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________________ ३२ गणितानुयोग : प्रस्तावना यहाँ बतलाया गया है कि किस प्रकार उक्त अवलोकन केन्द्र पर प्रतिदिन सूर्य के उल्लिखित गमन के कारण वर्ष के कौन से भाग में कितना दिन प्रतिदिन घटता बढ़ता था। यहां उत्कृष्ट एवं जघन्य दिनमान मुहूर्त १८ और १२ उक्त अवलोकन केन्द्र के लिए किये गये थे। पौरुषी इकाई में छाया को लम्बाई तत्सम्बन्धी क्रमिक समय में बीता हुआ दिन का भाग इसका प्रतीक मान लोप है। - इसका प्रतीक मान लो द है। सूत्र १०१०, पृ० ५०४ १०११, पृ० ५०५ - सूर्य के ताप क्षेत्र की संस्थिति हेतु विभिन्न प्रकार की ज्यामिति आकारों का वर्णन है। सूत्र १०१२, पृ० ५०६ १०१३, पृ० ५०७ ताप क्षेत्र संस्थिति की परिधि तथा ताप क्षेत्र एवं अन्धकार क्षेत्र के आयामादि का प्ररूपण इन गाथाओं में किया गया है। उपरोक्त से स्पष्ट है कि पौरुषी छाया समान्तर श्रेणी में है. इनके विस्तत वर्णन के लिए देखिये ति० प०, भाग २, अधिकार जहाँ चय है। तत्सम्बन्धी बीता हुआ दिन का भाग यदि ७, गाथा २६२-४२० जहाँ ताप एवं तम क्षेत्रों का विशद वर्णन सूत्र देकर दिया गया है। यह गहन शोध का विषय है। उलट दिया जाये तो ३, ५,........ भी समान्तर श्रेणी रूप हो उदाहरणार्थ : इष्ट परिधि राशि को तिगुणा करके दश का भाग जाती है जहाँ चय१ है, जहाँ उपान्तिम पद तक जाते हैं। इस देने पर जो लब्ध आवे उतना सूर्य के प्रथम पथ में स्थित रहने प्रकार की श्रेणी को हारमोनिक प्रोग्रेशन कहते हैं।। पर उस आतप क्षेत्र की परिधि का प्रमाण होता है। उपर्युक्त में निम्नलिखित सम्बन्ध हैइसे इस ग्रन्थ में परिधिविशेष कहा गया है। इस शोध से भूगोल सम्बन्धी अनेक रहस्य खुल सकते हैं। १८२(१+प) जबाकप तदनुसार इनका आशय समझकर आधुनिक सन्दर्भ में निर्वचन = जबकि प> ५६ देना अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। द और प के मान पूर्व में दिये गये हैं। सूत्र १०२०, पृ० ५१५-- यदि प से लेकर प+ के बीच समय 'स."बीतता हो तो ___ इसी प्रकार सर्वबाह्य पथ में स्थित सूर्य हेतु ताप क्षेत्र निकालने हेतु परिधि में दो का गुणा कर १० का भाग देते हैं। स- २(१+प) - २(१+१+१) दिन इस सूत्र में पौरुषी छाया निरूपण प्रमाण द्वारा किया गया है। सूर्य को ५६ पौरुषी छाया की निष्पत्ति करने वाला कहा :: गति जो पौरुषी छाया को बदलना बतलाती हो, गया है। इनमें बतलाया गया कि दिन का कितना भाग बीतने उसका मान 'ग' संकेत में ग प -स=(१+प)(३+२ प) पर कितनी पौरुषी छाया रहेगी? अथवा दिन का कितना भाग पुरुष प्रतिदिन होगी। शेष रहने पर कितनी पौरुषी छाया रहेगी? इस प्रकार ५६ इन सूत्रों से अनेक रहस्य ज्ञात किये जा सकते हैं । पौरुषी छाया के प्रकारों को गणित द्वारा दिनमान को निकालने वास्तव में पुरुष का अर्थ दोपहर को शंकु का छाया आयाम में प्रयुक्त किया जा सकता है । इसी सूत्र में २५ प्रकार का छाया प्रतीत होता है। पुरुष किसी भी मानव द्वारा अपनी ही अंगुली कही गयी है तथा उनमें से गोल छाया के भी प्रकार बतलाये है। से मानव की ऊँचाई प्ररूपित करता है। यह अर्थ बेबिलन गोलिका यह भी गहन शोध का विषय है। इस पर शर्मा एवं लिश्क मूल अपिन में भी लिया गया है। ये अवलोकन किस स्थान पर ने सूत्र रचना की है जो अग्र प्रकार है : लिये गये यह ज्ञात करना महत्वपूर्ण है। (१+4)३+२१ दिन होगा।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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