकार इन अभिलापों से पन्द्रह मुहूर्त, तोस इमुहुत्ताइ पणयालीस-मुहुत्ताई भाणियव्वाइं जाव मुहूर्त और पैंतालीस मुहूर्त पर्यन्त के सात नक्षत्रों का योग जानना उत्तरासाढा । चाहिए यावत्-उत्तराषाढा नक्षत्र पर्यन्त चन्द्र का नक्षत्रों के -सूरिय. पा. १५, सु. ८४ साथ योग कहना आहिए। २ चन्द. पा. १५, सु. ८४ । १ ३ चन्द. पा.१०, सु. ७० । चन्द पा. १५, सु.८४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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