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________________ सूत्र ६५८-६६१ तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेवों की गति युक्तता गणितानुयोग ४५६ धायइसंडप्पभिई, उद्दिट्ट तिगुणिया भवे चन्दा । बियालीस को तीन गुणा करने पर एक सौ छब्बीस हुए। आइल्ल चन्दसहिया, अणंतराणंतरे खेत्ते ॥ इनमें जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र और धातकीखण्ड की चन्द्रसंख्या अठारह संयुक्त करने पर पुष्करवर द्वीप में एक सौ चुम्मालीस चन्द्र और एक सौ चुम्मालीस सूर्य हुए। रिक्खग्गह-तारगं, दीवसमुद्दे जहिच्छसे नाउं । द्वीप और समुद्रों के नक्षत्र, ग्रह और ताराओं की संख्या तस्स ससीहि गुणियं, रिक्खग्गह-तारगाणं तु॥ यदि जानना चाहें तो उनकी संख्या को चन्द्र संख्या से गुणा करने पर नक्षत्र ग्रह और ताराओं की संख्या ज्ञात हो जाती है । उदाहरण-एक चन्द्र के परिवार में अठावीस नक्षत्र होते हैं और लवणसमुद्र में चार चन्द्र हैं, अठावीस को चार में गुणा करने पर एक सौ बारह नक्षत्र लवणसमुद्र में है, इसी प्रकार एक चन्द्र के ग्रहों और ताराओं की संख्या को चार चार से गुणा करने पर लवणसमुद्र के ग्रहों और ताराओं की संख्या ज्ञात हो -जीवा. प. ३, उ. २, सु. १७७ जाती है, इसी प्रकार सर्वत्र गुणा करें। चंद-सूर-गह-णक्खत्ताणं गइसमावण्णत्तं चन्द्र-सूर्य-ग्रह और नक्षत्रों की गति युक्तता१५६. ता जया णं इमे चन्दे गइसमावण्णए भवइ. ६५६. जब यह चन्द्र गति युक्त होता है, तया णं इयरेऽवि चन्दे गइसमावण्णए भवइ, तब अन्य चन्द्र भी गति युक्त होता है, जया णं इयरे चन्दे गइसमावण्णए भवइ, जब अन्य चन्द्र गति युक्त होता है, तया णं इमेऽवि चन्दे गइसमावण्णए भवइ, तब यह चन्द्र भी गति युक्त होता है, ता जया णं इमे सूरिए गइसमावण्णए भवइ, जब यह सूर्य गति युक्त होता है, तया णं इयरेऽवि सूरिए गइसमावण्णए भवइ, तब अन्य सूर्य भी गति युक्त होता है, ता जया णं इयरे सूरिए गइसमावण्णए भवइ, जब अन्य सूर्य गति युक्त होता है, तया गंऽइमे वि सूरिए गइसमावण्णए भवइ, तब यह सूर्य भी गति युक्त होता है, एवं गहे वि, णक्खत्ते वि, -सूरिय. पा. १०, सु. ७० इसी प्रकार ग्रह और नक्षत्र भी गति युक्त होते हैं । चन्द-सूर-गहणक्खत्ताणं जोगो चन्द्र-सूर्य-ग्रह और नक्षत्रों का योग९६० ता जया णं इमे चन्दे जुत्ते जोगे भवइ, ६६०. जब यह चन्द्र योग युक्त होता है, तथा णं इयरेऽवि चन्दे जुत्ते जोगे णं भवइ, तब अन्य चन्द्र भी योग युक्त होता है, ता जया णं इयरे चन्दे जुत्ते जोगे णं भवइ, जब अन्य चन्द्र योग युक्त नहीं होता है, तया णं इमेऽवि चन्दे जुत्ते णं भवइ, तब यह चन्द्र भी योग युक्त नहीं होता हैं, एवं सूरेऽवि गहेऽवि णक्खत्तेऽबि, इसी प्रकार सूर्य-ग्रह और नक्षत्र भी योग युक्त होते हैंसया वि चन्दा जुत्ता जोगेहि, चन्द्र (ग्रह-नक्षत्रों से) सदा ही योग युक्त होता है, सया वि सूरा जुत्ता जोगेहि, सूर्य (ग्रह-नक्षत्रों से) सदा ही योग युक्त होते हैं, सया वि गहा जुत्ता जोगेहि, ग्रह (चन्द्र-सूर्य से) सदा ही योग युक्त होते हैं, सया वि णक्खत्ता जुत्ता जोहि, नक्षत्र (चन्द्र-सूर्य से) सदा ही योग युक्त होते हैं, दुहओऽवि चन्दा जुत्ता जोगेहिं, चन्द्र पूर्व-पश्चिम से या दक्षिण-उत्तर से (ग्रह-नक्षत्रों से) योग युक्त होते हैं, दुहओऽवि सूरा जुत्ता जोगेहि, सूर्य पूर्व-पश्चिम से या दक्षिण-उत्तर से (ग्रह नक्षत्रों से) योग युक्त होते हैं, (ख) चन्द. पा, १६ सु. १००। १ २ (क) सूरिय. पा. १६, सु. १०० । चन्द. पा. १०, सु. ७० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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