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________________ सूत्र ९५१-६५४ तिर्यक् लोक : ज्योतिष्कों का अल्प या महाऋद्धि का प्ररूपण गणितानुयोग ४५७ उ०–ता एएसि णं चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारा- उ०-इन चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और ताराओं में चन्द्रमाओं रूवाणं से सूर्य शीघ्र गति करता है, चंदेहि तो सूरे सिग्घगई, सूर्य से ग्रह शीघ्र गति वाले हैं, सूरेहिं तो गहा सिग्घगई, ग्रहों से नक्षत्र शीघ्र गति वाले हैं, गहेहि तो णक्खत्ता सिग्घगई, नक्षत्रों से तारा शीघ्र गति वाले हैं, णक्खतहिं तो तारा सिग्घगई, सबसे अल्प गति चन्द्रमाओं की है, सव्वप्पगई चन्दा सव्वसिग्धगई तारा।' सबसे शीघ्र गति ताराओं की है, -सूर. पा. १५, सु. ८३ जोइसियाणं अप्पमहिड्ढि पख्वणं ज्योतिष्कों की अल्प या महाऋद्धि का प्ररूपण१५२. ५०–ता एएसि णं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाणं ६५२. प्र०-इन चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और ताराओं में कौन कयरे कयरेहितो अप्पड्ढिया वा महिड्ढिया वा? किससे अल्प ऋद्धि या महा ऋद्धि वाला है ? उ०—ता ताराहितो महिड्ढिया णक्खत्ता, उ०--ताराओं से नक्षत्र महधिक है, णक्खत्तेहितो महिड्ढिया गहा । नक्षत्रों से ग्रह महधिक है, गहेहितो महिड्ढिया सूरा, ग्रहों से सूर्य महधिक है, सूरेहितो महिड्ढिया चन्दा, सूर्य से चन्द्र महधिक है, सव्वप्पढिया तारा, सबसे अल्प ऋद्धि वाले तारे हैं, सव्वमहिड्ढिया चन्दा। सबसे महा ऋद्धि वाले चन्द्र हैं। - सूरिय. पा. १८, सु. ६५ जोइसियाणं पिडगाई ज्योतिष्कों के पिटक९५३. गाहाओ ६५३. गाथार्थछावट्टि पिडगाई, चंदाइच्चाणं मणुएलोगंमि । प्रत्येक पिटक में दो चन्द्र दो सूर्य हैं। दो चन्दा दो सूरा, य हुँति एक्केकए पिडए । ऐसे छासठ पिटक चन्द्र-सूर्य के मनुष्य लोक में है ।। छाढि पिडगाई, महागहा णं मणुयलोगमि। . प्रत्येक पिटक में एक सौ छिहत्तर ग्रह हैं। छावत्तरं गहसय, होइ एक्केकए पिडए । ऐसे छासठ पिटक ग्रहों के मनुष्य लोक में है ।। छार्टि पिडगाई णक्खताणं तु मणुयलोगमि । प्रत्येक पिटक में छप्पन नक्षत्र हैं। छप्पण्णं णक्खत्ता हुँति एक्केकए पिडए ॥' ऐसे छासठ पिटक नक्षत्रों के मनुष्य लोक में है ।। -सूरिय. पा. १६, सु. १०० - जोइसाण पंतीओ ज्योतिष्कों की पंक्तियाँ६५४. गाहाओ ६५४. गाथार्थचत्तारि य पंतीओ, चंदाइच्चाणं मणुयलोगंमि । प्रत्येक पंक्ति में छासठ छासठ चन्द्र सूर्य हैं। छाट्ठि छाढेि च, हवइ एक्केक्किया पती॥ ऐसी चन्द्र-सूर्य की चार पंक्तियाँ मनुष्य लोक में है ।। १ (क) प०–ता एएसि णं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे कयरेहितों सिग्घगई वा, मंदगई वा ? उ०–ता चंदेहि तो सूरा सिग्धगई, सूरेहिं तो गहा सिग्घगई, नहेहि तो णक्खत्ता सिग्घगई, णक्खत्तेहिं तारा सिग्घगई, -सूरिय. पा. १८, सु. ६५ (ख) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु, १६६ । (ग) चंद पा. १५, सु. ८३ । (घ) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १६७ । २ (क) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १६८ । (ख) चंद. पा. १८, सु. ६५ । (ग) जीवा. पडि. ३, सु, २०० । ३ (क) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७७ । (ख) चन्द. पा, १६, सु. १०० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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