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________________ ४५८ लोक-प्राप्ति तिर्यक् लोक : ज्योतिषकों को पंक्तियाँ सूत्र ६५४-९५८ छावत्तरं गहाणं, पंतिसयं हवंति मणुयलोगंमि । प्रत्येक पंक्ति में छासठ छासठ ग्रह हैं। छाट्ठि छाढेि हवइ एक्केक्किया पंतो ॥ ऐसी ग्रहों की एक सौ छिहत्तर पंक्तियाँ मनुष्य लोक में हैं ।। छप्पन्नं पंतीओ, णक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । प्रत्येक पंक्ति में छप्पन छप्पन नक्षत्र हैं । छाट्ठि छा४ि हवइ एक्कक्किया पती॥' ऐसी नक्षत्रों की छप्पन पंक्तियाँ मनुष्य लोक में है ।। -सूरिय. पा. १६, सु. १०० जोइसियाण मंडला ज्योतिष्कों के मण्डल६५५. गाहाओ ६५५. गाथार्थते मेरुमणुचरन्ता, पदाहिणावत्त मंडला सम्वे । ___ चन्द्र-सूर्य और ग्रहों के सभी मण्डल अनवस्थित हैं और वे अणवट्ठिय जोगेहि, चन्दा सूरा गहगणाय ॥ मेरु की प्रदक्षिणा करने वाले हैं । णक्खत्त-तारागाणं, अवट्ठिया मण्डला मुणेयव्वा। नक्षत्र और ताराओं के सभी मण्डल अवस्थित है और वे ते वि य पदाहिणावत्तमेव मेरू अणुचरन्ति । मेरु की प्रदक्षिणा करने वाले हैं । -सूरिय. पा. १६, सु. १०० जोइसियाणं मंडलसंकमणं ज्योतिष्कों का मण्डल संक्रमण-- ६५६. गाहाओ ६५६. गाथार्थरयणिकर-दिणकराणं, उद्धं च अहेवसंकमो नत्थि। चन्द्र और सूर्य अपने अपने मण्डलों आभ्यन्तर बाह्य तथा मण्डलसंकमणं पुण सम्भंतर-बाहिरं तिरिए ॥ तिर्यक् क्षेत्र में मण्डल संक्रमण करते हैं । किन्तु मण्डलों से ऊर्ध्व -सूरिय. पा. १६, सु. १०० और अधो क्षेत्र में संक्रमण नहीं करते हैं । अणवटिठया अवठ्ठिया वा जोइसिया अनवस्थित और अवस्थित ज्योतिष्क-- गाहाओ ९५७. गाथार्थअंतोमणुस्स खेत्ते, हवंति चारोवगा उ उबवण्णा । मनुष्य क्षेत्र में उत्पन्न एवं संचरण करने वाले चन्द्र-सूर्य-ग्रहपंचविहा जोइसिया, चन्दा सूरा गहगणा य॥ नक्षत्र और तारा ये पाँच प्रकार के ज्योतिष्क देव अनवस्थित हैं । तेण परं जे सेसा, चंदाइच्च-गह-तार-णक्खत्ता। मनुष्य क्षेत्र के बाहर जो चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और तारा हैं पत्थि गई णवि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥ वे सब न गति करते हैं और न संचरण करते हैं अतः उन्हें अव -सूरिय. पा. १६, सु. १०० स्थित जानना चाहिए । दीवसमूहेस जोइसियाणं संखाजाणण-विही- द्वीप-समुद्रों के ज्योतिष्कों की संख्या जानने की विधि६५८. गाहाओ ६५८. गाथार्थदो दो जंबुद्दीवे ससि-सूरा दुगुणिया भवे लवणे । जम्बूद्वीप के दो चन्द्र दो सूर्य को दुगुणा करने पर लवणलावणिगा य तिगुणिया ससि-सूर। धायइसंडे ॥ समुद्र में चार चन्द्र चार सूर्य हैं, इनको तिगुणा करने पर धातकीखण्ड में बारहचन्द्र और बारह सूर्य हैं। बारह को तिगुणा करने पर छत्तीस हुए इनमें जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र की चन्द्र संख्या छह संयुक्त करने पर कालोद समुद्र में बियालीस चन्द्र और बियालीस सूर्य हैं । १ (क) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७७ । २ चंद. पा. १६, सु. १०० : ४ (क) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७७ । ५ गाहा–दो चन्दा इह दीवे, चत्तारिय सागरे लवणतीए । धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा ।। (ख) चन्द. पा. १६, सु. १०० । ३ चंद. पा. १६, सु. १०० । (ख) चन्द. पा. १६, सु. १००। -जीवा.प. ३, उ. २, सु. १७७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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