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________________ ४५६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : ज्योतिष्क देवों की गति का प्रमाण सूत्र ६४६-६५१ तेसिपि तहेव ।' इनका सारा वर्णन उसी प्रकार है। _ --जीवा. प. ३, उ. २, सु. २०२-२०४ जोतिसिय देवाणं गइप्पमाणं ज्योतिष्कदेवों की गति का प्रमाण९५०. ५०-ता एगमेगे णं मुहत्ते गं चन्दे केवइयाइं भागसयाइं ६५०. प्र०—प्रत्येक मुहूर्त में चन्द्र मण्डल के कितने सौ भाग गच्छइ? ____गति करता है ? उ०-ता जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तस्स तस्स उ०—जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण करके चन्द्र गति मंडल परिक्खेवस्स सत्तरस अडसिट्ठभागसए गच्छइ, करता है उस उस मण्डल के एक लाख अठाणवे सौ भाग करके मंडलं सयसहस्से गं अट्ठाणउइ सहि छेत्ता छेत्ता, उस उस मण्डल की परिधि के अठारह सौ तीस भाग पर्यन्त गति करता है। प०-ता एगमेगे णं मुहुत्ते णं सूरिए केवइयाए भागसयाई प्र०—प्रत्येक मुहूर्त में सूर्य मण्डल के कितने सौ भाग गति गच्छइ? करता है ? उ०-ताजं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स तस्स उ०—जिस जिस मण्डल का उपक्रमण करके सूर्य गति मण्डल-परिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ, करता है उस उस मण्डल के एक लाख अठाणवें सौ भाग करके मण्डलं सयसहस्से गं अट्ठाणउई सहि छेत्ता छत्ता। उस मण्डल की परिधि के अठारह सौ तीस भाग पर्यन्त गति करता है। प०–ता एगमेगे णं मुहुत्ते णं णक्खत्ते केवइयाइं भागसयाई प्र०-प्रत्येक मुहूर्त में नक्षत्र मण्डल के कितने सौ भाग गच्छइ? गति करते हैं ? उ०–ता जं जं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स तस्स उ०—जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण करके नक्षत्र गति मण्डल-परिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ, करते हैं उस उस मण्डल के एक लाख अठाणवें सौ भाग करके मण्डलं सयसहस्से णं अट्ठाणउई सएहि छेत्ता छेत्ता। उस उस मण्डल की परिधि के अठारह सो पैतीस भाग पर्यन्त -सूरिय० पा० १५, सु० ८३ गति करते हैं । चन्द-सूर-गह-णक्खत्त-ताराणं गइपरूवण चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और ताराओं की गति का प्ररूपण९५१.५०–ता कहं ते सिग्घगई ? आहिए त्ति वएज्जा। ६५१. प्र०—(चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और ताराओं में किस से) किसकी शीघ्र गति हैं ? कहें, १ जम्बु. वक्ख. ७ सु. १६८ । २ ग्रहों की गति का निरूपण मूलपाठ में नहीं है ग्रहों की गति के सम्बन्ध में टीकाकार का स्पष्टीकरण,-"ग्रहास्तु वक्रानुवक्रादिगति भावतोऽनियतगति प्रस्थानास्तो न तेषामुक्त प्रकारेण गतिप्रमाण प्ररूपणा कृता उक्तं च गाहाओ "चंदेहि, सिग्घयरा, सूरा सूरेहि होति णक्खत्ता। अणिययगइपत्थाणा, हंवति सेसा गहा सव्वे ।।१।। अट्ठारस पणतीसे, भागसए गच्छइ मुहुत्ते णं । नक्खत्तं चंदो पुण, सत्तरससए उ अडस? ।।२।। अट्ठारस भागसए, तीसे गच्छइ खीमुहत्तेण । नक्खत्तसीमछेदो, सो चेव इहं पि णायन्तो ।।३।। -सूरिय. पा. १५ सु. ८३ टीका ३ (क) ताराओं की गति सबसे अधिक है, ऐसा मूलपाठ में कथन है किन्तु गति के प्रमाण का कथन नहीं है, टीकाकार ने भी इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। (ख) चंद. पा.१५ सु. ८३ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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