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सूत्र ९४६
तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन
गणितानुयोग
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चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाई सभा में चन्द्रसिंहासन पर अग्रमहिषियों के साथ दिव्य-भोग मुजमाणे विहरित्तए ?
भोगते हुए विहरने में समर्थ नहीं है ? उ०- -गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंद वडेंसए उ० है गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र
विमाणे सभाए सुहम्माए माणवर्गसि चेइयखंभंसि वइ- वतंसक विमान की सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यस्तम्भ पर वज्ररामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिणसकहाओ मय गोलवृत्ताकर डिब्बों में बहुत सी जिनअस्थियाँ रखी हुई हैं । सण्णिक्खित्ताओ चिट्ठन्ति । जाओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो अण्णेसिं च वे जिन अस्थियां ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के और बहुणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ अन्य अनेक ज्योतिषी देव देवियों के अर्चनीय-यावत्-पर्युपास-जाव-पज्जुवासणिज्जाओ।
नीय है। तासि पणिहाए नो पभू चंदे जोइसिदे जोइसराया चंद- उन रखी हुई जिनअस्थियों के कारण ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सोहासणंसि राज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन तुडिएण सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणे विहरि- पर अग्रमहिषियों के साथ दिव्य भोग भोगते हुए विहरने में त्तए।
समर्थ नहीं है। से एएणढणं गोयमा ! नो पभू चन्दे जोइसिदे जोइस- हे गौतम ! इस कारण से ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र राया चन्दबडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सोहासणंसि चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर तुडिएण दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए। अग्रमहिषियों के साथ दिव्य भोग भोगते हुए विहरने में समर्थ
नहीं है। अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चन्दे जोइसिदे जोइसराया अथवा हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्राचन्दवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहास- बतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर चार गंसि चहिं सामाणिय साहस्सीहिं-जाव-सोलसहि हजार सामानिक देवों से—यावत्-सोलह हजार आत्मरक्षक आयरक्खदेवसाहस्सीहि अन्नेहिं च बहूहिं जोइसिएहिं देवों से और अन्य अनेक ज्योतिषी देव देवियों से घिरा हुआ देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिबुडे महयाहय-जाव-रवेणं बहुत जोर से हो रहे नृत्य, गीत, वाद्य-यावत्-आदि की दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए। ध्वनि से दिव्य भोग भोगते हुए विहरने में समर्थ है। केवलं परियार तुडिएण सद्धि भोगभोगाइं बुद्धीए, नो केवल परिचर्या की बुद्धि से अग्रमहिषियों के साथ भोग चेव णं मेहुणवत्तियं ।
___ भोगने में समर्थ है, मैथुन की बुद्धि से नहीं। प०–सूरस्स णं भंते ! जोइसिंबस्स जोइसरण्णो कइ अग्ग- प्र०-हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य के कितनी महिसीओ पण्णत्ताओ?
अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! चत्तारि अग्गहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- उ-हे गौतम ! चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा
(१) सूरप्पभा, (२) आयवाभा, (३) अच्चिमाली, (१) सूर्यप्रभा, (२) आतपाभा, (३) अचिमाली, (४) प्रभंकरा । (४) पभंकरा। एवं अवसेसं जहा चंदस्स ।
शेष सारा क्थन चन्द्र जैसा है। णवरं—सूरिडिसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि । विशेष—सूर्यावतंसक विमान, सूर्य सिंहासन । तहेव ।* सब्वेसिपि गहाईण चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, सभी प्रग्रहादि की चार चार. अग्रमहिषियों कही गई हैं, यथातं जहा-(१) विजया, (२) वैजयन्ती, (३) जयन्ती, (१) विजया, (२) वैजयंती, (३) जयंति, (४) अपराजिता।
(४) अपराजिया। १ ठाणं, ४ उ. १, सु० २७३ में 'दोसिणाभा" नाम है। २ (क) सूरिय. पा. १८ सु, ६७ ।
(ख) चंद, पा, १८ सु.६७ । (ग) भग. श. १२ उ. ६ सु. ६-७ ।
(घ) भग. श. १० उ. ५ सु. २७-२८ ।