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________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना ३३ महावीराचार्य के गणितसार संग्रह ग्रन्थ में छाया व्यवहार एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चूंकि पौरुषी पादांगुल पृ० २६६ से पृ० २८१ तक दिया गया है। उसमें कुछ नियम-सूत्र में प्रतिदिन बदलती रहती है, इसलिए उसके द्वारा दत्त अवनिम्नलिखित हैं : लोकनों द्वारा वर्ष की ऋतु या कोई भी भाग ज्ञात किया जा (१) विषुवभा (अर्थात् जब दिन-रात बराबर होते हैं उस सकता है । देखिये जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, ९/१७-१६ । समय पड़ने वाली छाया) वास्तव में उन दिनों के मध्यान्ह गन्ह सूत्र १०२३-१०४६, पृ० ५१६-५५६(दोपहर) समय प्राप्त छाया के मापों के योग की आधी होती है, इस सूत्रों में सूर्य की विभिन्न प्रकार की गतियों का विवरण जबकि सूर्य मेष राशि या तुला राशि में प्रवेश करता है। मुहूर्त एवं मण्डलों के पदों में दिया गया है जो अत्यंत महत्वपूर्ण (२) किसी वस्तु (शंकु) की ऊँचाई के पदों में व्यक्त छाया है। इनमें योजन भी सम्मिलित हैं। ऐसी अनेक कठिनाइयां हैं के माप में एक जोड़ा जाता है, और इस प्रकार परिणामी योग जिनसे विभिन्न प्रकार के जो रहस्य उद्घाटित किये गये हैं उन्हें दुगुना किया जाता है। परिणामी राशि द्वारा पूर्ण दिनमान पुष्ट करना आवश्यक है। ५१० योजन जो प्रथम और अंतिम भाजित किया जाता है। यह समझना चाहिए कि सारसंग्रह सौर्य मण्डल के बीच का अंतर है, आधुनिक महत्तम डिक्लिसेशन नामक गणितशास्त्र के अनुसार, यह प्राप्त फल पूर्वाह्न और अपराह्न के शेष भागों (अथवा दोपहर के पहले दिन के बीते का द्विगुणित है अर्थात् ४७° है, वही सूर्य पथ की आब्लिक्विटी जो २३.५° है, से सम्बन्धित प्रतीत होती है। हुए भाग और दोपहर के पश्चात् दिन के शेष रहने वाले भाग) को उत्पन्न करता है। [यहाँ विषुवच्छाया नहीं होती।] उपरोक्त सूर्य गति जो मुहूर्त और योजन को विभिन्न मण्डलों (३) दिनमान के ज्ञात माप को, दिन के बीते हुए अथवा में सम्बन्धित करती है किसी भी समय की सूय की गतिशीलता बीतने वाले भाग का निरूपण करने वाले भिन्न के अंश द्वारा को निकालने में आनुमानिक रूप से सहायक सिद्ध हो सकती है। गुणित करने और हर द्वारा भाजित करने से, पूर्वाह्न के सम्बन्ध साथ ही उसके द्वारा आनुमानिक रूप से अवलेकन कर्ता की में बीती हुई घटिकाएँ और अपराह्न के सम्बन्ध में बीतने वाली स्थिति भी ज्ञात की जा सकती है। घटिकाएँ उत्पन्न होती हैं। सूत्र १०५० पृ० ५५७-- (४) किसी स्तम्भ की छाया के माप को स्तम्भ की ऊँचाई जिस प्रकार चन्द्र की ६२ पूर्णमासी सम्बन्धी उसके मंडल द्वारा भाजित करने पर पौरुषी छाया माप प्राप्त होता है। के तत्सम्बन्धी देश विभाग को पूर्व में ज्ञात किया उसी प्रकार (५) विषुवच्छाया वाले स्थान के लिये नियम : यहाँ सूर्य सम्बन्धी प्रश्न प्रस्तुत है । वहाँ ३२ ध्र वांक था किंतु __शंकु की ज्ञात छाया के माप में शंकु का माप जोड़ा जाता यहाँ ध्रुवांक ६४ है । पूर्व प्रकार १ युग के पांच संवत्सर चन्द्र, है। यह योग विषुवच्छाया के माप द्वारा हासित किया जाता है। चन्द्र, अभिवद्धित, चन्द्र एवं अभिवद्धित होते हैं। इनमें पहली परिणामी अंतर को दुगना कर दिया जाता है। जब शंकु का पूर्णिमा को सूर्य किस मण्डल प्रदेश में रहता है ? सूर्य के १८४ माप इस परिणामी राशि द्वारा भाजित किया जाता है, तब दशा- मण्डल हैं । सूर्य युग की अन्तिम ६२वीं पूर्णिमा परिसमाप्ति नुसार पूर्वाह्न में दिन में बीते हुए अथवा अपराह्न में दिन में । स्थान से पर के मण्डल के १२४ विभाग कर उनमें से १४ भागों बीतने वाले दिनांश का मान उत्पन्न होता है। को ग्रहण कर सूर्य प्रथम युग की प्रथम मास पूर्णबोधक पूर्णिमा (६) शंक का माप दिन के दिये गये भाग के माप को को योग करता है। कारण यह है कि ३० अहोरात्र समाप्ति पर दुगुनी राशि द्वारा भाजित किया जाता है। परिणामी भजनफल । वही सूर्य उसी मण्डल प्रदेश में गति करता रहता है, इससे में से शंकु का माप घटाया जाता है, और उसमें विषवच्छाया न्यूनाधिक कोई भी भाग में नहीं दिखता है। चन्द्र मास के अंत का माप जोड़ दिया जाता है । यह दिन के इष्ट समय पर छाया में पूर्णिमा समाप्त होती है । जो २६३२ अहोरात्र होता है । इस का माप उत्पन्न करता है। ___इसी प्रकार अन्य सूत्र भी दिये गये हैं जो ऊर्ध्वाधर दीवाल पर आरूढ़ छाया से सम्बन्धित हैं। लिए सूर्य तीसवें अहोरात्र में भाग में ६२वीं पूर्णिमा परि-- डा० ए० के० बाग के अनुसार पुरुष का अर्थ मानव की उसकी ही अंगुलियों द्वारा नापी गई ऊँचाई है और बौद्धायन शुल्व के समाप्ति स्थान से ६४ भाग गत होने पर प्रथम पूर्णिमा को अनुसार १२० अंगुल से एक पुरुष होता है। पाद और अंगुल का सम्बन्ध पूर्व में ज्ञात है। समाप्त करता है। वह ३० भागों में उसी प्रदेश को बिना प्राप्त ६२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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